किसी भी मंदिर में अगर श्रद्धालुओं को प्रसाद दिया जाता है, तो लोग उसे सिर्फ एक फल, मिठाई या किसी खाने वाली चीज की तरह नहीं, बल्कि भगवान के आशीर्वाद के रूप में देखते हैं. लोग मानते हैं कि उस प्रसाद को खाने भर से उन्हें भगवान का आशीर्वाद मिल जाएगा और उनके दुख दूर हो जाएंगे. लेकिन बेंगलुरु के एक मंदिर में जहरीले प्रसाद की वजह से 15 लोगों की मौत हो गई है. वहीं 100 से भी अधिक लोग अभी भी अस्पतालों में उपचार करा रहे हैं, जिनमें कई गंभीर हालत में हैं. सवाल ये उठा कि आखिर मंदिर के प्रसाद में जहर आया कैसे? जांच हुई तो पता चला कि जहर आया नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत लाया गया और फिर प्रसाद में मिलाया गया. और ये सब उसी मंदिर के ट्रस्ट के मुखिया ने किया, जिसका मकसद तो पूरा नहीं हुआ, लेकिन इस हरकत ने भगवान पर लोगों के भरोसे को कमजोर करने का काम किया है.
अपने ही मंदिर के प्रसाद में मिलवाया जहर
15 दिसंबर को जब बेंगलुरु के चामराजनगर जिले में स्थिति मरम्मा मंदिर में लोग प्रसाद लेने के लिए हाथ फैला रहे थे, तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उन्हें भगवान के आशीर्वाद के बदले 'मौत' मिल रही है. प्रसाद खाने के कुछ ही देर में देखते ही देखते लोगों की तबीयत खराब होने लगी. एक के बाद एक करीब 120 लोग प्रसाद में मिले जहर की चपेट में आ गए. जब पुलिस ने जांच की तो मंदिर के ट्रस्ट प्रमुख और महादेश्वर हिल सालुरु मठ के महंत पीआई महादेवस्वामी की मुख्य भूमिका का पता चला. कुछ लोगों के साथ मिलकर महादेवस्वामी ने प्रसाद में जहर मिलाने की ये साजिश रची थी. दोदैया नाम के एक पुजारी को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिसने महादेवस्वामी के कहने पर प्रसाद में जहर मिलाने की बात कुबूल की है. लेकिन उन 120 लोगों से महादेवस्वामी की क्या दुश्मनी थी, जिन्हें जहरीला प्रसाद खिलाया गया? दरअसल, वो लोग महादेवस्वामी की साजिश का हिस्सा थे, जिनके जरिए स्वामी एक पॉलिटिक्स खेल रहे हैं और अपनी ताकत बढ़ाने के चक्कर में थे.
किसी भी मंदिर में अगर श्रद्धालुओं को प्रसाद दिया जाता है, तो लोग उसे सिर्फ एक फल, मिठाई या किसी खाने वाली चीज की तरह नहीं, बल्कि भगवान के आशीर्वाद के रूप में देखते हैं. लोग मानते हैं कि उस प्रसाद को खाने भर से उन्हें भगवान का आशीर्वाद मिल जाएगा और उनके दुख दूर हो जाएंगे. लेकिन बेंगलुरु के एक मंदिर में जहरीले प्रसाद की वजह से 15 लोगों की मौत हो गई है. वहीं 100 से भी अधिक लोग अभी भी अस्पतालों में उपचार करा रहे हैं, जिनमें कई गंभीर हालत में हैं. सवाल ये उठा कि आखिर मंदिर के प्रसाद में जहर आया कैसे? जांच हुई तो पता चला कि जहर आया नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत लाया गया और फिर प्रसाद में मिलाया गया. और ये सब उसी मंदिर के ट्रस्ट के मुखिया ने किया, जिसका मकसद तो पूरा नहीं हुआ, लेकिन इस हरकत ने भगवान पर लोगों के भरोसे को कमजोर करने का काम किया है.
अपने ही मंदिर के प्रसाद में मिलवाया जहर
15 दिसंबर को जब बेंगलुरु के चामराजनगर जिले में स्थिति मरम्मा मंदिर में लोग प्रसाद लेने के लिए हाथ फैला रहे थे, तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उन्हें भगवान के आशीर्वाद के बदले 'मौत' मिल रही है. प्रसाद खाने के कुछ ही देर में देखते ही देखते लोगों की तबीयत खराब होने लगी. एक के बाद एक करीब 120 लोग प्रसाद में मिले जहर की चपेट में आ गए. जब पुलिस ने जांच की तो मंदिर के ट्रस्ट प्रमुख और महादेश्वर हिल सालुरु मठ के महंत पीआई महादेवस्वामी की मुख्य भूमिका का पता चला. कुछ लोगों के साथ मिलकर महादेवस्वामी ने प्रसाद में जहर मिलाने की ये साजिश रची थी. दोदैया नाम के एक पुजारी को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिसने महादेवस्वामी के कहने पर प्रसाद में जहर मिलाने की बात कुबूल की है. लेकिन उन 120 लोगों से महादेवस्वामी की क्या दुश्मनी थी, जिन्हें जहरीला प्रसाद खिलाया गया? दरअसल, वो लोग महादेवस्वामी की साजिश का हिस्सा थे, जिनके जरिए स्वामी एक पॉलिटिक्स खेल रहे हैं और अपनी ताकत बढ़ाने के चक्कर में थे.
महादेवस्वामी की पॉलिटिक्स
सुलवाड़ी किच्चु मरम्मा मंदिर पर एक ट्रस्ट का अधिकार है. ट्रस्ट के लोग दो गुटों में बंटे हुए हैं. एक पक्ष महादेवस्वामी के साथ है और दूसरा उनके खिलाफ. मंदिर की कमाई लगातार बढ़ रही थी और सारा पैसा महादेवस्वामी अपनी जेब में डालते जा रहे थे. इससे दूसरा पक्ष नाराज हो गया और विरोध किया. साथ ही ऑडिट भी कराया, जो महादेवस्वामी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. उन्होंने एक नया गोपुरम (गेट पर द्वार जैसा टावर) बनाने का फैसला किया, जिसके लिए 1.2 करोड़ रुपए का कॉन्ट्रैक्ट किया. जब ट्रस्ट के अन्य सदस्यों को इसका पता चला तो उन्होंने महादेवस्वामी का विरोध किया, क्योंकि ट्रस्ट के पास सिर्फ 34 लाख बचे थे, जबकि प्रोजेक् टकी कीमत 1.2 करोड़ रुपए थी. इसके बाद दूसरे पक्ष के लोगों ने काफी कम कीमत में एक नया कॉन्ट्रैक्ट किया और गोपुरम बनाने की आधारशिला रखने के दिन एक कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया. बस यहीं से महादेवस्वामी के मन में बदले की आग जल पड़ी और उन्होंने एक साजिश रची.
जब महादेवस्वामी को पता चला कि मंदिर का नियंत्रण उनके हाथों से निकल रहा है और दूसरे पक्ष की ओर जा रहा है तो उन्होंने प्रसाद में जहर मिलाने का फैसला किया. मकसद ये था कि जहर वाला प्रसाद खाकर लोगों की तबीयत खराब होगी और दूसरे पक्ष की बदनामी होगी, जिसके बाद मंदिर का नियंत्रण महादेवस्वामी के साथ में बना रहेगा. इसके लिए उन्होंने मदेश नाम के एक शख्स और उसकी पत्नी अंबिका से संपर्क किया, जिसने पास के एक गांव के नगरकोइल मंदिर के पुजारी दोदैया को जहर दिया. दौदैया मरम्मा मंदिर पहुंचा और प्रसाद में जहर मिला दिया. दूसरे पक्ष ने अनजाने में जहर वाला प्रसाद लोगों को बांट दिया. और देखते ही देखते 120 लोग उसकी चपेट में आ गए, जिसमें से 15 लोगों की मौत हो चुकी है.
15 लोगों की जान चली गई. 100 से भी अधिक लोग अस्पताल में हैं. करीब 30 लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. और ये सब हुआ महादेवस्वामी की पॉलिटिक्स के चक्कर में. मंदिर के राजस्व पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए वह ट्रस्ट के दूसरे पक्ष को बदनाम करना चाहते थे. स्वामी के गलत इरादों की वजह से न सिर्फ लोगों की जान गई है, बल्कि इस हरकत ने लोगों में भगवान पर विश्वास भी कम करने का काम किया है. कम से कम अब मरम्मा मंदिर में तो लोग प्रसाद बिल्कुल नहीं खाएंगे और अगर खाएंगे भी तो डरते-डरते.
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