केदारनाथ आपदा को दस वर्ष का समय पूर्ण हो गया है. सरकारी रिकार्ड के अनुसार लगभग 4400 लोगों की मृत्यु हुई थी और आज भी हजारो लोग लापता है. 10 साल के समय खण्ड में केदारनाथ सहित पूरी देवभूमि में इस आपदा के दुष्प्रभावों को खत्म करने के विभिन्न प्रयास किये गए है. यहां तक की प्रधानमंत्री मोदी भी केदारनाथ का कई बार दौरा कर चुके है. इसका सकारात्मक प्रभाव भी पढ़ा है.
वर्तमान वर्ष में 10 साल पहले की तुलना में लगभग ढाई गुना भक्तों के बाबा केदार के दर्शन करने आने की उम्मीद है. सरकार द्वारा केदारपुरी को काफी हद तक सुरक्षित भी बना दिया गया है. ऑल वैदर रोड का निर्माण अंतिम दौर में है. मंदिर के चारो और सुरक्षा चार दीवारी कर दी गई है. इन सभी प्रयासों के बावजूद आज भी कई जगह पर इस भयावह आपदा के जख्म दिखाई दे जाते है. आज भी लोग अपने बिछड़े परिजनों की तलाश कर रहे है और केदारघाटी में अब भी कई शव दफन है.
कब क्या क्या हुआ था...
• 14 जून 2013 को शुरू हुई थी बारिश. • 16 जून की शाम को चौराबाड़ी ताल टूटा जिससे मंदाकिनी में बाढ़ आई और रामबाड़ा का अस्तित्व मिटा गया. • 17 जून को दुबारा चौराबाड़ी ताल से आए मलवा और पानी से केदारनाथ धाम और मंदिर को पहुंचा भयंकर नुकसान. • 18 जून को केदारनाथ तबाही की पहली बार सरकार को खबर लगी.• 19 जून को सरकार ने आपदा को स्वीकार किया
केदारनाथ आपदा के कारण
केदारनाथ आपदा के कारण तो ज्ञात है लेकिन इन कारणों के पीछे तत्कालीन सरकार की नाकामयाबी और लापरवाही भी छिपी है. मौसम विभाग की आशंकाओं और भारी बारिश की चेतावनी को नजर अंदाज करना 2004 से विभिन्न पत्रकारों और वैज्ञानिको की चौराबाड़ी ग्लेशियर पर चेतावनी और आशंका को नजर अंदाज करना तथा विभिन्न गलतियां तो इस आपदा का कारण हैं ही. इसके साथ ही साथ लोगों का यह भी मानना है...
केदारनाथ आपदा को दस वर्ष का समय पूर्ण हो गया है. सरकारी रिकार्ड के अनुसार लगभग 4400 लोगों की मृत्यु हुई थी और आज भी हजारो लोग लापता है. 10 साल के समय खण्ड में केदारनाथ सहित पूरी देवभूमि में इस आपदा के दुष्प्रभावों को खत्म करने के विभिन्न प्रयास किये गए है. यहां तक की प्रधानमंत्री मोदी भी केदारनाथ का कई बार दौरा कर चुके है. इसका सकारात्मक प्रभाव भी पढ़ा है.
वर्तमान वर्ष में 10 साल पहले की तुलना में लगभग ढाई गुना भक्तों के बाबा केदार के दर्शन करने आने की उम्मीद है. सरकार द्वारा केदारपुरी को काफी हद तक सुरक्षित भी बना दिया गया है. ऑल वैदर रोड का निर्माण अंतिम दौर में है. मंदिर के चारो और सुरक्षा चार दीवारी कर दी गई है. इन सभी प्रयासों के बावजूद आज भी कई जगह पर इस भयावह आपदा के जख्म दिखाई दे जाते है. आज भी लोग अपने बिछड़े परिजनों की तलाश कर रहे है और केदारघाटी में अब भी कई शव दफन है.
कब क्या क्या हुआ था...
• 14 जून 2013 को शुरू हुई थी बारिश. • 16 जून की शाम को चौराबाड़ी ताल टूटा जिससे मंदाकिनी में बाढ़ आई और रामबाड़ा का अस्तित्व मिटा गया. • 17 जून को दुबारा चौराबाड़ी ताल से आए मलवा और पानी से केदारनाथ धाम और मंदिर को पहुंचा भयंकर नुकसान. • 18 जून को केदारनाथ तबाही की पहली बार सरकार को खबर लगी.• 19 जून को सरकार ने आपदा को स्वीकार किया
केदारनाथ आपदा के कारण
केदारनाथ आपदा के कारण तो ज्ञात है लेकिन इन कारणों के पीछे तत्कालीन सरकार की नाकामयाबी और लापरवाही भी छिपी है. मौसम विभाग की आशंकाओं और भारी बारिश की चेतावनी को नजर अंदाज करना 2004 से विभिन्न पत्रकारों और वैज्ञानिको की चौराबाड़ी ग्लेशियर पर चेतावनी और आशंका को नजर अंदाज करना तथा विभिन्न गलतियां तो इस आपदा का कारण हैं ही. इसके साथ ही साथ लोगों का यह भी मानना है कि इसका एक धार्मिक पहलु भी है, जिसमें केदारघाटी में हो रहे अधार्मिक गतिविधियां भी शामिल हैं.
केदारनाथ एक धार्मिक जगह है. जिस प्रकार केदारनाथ को एक पर्यटन का स्थल के रूप में प्रोजेक्ट कर यहां मांस-मदिरा का सेवन और यात्रियों द्वारा अनैतिक कार्यों का किया जाना, बाबा केदार के इस प्रकोप को लाने का मुख्य कारण है. इसका एक कारण चारों धामों कि रक्षक, धारी देवी कि मूर्ति हटाना भी माना जाता है. सिद्धपीठ धारी देवी का मंदिर पौड़ी जिले के श्रीनगर से करीब 13 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी किनारे पर स्थित था. श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के कारण यह मंदिर भी बाँध के अंतर्गत आ रहा था.
इसके लिए इसी स्थान पर परियोजना संचालन कर रही कंपनी की ओर से पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था. जैसे ही धरी देवी कि मूर्ति तो उसके तत्कालीन स्थान से हटाया गया. धारी देवी का प्रकोप देखने को मिला और यह भयावह आपदा आई. क्यूकि धारी देवी उत्तराखंड को चारो धामों कि रक्षक भी कही जाती हैं. जिससे इस धार्मिक तर्क को बल मिलता है.
हाल ही में देवभूमि में स्थित और चार धाम यात्रा के मुख्य पड़ाव जोशीमठ कि घटना सामने आई थी. जिस तरह जोशीमठ में जमीन का भू-धंसाव हो रहा है. इसका मुख्य कारण सरकार के अनुसार जोशीमठ में पानी की निकासी की कोई व्यवस्था न होना है. इसके अलावा अलकनंदा नदी के कारण हो रहे कटाव भी भू-धंसाव का मुख्य कारण था. लेकिन स्थानीय नागरिको और कई भू वैज्ञानिकों का मानना हैं कि इसका मुख्य कारण एनटीपीसी द्वारा बिजली परियोजना के लिए बनाई गयी सुरंग है, जो जोशीमठ के नीचे से होकर गुजरती है. इसमे कंपनी द्वारा लगातार धमाके किये जा रहे है.
इसके आलावा चाहे ऑल वैदर हो या टिहरी डेम सभी के दुष्प्रभाव समय-समय पर सामने आते रहते हैं और कई पर्यावरण विदों का मानना हैं कि विकास के नाम पर जिस तरह प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. यह भी देवभूमि और केदारनाथ में नयी आपदाओं कि आश्नाकाओं को पैदा करते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.