बचपन में स्कूल में गाय पर निबंध लिखा जाता था. इसकी पहली लाइन होती थी 'गाय हमारी माता है.' बचपन की इस सीख का हमारे देश में बहुत मुश्तैदी से पालन किया जाता है. गाय की इज्जत इतनी की जाती है कि उसे ट्रक में चढ़ाने वालों को मार दिया जाता है. भीड़ ये बात बर्दाश्त ही नहीं कर सकती कि कोई गाय ले जा रहा हो. आखिर गऊ माता जो हैं. पूरे देश में गाय को लेकर इतने सारे नियम और कायदे बना दिए गए हैं. पर ये सभी नियम कायदे भारत के हर नियम की तरह सिर्फ कागज में ही अच्छे लगते हैं.
कुछ ऐसा ही हाल है गायों के लिए बनाई गई सरकारी स्कीमों का. याद करिए वो गौ अभ्यारण्य जो मध्यप्रदेश में खुला था. देश की पहली गायों की सेंचुरी जिसमें 6000 गायों का पालन-पोषण करने की बात कही गई थी. कामधेनु गऊ अभ्यारण्य अपने शुरू होने के 5 महीने के अंदर ही गायों के लिए अपने दरवाज़े बंद कर चुका है.
कोई नहीं कर रहा गायों के लिए काम 4120 गाय असुरक्षित..
इसे भारतीय सभ्यता का पाखंड कहें या फिर गायों की किस्मत लेकिन इसके दरवाज़े बंद होने का एक कारण ये भी है कि यहां काम करने के लिए कोई नहीं मिल रहा है. जी हां, अब गौरक्षक कहां गए इसके बारे में कोई सवाल न ही करिएगा. इस अभ्यारण्य में गायों की देखभाल करने के लिए कोई नहीं मिल रहा है और साथ ही यहां पैसा भी कम है. ये योजना जितना धन मांग रही है उसका आधा ही दिया जा रहा है.
अब यहां एक बात सोचने वाली है कि सड़कों पर जो लोग गौरक्षा करते हैं और लोगों की जिंदगी छीन लेते हैं वो क्यों मध्यप्रदेश में जाकर गायों की सेवा नहीं करते? वो क्यों चंदा देकर गायों की हालत सुधारने की कोशिश नहीं करते. एक दो गाय को ट्रक या ट्रॉली में चढ़ा देखकर जिन लोगों को गुस्सा आ जाता है वो लोग आखिर क्यों इस अभ्यरण्य की 4120 गायों की सेवा करने...
बचपन में स्कूल में गाय पर निबंध लिखा जाता था. इसकी पहली लाइन होती थी 'गाय हमारी माता है.' बचपन की इस सीख का हमारे देश में बहुत मुश्तैदी से पालन किया जाता है. गाय की इज्जत इतनी की जाती है कि उसे ट्रक में चढ़ाने वालों को मार दिया जाता है. भीड़ ये बात बर्दाश्त ही नहीं कर सकती कि कोई गाय ले जा रहा हो. आखिर गऊ माता जो हैं. पूरे देश में गाय को लेकर इतने सारे नियम और कायदे बना दिए गए हैं. पर ये सभी नियम कायदे भारत के हर नियम की तरह सिर्फ कागज में ही अच्छे लगते हैं.
कुछ ऐसा ही हाल है गायों के लिए बनाई गई सरकारी स्कीमों का. याद करिए वो गौ अभ्यारण्य जो मध्यप्रदेश में खुला था. देश की पहली गायों की सेंचुरी जिसमें 6000 गायों का पालन-पोषण करने की बात कही गई थी. कामधेनु गऊ अभ्यारण्य अपने शुरू होने के 5 महीने के अंदर ही गायों के लिए अपने दरवाज़े बंद कर चुका है.
कोई नहीं कर रहा गायों के लिए काम 4120 गाय असुरक्षित..
इसे भारतीय सभ्यता का पाखंड कहें या फिर गायों की किस्मत लेकिन इसके दरवाज़े बंद होने का एक कारण ये भी है कि यहां काम करने के लिए कोई नहीं मिल रहा है. जी हां, अब गौरक्षक कहां गए इसके बारे में कोई सवाल न ही करिएगा. इस अभ्यारण्य में गायों की देखभाल करने के लिए कोई नहीं मिल रहा है और साथ ही यहां पैसा भी कम है. ये योजना जितना धन मांग रही है उसका आधा ही दिया जा रहा है.
अब यहां एक बात सोचने वाली है कि सड़कों पर जो लोग गौरक्षा करते हैं और लोगों की जिंदगी छीन लेते हैं वो क्यों मध्यप्रदेश में जाकर गायों की सेवा नहीं करते? वो क्यों चंदा देकर गायों की हालत सुधारने की कोशिश नहीं करते. एक दो गाय को ट्रक या ट्रॉली में चढ़ा देखकर जिन लोगों को गुस्सा आ जाता है वो लोग आखिर क्यों इस अभ्यरण्य की 4120 गायों की सेवा करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.
472 हेक्टेयर में सैलारिया गांव में फैला ये अभ्यारण्य सितंबर 2017 में ही खुला था और इसमें 6000 गायों को रखने की सुविधा है. पर फरवरी के बाद से एक भी गाय नहीं ली गी है. इस अभ्यारण्य को ये सोचकर खोला गया था कि सिर्फ आवारा गायों की सुरक्षा ही नहीं होगी बल्कि गाय का गोबर, खाद, दूध, गौमूत्र आदि के लिए सही काम होगा. 24 शेड वाला ये अभ्यारण्य अभी 4120 गायों को सुरक्षा दे रहा है, लेकिन अधिकतर गायें बीमार हैं, दूध देना बंद कर चुकी हैं और इस अभ्यारण्य में कोई देख रेख करने वाला नहीं मिल रहा है.
यहां 10 करोड़ का खर्च है और आवंटन उसका आधा हुआ है. इसमें से भी 4 करोड़ सिर्फ चारे में ही खर्च हो जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस अभ्यारण्य में फाइनेंस डिपार्टमेंट ने डोनेशन के जरिए पैसे इकट्ठा करने की बात कही है.
इस अभ्यारण्य के उद्घाटन से पहले 22 करोड़ का बजट भेजा गया था जिसे फाइनेंस मिनिस्ट्री ने नकार दिया. फिर 14 करोड़ का भेजा गया उसे भी नकारा गया. इसकी अपनी कोई आय नहीं है और जो भी गायें आती हैं वो बीमार या बूढ़ी होती हैं. कुछ गौमूत्र एसेंस निकालने की मशीने हैं और सिर्फ कुछ ही बार वेटनरी डॉक्टर देखने आए हैं.
यहीं पशुपालन मंत्री अंतर सिंह आर्य का कहना है कि उन्होंने पहले ही फंड की बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कर दी है और सरकार जल्द ही फंड रिलीज कर सकती है. इस अभ्यारण्य की नींव 2012 में रखी गई थी जब शिवराज का दूसरा टर्म था सीएम के तौर पर, लेकिन प्लान पूरा नहीं हो पाया. इसके बाद काम तो पूरा हो गया, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने मोहन भागवत का इंतज़ार किया ताकि वो आकर इसका अद्घाटन कर सकें. इसलिए ये योजना 2017 तक खिंच गई. लेकिन इसके बाद हुआ ये कि यहां सिर्फ वही पशु हैं जिनका कोई काम नहीं है. पड़ोसी राज्य राजस्थान से भी लोग अपने पशु यहां जमा करवाना चाहते थे.
आलम ये है कि राजस्थान सरकार ने अपने राज्य में ऐसा ही अभ्यारण्य शुरू करने की बात कही है, लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि जो पहले से ही खुला हुआ है उसका क्या होगा? आखिर उसमें पल रहे बीमार पशु क्या किए जाएंगे.
ये बात कितनी अजीब है कि जिन गायों के लिए भारत में मार-काट मचाई जा रही है उन्हीं की देखरेख करने के लिए कोई नहीं मिल रहा. वहां डोनेशन देने के लिए कोई नहीं है. कहां हैं वो लोग जो गाय को माता मानते हैं. शायद वो सिर्फ बवाल मचाने में और लोगों को मारने में व्यस्त हैं.
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