जिस वक्त दुनियाभर में हिजाब और बुर्के को लेकर बहस हो रही हो, भारत के सबसे मशहूर कॉमेडी रियलिटी द कपिल शर्मा शो में लगातार हिजाब और बु्र्के का महिमामंडन दिखता है. क्या इसे सहज माना जा सकता है? हाल के कुछ एपिसोड पर नजर गई तो लगातार यही दिख रहा है. क्या साबित करने की कोशिश है? समझ से परे है.
कपिल को हिजाब पसंद है क्या? वैसे संतुलन बनाने के लिए कपिल के शो में राजस्थान से घूंघट वाली महिलाओं को भी बैठाया गया. हिजाब पर उन्होंने हंसी मजाक नहीं किया लेकिन घूंघटवालियों से कुछ हंसी ठिठोली जरूर कर ली. कपिल को बताया जाए कि घूंघट जैसे आया था भारत में अब वैसे ही ख़त्म भी हो रहा है. मुंबई में कपिल को तो नहीं ही दिखता होगा यह गारंटी है. खाप चिल्लाते रह गए हरियाणा में. हिंदूवादी दक्षिणपंथी भी लड़कियों के पश्चिमी ड्रेस पर सवाल करते रह गए. लेकिन पिछले दो दशक, सिर्फ दो दशक में तमाम क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों ने परिधान की उलजुलूल बहस को भोथरा कर दिया है.
बैन लगाने वाले थककर चुप हो गए और अब भारत के गांवों में लड़कियों के जिंस टॉप पहनने पर कोई सवाल ही नहीं दिखता. सवाल हो भी सकते हैं मगर कोई उसे तवज्जो देता तो नजर नहीं आता. पहले दक्षिणपंथी लड़कियों को ड्रेस कोड देते थे तो मीडिया और लिबरल धड़ा तूफ़ान मचा देता था देशभर में. जबकि दूसरी तरफ भारत के गांव कस्बो में पहले बुरका हिजाब दिखता ही नहीं था. अब आम हो गया. सिर्फ दो दशक में.
यह स्वाभाविक बिल्कुल नहीं है. धार्मिक अभियान चलाए गए, इसकी वजह से आम हुआ. मजेदार यह भी है कि लिबरल धड़ा इसका बचाव भी करता है. गजब है भारत. चीजों को माध्यमों के जरिए किस तरह सामान्य बनाया जाता है- खुली आंखों से देखा जा सकता...
जिस वक्त दुनियाभर में हिजाब और बुर्के को लेकर बहस हो रही हो, भारत के सबसे मशहूर कॉमेडी रियलिटी द कपिल शर्मा शो में लगातार हिजाब और बु्र्के का महिमामंडन दिखता है. क्या इसे सहज माना जा सकता है? हाल के कुछ एपिसोड पर नजर गई तो लगातार यही दिख रहा है. क्या साबित करने की कोशिश है? समझ से परे है.
कपिल को हिजाब पसंद है क्या? वैसे संतुलन बनाने के लिए कपिल के शो में राजस्थान से घूंघट वाली महिलाओं को भी बैठाया गया. हिजाब पर उन्होंने हंसी मजाक नहीं किया लेकिन घूंघटवालियों से कुछ हंसी ठिठोली जरूर कर ली. कपिल को बताया जाए कि घूंघट जैसे आया था भारत में अब वैसे ही ख़त्म भी हो रहा है. मुंबई में कपिल को तो नहीं ही दिखता होगा यह गारंटी है. खाप चिल्लाते रह गए हरियाणा में. हिंदूवादी दक्षिणपंथी भी लड़कियों के पश्चिमी ड्रेस पर सवाल करते रह गए. लेकिन पिछले दो दशक, सिर्फ दो दशक में तमाम क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों ने परिधान की उलजुलूल बहस को भोथरा कर दिया है.
बैन लगाने वाले थककर चुप हो गए और अब भारत के गांवों में लड़कियों के जिंस टॉप पहनने पर कोई सवाल ही नहीं दिखता. सवाल हो भी सकते हैं मगर कोई उसे तवज्जो देता तो नजर नहीं आता. पहले दक्षिणपंथी लड़कियों को ड्रेस कोड देते थे तो मीडिया और लिबरल धड़ा तूफ़ान मचा देता था देशभर में. जबकि दूसरी तरफ भारत के गांव कस्बो में पहले बुरका हिजाब दिखता ही नहीं था. अब आम हो गया. सिर्फ दो दशक में.
यह स्वाभाविक बिल्कुल नहीं है. धार्मिक अभियान चलाए गए, इसकी वजह से आम हुआ. मजेदार यह भी है कि लिबरल धड़ा इसका बचाव भी करता है. गजब है भारत. चीजों को माध्यमों के जरिए किस तरह सामान्य बनाया जाता है- खुली आंखों से देखा जा सकता है. क्या ही कहा जाए जब राहुल गांधी सिर से पांव तक बुरके में लिपटी एक लड़की को लेकर सड़क पर निकलते हैं और कपिल शर्मा के शो में उसे सहज दिखाने की व्यवस्था कर दी जाती है.
कपिल और शर्मा से अनुरोध है कि गलत हिजाब का प्रचार मत करें. चेहरा दिख रहा है. आंखों पर जालीदार पट्टी भी नहीं है. असली बुरका अफगानी स्टाइल वाला होता है उसे अडाप्ट करें. क्योंकि यह पहले से ही सिद्ध हो चुका है कि बुर्का चाइस का मामला है. हमें कोई आपत्ति नहीं. वैसे भी बॉक्सिंग चैम्प ने कह दिया है कि हिजाब पहनकर रिंग में उतरा जा सकता है. नियम सहूलियत देते हैं. लेकिन प्लीज आप घूंघट का इस तरह पॉपुलर प्रचार ना करिए. चाइस का मामला मत बनाइए. घूंघट चाइस का मामला बिल्कुल नहीं है. घूंघट स्वाभाविक तरीके से ख़त्म हो रहा है तो उसकी राह ना रोकें. बड़ी कृपा होगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.