कोई लड़की गर्भपात (Abortion) तभी कराना चाहती है जब उसे वह बच्चा नहीं चाहिए होता है फिर उसे कोर्ट के परमिशन की जरूरत क्यों पड़ती है? आए दिन ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें किसी लड़की को अबॉर्शन के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है मगर यह कब तक चलता रहेगा? कब तक लड़कियों को अबॉर्शन के लिए कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ेगा? सरकार, बोर्ड या ऑथॉरिटी कोई ऐसा कदम क्यों नहीं उठाती, जिससे लड़कियों को इस परेशानी का हल मिल जाए.
हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने एक एमबीए की एक छात्रा को 26 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की अनुमति दी है. छात्रा सहपाठी संग आपसी सहमति से स्थापित संबंध के बाद गर्भवती हो गई थी. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि "छात्रा के गर्भ को रखने या नष्ट करने के अधिकार पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है. मेडिकल बोर्ड की राय के अनुसार, वह अभी तनाव में है और इस वक्त अगर वह गर्भ को जारी रखती है तो उसकी जान को खतरा हो सकता है. महिलाओं का प्रजनन अधिकार संविधान की धारा-21 के तहत निजी स्वतंत्रता के तहत आता है."
असल में इस छात्रा को उसके गर्भवती होने की जानकारी लेट मिली. जब उसके पीरियड्स में गड़बड़ी और शारीरिक परेशानी होने लगी तब उसने डॉक्टर को दिखाया और अल्ट्रासाउंड कराया.
इस तरह के अधिकतर मामलों में क्या होता है?
लड़की गर्भवती हो जाती है. अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो गर्भपात कराने के लिए अस्पताल जाती है. जहां उसे नियमों का हवाला देकर अबॉर्शन करने से मना कर दिया जाता है. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? मजबूरीवश उसे कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है. वह...
कोई लड़की गर्भपात (Abortion) तभी कराना चाहती है जब उसे वह बच्चा नहीं चाहिए होता है फिर उसे कोर्ट के परमिशन की जरूरत क्यों पड़ती है? आए दिन ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें किसी लड़की को अबॉर्शन के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है मगर यह कब तक चलता रहेगा? कब तक लड़कियों को अबॉर्शन के लिए कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ेगा? सरकार, बोर्ड या ऑथॉरिटी कोई ऐसा कदम क्यों नहीं उठाती, जिससे लड़कियों को इस परेशानी का हल मिल जाए.
हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने एक एमबीए की एक छात्रा को 26 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की अनुमति दी है. छात्रा सहपाठी संग आपसी सहमति से स्थापित संबंध के बाद गर्भवती हो गई थी. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि "छात्रा के गर्भ को रखने या नष्ट करने के अधिकार पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है. मेडिकल बोर्ड की राय के अनुसार, वह अभी तनाव में है और इस वक्त अगर वह गर्भ को जारी रखती है तो उसकी जान को खतरा हो सकता है. महिलाओं का प्रजनन अधिकार संविधान की धारा-21 के तहत निजी स्वतंत्रता के तहत आता है."
असल में इस छात्रा को उसके गर्भवती होने की जानकारी लेट मिली. जब उसके पीरियड्स में गड़बड़ी और शारीरिक परेशानी होने लगी तब उसने डॉक्टर को दिखाया और अल्ट्रासाउंड कराया.
इस तरह के अधिकतर मामलों में क्या होता है?
लड़की गर्भवती हो जाती है. अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो गर्भपात कराने के लिए अस्पताल जाती है. जहां उसे नियमों का हवाला देकर अबॉर्शन करने से मना कर दिया जाता है. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? मजबूरीवश उसे कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है. वह नियम-कानून के चक्कर में उलझ जाती है. तब तक उसके पेट में पल रहा बच्चा हर दिन बढ़ता जाता है. एक-एक दिन उसके लिए भारी रहता है. मगर उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं रहता है. सच तो यह है कि उस लड़की को छोड़कर किसी और का कोई नुकसान नहीं होता है. लड़की के मन में समाज में बदनामी का डर अलग बना रहता है. हमारे समाज में अविवाहित लड़की का बच्चे को जन्म देना किसी कलंक से कम तो है नहीं, ऐसे में उसकी हालत क्या होगी हम समझ सकते हैं.
इसके पहले सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुआ कहा था कि भारत में सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है, चाहे वह शादीशुदा हो या अविवाहित. किसी महिला की वैवाहित स्थिति को आधार बनाकार उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने 24 हफ्ते की गर्भवती अविवाहित लड़की को अबॉर्शन की इजाजत दी थी. असल में दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी गर्भवती लड़की की अबार्शन कराने की अर्जी को खारिज कर दिया था.
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप पर कहा था कि अगर महिला पति की जोर-जबरदस्ती से गर्भवती हुई है तो वह भी 24 हफ्ते तक गर्भपात करवा सकती है. विवाहित महिला का गर्भ उसकी मर्जी के खिलाफ है तो इसे बलात्कार की तरह देखते हुए उसे गर्भपात की इजाजत मिलनी चाहिए.
कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर कोई अविवाहित लड़की अपने लिव इन पार्टनर से गर्भवती हुई है और पार्टनर उसका साथ छोड़ देता है तो उसे बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.
जब गर्भपात कराने की चाह रखने वाली लड़की कोर्ट के चक्कर ही काटने हैं तो फिर कोर्ट के इन फैसलों को क्या फायदा है? ऐसे तो कल को फिर एक गर्भवती लड़की का मामला आएगा और फिर उसे कोर्ट ही जाना पड़ेगा. इस हिसाब से लड़कियों को चाहिए कि वह अबॉर्शन के लिए अस्पताल ना पहुंचकर सीधे कोर्ट की पहुंच जाएं, क्योंकि उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है...इस बीच जो उन्हें शारीरिक और मानसिक परेशानी होगी वह सिर्फ वही समझ सकती हैं क्योंकि इन फैसलों का लड़कियों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है...
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