एक ही लक्ष्य पर पहुंचने के लिए रूट कई हो सकते हैं. ये हमारी मर्जी की हम कब और कैसे किस रास्ते पर चलें. हो सकता है कि हम अपने हर पसंददीदा रास्ते पर चलें, कभी किसी पर तो कभी किसी पर. पति की दीर्घायु की प्रार्थना या दुआ कौन पत्नी नहीं करती, सब ही पत्नियां करती होंगी. चाहे वो किसी भी धर्म की हों. पति की दीर्घायु के लिऐ हिन्दू महिलाएं जिन मक़सद, जज़्बे और सांस्कृतिक रंगों के साथ करवा चौथ मनाती हैं ये सनातनी सौंदर्य मुस्लिम महिलाओं को आकर्षित करता है. नापंसद को नकारने और अपनी पसंद को अपनाने के साहसिक क़दम बढ़ाने वाली तरक्कीपसंद मुस्लिम महिलाओं को करवा चौथ का पर्व अच्छा लगता हैं. रिश्तों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले सनातनी त्योहारों में रक्षाबंधन को मुस्लिम समाज का एक तब्क़ा बरसों से अपनाता आया है. पति की लम्बी उम्र के लिए मनाए जाने वाले करवाचौथ को भी अब कुछ मुस्लिम महिलाएं मनाने लगी हैं.
इस त्योहार के उद्देश्य और परंपराओं से प्रभावित होकर मुस्लिम समाज की कुछ महिलाएं पिछले कुछ वर्षों से करवाचौथ मना रही हैं. हालांकि लखनऊ और आगरा से ऐसे ख़बरे आने के बाद विगत वर्षों में मुस्लिम उलमा के एतराज़ के स्वर भी सुनाई पड़े थे. लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा था, कुछ मुस्लिम महिलाओं ने न सिर्फ करवाचौथ की आकर्षक परंपराओं को अपनाया बल्कि व्रत भी रखा था.
तीन तलाक़ जैसी पुरुष प्रधानता का चक्रव्यूह टूटने के बाद भारतीय महिलाओं के हौसले बढ़े हैं. चार दशक बाद शाहबानों की लड़ाई को फतेह की मंजिल मिली तो संकीर्णता की सरहदें कमज़ोर पड़ीं. अब आज़ादी की आब-ओ-हवा में बंदिशों की ज़ंजीरें टूट रही हैं. हक़ और मन की बात पर दबाव की बर्फ पिघलने लगी है. इस्लाम की हिदायतें ज़िन्दगी जीने की गाइडलाइंस हैं,...
एक ही लक्ष्य पर पहुंचने के लिए रूट कई हो सकते हैं. ये हमारी मर्जी की हम कब और कैसे किस रास्ते पर चलें. हो सकता है कि हम अपने हर पसंददीदा रास्ते पर चलें, कभी किसी पर तो कभी किसी पर. पति की दीर्घायु की प्रार्थना या दुआ कौन पत्नी नहीं करती, सब ही पत्नियां करती होंगी. चाहे वो किसी भी धर्म की हों. पति की दीर्घायु के लिऐ हिन्दू महिलाएं जिन मक़सद, जज़्बे और सांस्कृतिक रंगों के साथ करवा चौथ मनाती हैं ये सनातनी सौंदर्य मुस्लिम महिलाओं को आकर्षित करता है. नापंसद को नकारने और अपनी पसंद को अपनाने के साहसिक क़दम बढ़ाने वाली तरक्कीपसंद मुस्लिम महिलाओं को करवा चौथ का पर्व अच्छा लगता हैं. रिश्तों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले सनातनी त्योहारों में रक्षाबंधन को मुस्लिम समाज का एक तब्क़ा बरसों से अपनाता आया है. पति की लम्बी उम्र के लिए मनाए जाने वाले करवाचौथ को भी अब कुछ मुस्लिम महिलाएं मनाने लगी हैं.
इस त्योहार के उद्देश्य और परंपराओं से प्रभावित होकर मुस्लिम समाज की कुछ महिलाएं पिछले कुछ वर्षों से करवाचौथ मना रही हैं. हालांकि लखनऊ और आगरा से ऐसे ख़बरे आने के बाद विगत वर्षों में मुस्लिम उलमा के एतराज़ के स्वर भी सुनाई पड़े थे. लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा था, कुछ मुस्लिम महिलाओं ने न सिर्फ करवाचौथ की आकर्षक परंपराओं को अपनाया बल्कि व्रत भी रखा था.
तीन तलाक़ जैसी पुरुष प्रधानता का चक्रव्यूह टूटने के बाद भारतीय महिलाओं के हौसले बढ़े हैं. चार दशक बाद शाहबानों की लड़ाई को फतेह की मंजिल मिली तो संकीर्णता की सरहदें कमज़ोर पड़ीं. अब आज़ादी की आब-ओ-हवा में बंदिशों की ज़ंजीरें टूट रही हैं. हक़ और मन की बात पर दबाव की बर्फ पिघलने लगी है. इस्लाम की हिदायतें ज़िन्दगी जीने की गाइडलाइंस हैं, इसे अपनाने के लिए कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं.
कोई इदारा या मौलाना किसी भी मुस्लिम औरत या मर्द पर कोई भी चीज़ थोप नहीं सकता. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के त्योहार रक्षा बंधन को मनाने में मुस्लिम समाज का बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना तो कोई नई बात नहीं हैं किन्तु विगत कुछ वर्षों में होली में रंग खेलने और करवाचौथ मनाने में खासकर मुस्लिम महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ी है.
मन की मानवीय इच्छाओं को कर गुज़रने पर किसी के एतराज़ से अब ये साहसी महिलाएं घबराती नहीं है. पिछले वर्षों में उत्तर प्रदेश के लखनऊ, आगरा और राजस्थान के चूरू ज़िले के अलावा देश के कई हिस्सों से मुस्लिम समाज में करवाचौथ मनाए जाने की खबरों के साथ मुस्लिम इदारों द्वारा इसके विरोध की ख़ूब ख़बरें आईं थी.
लखनऊ और आगरा की आएशा अहमद, गुलनाज़ खान, राजस्थान के चूरू की अंजुम जीशान आदि के करवा के वर्त और इसपर एतराज़ की ख़ूब सुर्खियां बनी थीं. देश के प्रसिद्ध मदरसे दारुल उलूम देवबंद और अन्य इदारों ने इसे ग़ैर इस्लामी बताते हुए इसपर एतराज़ किया था. लेकिन इन महिलाओं ने विरोध की ज़रा भी परवाह नहीं की थी.
महिलाओं और उनके पतियों का कहना था कि यदि किसी दूसरे धर्म की परंपरा या संस्कृति मानवीय मूल्यों पर आधारित है और हमें ये पसंद है तो इसे अपनाने में हमें रोकने का हक़ किसी के पास नहीं. पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करना इस्लामिक नज़रिए से भी ग़लत नहीं.
यदि एक दूसरे की धार्मिक गतिविधियों का आदर-सम्मान करते हुए हम इसे अपनाएं तो देश में साम्प्रदायिक सौहार्द, एकता और अखंडता को बल मिलेगा. हमारे पुर्खों के ऐसे ही अमल गंगा-जमुनी तहज़ीब की विरासत छोड़ गए हैं.
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