मैंने अपने जीवन में अच्छे खासे बसंत देखे हैं. साथ ही मैं अब तक कई जाड़ों में थर-थर कांप भी चुका हूं. पता नहीं इसे दुर्भाग्य कहूं या विडंबना मुझे आज तक सही से मैथ नहीं आई. मैं प्लस-माइनस, मल्टीप्लाई-डिवाइड तो कर लेता हूं मगर इससे ऊपर की बातें आज तक समझ नहीं पाया. मैथ आती तो आज मैं इंजीनियर होता. नहीं आई इसलिए ये आर्टिकल लिख रहा हूं और सबको अपने मन की बात बता रहा हूं. मैथ न आने और इंजीनियर न बनने में मेरा ही दोष है. आदर्शवादिता यही होगी कि मैं इसकी जिम्मेदारी खुद लूं और इसे स्वीकार करूं. स्वीकार करने में बुराई नहीं है. स्वीकार करने का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि हम भविष्य में अपने प्रति ज्यादा गंभीर हो जाते हैं.
इन सब के इतर मैं ये भी कह सकता था कि मैथ न आई तो न सही, मगर मैं किसी प्राइवेट कॉलेज में मोटी फीस देकर इंजीनियर बन सकता था. और पिता जी ने डोनेशन के पैसे नहीं दिए इसलिए मैं इंजीनियर नहीं बन पाया. इस पंक्ति को अगर कोई भी पड़ेगा तो वो यही कहेगा कि मैं अपनी गलती ठीक वैसे ही छुपा रहा हूं जैसे कर्नाटक सरकार और उसका ताजा तरीन फरमान.
हो सकता है इसको पढ़कर आप थोड़ा विचलित हो गए हों और आपके दिमाग में ये प्रश्न आए कि मैथ और इंजीनियरिंग के बीच ये कर्नाटक सरकार कहां से आ गयी? तो बात ही कुछ ऐसी है. कर्नाटक सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए एक बड़ा ही अजीब-ओ-गरीब फरमान सुनाया है. बढ़ते सड़क हादसों पर नियंत्रण के चलते कर्नाटक सरकार चाहती है कि अब लोग अपने टूव्हीलर पर दूसरी सवारी न बैठाएं. साथ ही कंपनियां भी ऐसी गाड़ी बनाएं जिसमें सिर्फ एक सीट हो.
ज्ञात हो कि कर्नाटक में ये नियम 100 सीसी से कम पावर वाले दुपहिया वाहनों के लिए लागू किया जा सकता है. साथ ही वाहन...
मैंने अपने जीवन में अच्छे खासे बसंत देखे हैं. साथ ही मैं अब तक कई जाड़ों में थर-थर कांप भी चुका हूं. पता नहीं इसे दुर्भाग्य कहूं या विडंबना मुझे आज तक सही से मैथ नहीं आई. मैं प्लस-माइनस, मल्टीप्लाई-डिवाइड तो कर लेता हूं मगर इससे ऊपर की बातें आज तक समझ नहीं पाया. मैथ आती तो आज मैं इंजीनियर होता. नहीं आई इसलिए ये आर्टिकल लिख रहा हूं और सबको अपने मन की बात बता रहा हूं. मैथ न आने और इंजीनियर न बनने में मेरा ही दोष है. आदर्शवादिता यही होगी कि मैं इसकी जिम्मेदारी खुद लूं और इसे स्वीकार करूं. स्वीकार करने में बुराई नहीं है. स्वीकार करने का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि हम भविष्य में अपने प्रति ज्यादा गंभीर हो जाते हैं.
इन सब के इतर मैं ये भी कह सकता था कि मैथ न आई तो न सही, मगर मैं किसी प्राइवेट कॉलेज में मोटी फीस देकर इंजीनियर बन सकता था. और पिता जी ने डोनेशन के पैसे नहीं दिए इसलिए मैं इंजीनियर नहीं बन पाया. इस पंक्ति को अगर कोई भी पड़ेगा तो वो यही कहेगा कि मैं अपनी गलती ठीक वैसे ही छुपा रहा हूं जैसे कर्नाटक सरकार और उसका ताजा तरीन फरमान.
हो सकता है इसको पढ़कर आप थोड़ा विचलित हो गए हों और आपके दिमाग में ये प्रश्न आए कि मैथ और इंजीनियरिंग के बीच ये कर्नाटक सरकार कहां से आ गयी? तो बात ही कुछ ऐसी है. कर्नाटक सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए एक बड़ा ही अजीब-ओ-गरीब फरमान सुनाया है. बढ़ते सड़क हादसों पर नियंत्रण के चलते कर्नाटक सरकार चाहती है कि अब लोग अपने टूव्हीलर पर दूसरी सवारी न बैठाएं. साथ ही कंपनियां भी ऐसी गाड़ी बनाएं जिसमें सिर्फ एक सीट हो.
ज्ञात हो कि कर्नाटक में ये नियम 100 सीसी से कम पावर वाले दुपहिया वाहनों के लिए लागू किया जा सकता है. साथ ही वाहन निर्माता कंपनियों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी बाइकों या स्कूटर पर केवल एक ही व्यक्ति के बैठने की व्यवस्था हो. कर्नाटक के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने यह फैसला पिछली सीट पर बैठने वाले यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से लिया है जो अक्सर ऐक्सिडेंट के शिकार हो जाते हैं. कर्नाटक सरकार ने रोड एक्सीडेंट रोकने के लिए हाई कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किया है और जल्द ही वो एक आधिकारिक सर्कुलर जारी कर अपनी बात की पुष्टि भी कर देगी.
पता नहीं सरकार के इस फैसले से राज्य में सड़क हादसों में नियंत्रण होगा या नहीं. मगर इससे एक बात तो साफ है कि लोगों को सड़क, सुचारू ट्रैफिक देने में नाकाम सरकार ने इस तरकीब से बखूबी अपना पल्ला झाड़ लिया है और लोगों को बता दिया है कि उनके एक्सीडेंट सिर्फ इसलिए होते हैं क्योंकि गाड़ी में एक से ज्यादा सवारियां और सीट होती हैं. बहरहाल, कर्नाटक सरकार ने अपने फरमान से कोर्ट के अलावा जनता तक को ये बता दिया कि, 'लीजिये साहब, हमनें सांप भी मार दिया और हमारी लाठी भी नहीं टूटी'.
अंत में बस इतना कि एक आम भारतीय होने के नाते मुझे राज्य सरकार के इस फैसले पर हैरत से ज्यादा हंसी आ रही है. हंसी का कारण बस इतना है कि जैसे मैंने मैथ न आने के चलते ये स्वीकार कर लिया कि मैं इंजीनियर नहीं बन सकता. वैसे ही अच्छी सड़क और सुचारू ट्रैफिक व्यवस्था देने में नाकाम सरकार अपनी कमी क्यों नहीं स्वीकार कर पाई. अगर सरकार अपनी कमी स्वीकार कर लेती तो शायद आज हम ये अजीब साफरमान न सुनते. न ही मैं ये याद करता कि, काश मैंने मैथ ढंग से पढ़ी होती तो मैं भी इंजीनियर होता.
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