देश में 1 मई से 18+ लोगों का कोरोनारोधी टीकाकरण (Vaccination) शुरू हो चुका है. 18 से 44 साल के बीच को करोड़ों लोगों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है. केंद्र और राज्य सरकारें वैक्सीनेशन की रफ्तार को बढ़ाने की कोशिशों में जुटी हुई हैं. वहीं, बीते कुछ दिनों में वैक्सीनेशन करवाने वाले लोगों के औसत में कमी दर्ज की जा रही है. वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार की कई वजहें हैं. इसमें वैक्सीन की बर्बादी सबसे एक कारण है. लेकिन, केरल राज्य ने बर्बाद होने वाली वैक्सीन का इस्तेमाल भी बेहतरीन तरीके से करते हुए 87 हजार से ज्यादा लोगों का टीकाकरण कर दिया. वैसे, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर राज्यों को वैक्सीन की 10 फीसदी तक बर्बादी होने तक की छूट मिली हुई है. इस स्थिति में ये कहा जा सकता है कि केरल राज्य का वैक्सीनेशन में इस तरह का शानदार प्रदर्शन अन्य राज्यों के लिए एक बड़ी सीख माना जा सकता है.
वैक्सीन की बर्बादी करने में लक्षद्वीप सबसे अव्वल है. यहां 9.76 फीसदी वैक्सीन बर्बाद हुई है.
वैक्सीन की बर्बादी रोकने में कामयाब हुआ केरल
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने एक ट्वीट करते हुए जानकारी साझा की थी कि राज्य को केंद्र सरकार की ओर से टीकाकरण के लिए 73,38,806 वैक्सीन की डोज दी गई थीं. जिसे प्रदेश के हेल्थ वर्कर्स और नर्सों ने मिलकर आश्यर्यजनक रूप से वैक्सीन की बर्बादी को रोकते हुए 87,358 अतिरिक्त तैयार कर लीं. वैक्सीनेशन में किए गए इस शानदार प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी केरल की तारीफ की है. इस बात में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि केरल के हेल्थ वर्कर्स और नर्सों ने कुशलता के साथ वैक्सीन को बर्बाद होने से बचाया और अन्य लोगों को दीं. गौरतलब है कि वैक्सीन की बर्बादी करने में लक्षद्वीप सबसे अव्वल है. हालांकि, यहां 10 फीसदी से कम ही वैक्सीन बर्बाद हो रही है. लक्षद्वीप में 9.76 फीसदी वैक्सीन बर्बाद हुई है. वैक्सीन की बर्बादी करने के मामले में लक्षद्वीप के बाद दूसरे नंबर पर तमिलनाडु (8.83 फीसदी) और तीसरे नंबर पर असम (7.70 फीसदी) है.
कोविशील्ड वायल की बड़ी भूमिका
केरल राज्य द्वारा चलाए गए वैक्सीनेशन प्रोग्राम में किसी को भी टीके की कम डोज नहीं दी गई है. दरअसल, एक वैक्सीन वायल में पांच मिलीलीटर (ML) से करीब 0.55 एमएल या इससे थोड़ी सी ज्यादा वैक्सीन की मात्रा उपलब्ध रहती है. एक वैक्सीन वायल में दस लोगों के लिए डोज होती है. वैक्सीनेशन में एक शख्स को 0.5 एमएल की डोज दी जाती है. केरल में वायल में मिलने वाली अतिरिक्त मात्रा को हेल्थ वर्कर्स ने इस्तेमाल करते हुए हर वायल से करीब एक अतिरिक्त डोज तैयार की और लोगों को दी. वैक्सीन की वायल खुलने पर उसे चार घंटे के अंदर इस्तेमाल करना होता है. चार घंटे के बाद वैक्सीन खराब हो जाती है, अंदाजा लगाया जा रहा है कि केरल में वैक्सीनेशन के दौरान ऐसी व्यवस्था की गई होगी कि वायल का पूरा इस्तेमाल किया गया हो और बिल्कुल भी वैक्सीन बर्बाद नहीं की गई होगी.
अगर सेंटर पर 10 से कम लोग होते हैं, तो टीकाकरण को अगले दिन के लिए टाल दिया जाता है.
हेल्थ वर्कर्स और नर्सों ने कर दिया कमाल
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हेल्थ वर्कर्स और नर्सों ने लोगों को वैक्सीनेशन का स्लॉट रजिस्टर्ड करने के बाद एक निश्चित समय पर बुलाया जाता है. अगर सेंटर पर 10 से कम लोग होते हैं, तो टीकाकरण को अगले दिन के लिए टाल दिया जाता है. वहीं, इसका एक बड़ा कारण और है कि केरल को मिलने वाली वैक्सीन में सबसे ज्यादा कोविशील्ड वैक्सीन के वायल ज्यादा हैं. वैसे, तो सभी राज्यों को कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड की आपूर्ति ज्यादा की जा रही है. लेकिन, केरल ने इसे 'आपदा में अवसर' बनाया है. दरअसल, कोविशील्ड में 0.55 एमएल या इससे थोड़ी ज्यादा वैक्सीन की अतिरिक्त मात्रा होती है. जबकि, कोवैक्सीन की वायल में 5 एमएल (10 डोज) ही वैक्सीन होती है. भारत में कोविशील्ड का उत्पादन अधिक हो रहा है और कोवैक्सीन आने वाले कुछ समय में अपना उत्पादन बढ़ाएगी.
अन्य राज्यों के लिए बड़ी सीख
देश के अन्य राज्यों में भी कोविशील्ड वैक्सीन की आपूर्ति ज्यादा हो रही हैं. केरल में जिस तरह से वैक्सीन की अतिरिक्त मात्रा का कुशलता से इस्तेमाल कर टीकाकरण के आंकड़ों को बढ़ाया गया है. अन्य राज्यों में भी किया जा सकता है, इसके लिए केवल वैक्सीन लगाने के काम में दक्ष लोगों की जरूरत है. अन्य राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं में लगे हेल्थ वर्कर्स को केरल की ही तरह काम करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है. इसकी वजह से कुछ ही संख्या में सही, लेकिन लोगों का वैक्सीनेशन ज्यादा होगा. ऐसे समय में जब देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर अपने चरम पर है, इस एक छोटे सी कोशिश के सहारे वैक्सीन की बर्बादी रोकी जा सकती है. इसके साथ वैक्सीन की किल्लत तो कुछ हद तक कम किया जा सकता है.
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