लड़का-लड़की, साल 2006 में दिल्ली में मिले और 2009 में उन्होंने शादी कर एक साथ जीने-मरने की कसमें खाईं. शादी के 7-8 साल खुशी-खुशी बीते, तीन बच्चे भी हुए...मगर साल 2017 से दोनों में अनबन होनी शुरु हो गई. पत्नी को शक होने लगा कि पति का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है, इसलिए उसका पति के प्रति व्यवहार बदलने लगा. वह कई बार पति से बहस करने लगती. इसके बाद पति ने अलप्पुझ़ा फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई मगर वह खारिज हो गई.
इसके बाद पति ने दोबारा तलाक लेने के लिए केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) का दरवाजा खटखटाया. पति ने अपनी याचिका में कहा था पत्नी उस पर शक करती है और क्रूर व्यवहार करती है. उसे लगता है कि पति किसी और के साथ अवैध संबंध है. वहीं पत्नी का कहना था कि उसने कभी भी पति के साथ मार-पीट नहीं की है, हिंसक होना तो दूर की बात है.
इसके बाद जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की बेंच ने फैसला सुनाते हुए तलाक की अर्जी ठुकरा दी और कहा कि, "आज की युवा पीढ़ी शादी को बुराई की तरह देखती है. उन्हें आजादी चाहिए, इसलिए वे शादी के झमेले में नहीं पड़ना चाहते हैं. रिश्तों और शादी को 'यूज एंड थ्रो कल्चर' ने बर्बाद किया है. इसलिए लिव इन रिलेशनशिप के मामले काफी बढ़ रहे हैं. यह हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है. असल में नई पीढ़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहती है. आज के युवा WIFE शब्द को 'Worry Invited For Ever' यानी हमेशा के लिए चिंता की तरह देखते हैं. जबकि पहले इसे 'Wise Investment For Ever' यानी हमेशा के लिए निवेश माना जाता था. इसलिए ये शादी करने के बजाय लिव इन रिलेशनशिप में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. इसमें उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती और वे जब चाहें इस रिश्ते से आजाद हो सकते हैं."
कोर्ट ने कहा, रिश्तों और शादी को 'यूज एंड थ्रो कल्चर' ने बर्बाद किया है
कोर्ट ने कहा कि "गॉड्स ऑन कंट्री कहा जाने वाला केरल अपने पारिवारिक संबंधों के लिए जाना जाता था मगर आज की युवा पीढ़ी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की वजह से स्वार्थी होकर आसानी से रिश्तों को तोड़ देती है. उनके तलाक का असर बच्चों पर भी पड़ता है. मामूली कहासुनी की वजह से रिश्ते नहीं तोड़े जाते, इसका बुरा असर समाज पर पड़ता है. किसी वैध कारण से पत्नी का शक करना, उसका सवाल करना और दुखी होना आम व्यवहार है. इसे क्रूरता मानकर तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता ".
यह फैसला जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की बेंच ने सुनाया. जिसपर लोगों ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी. इडलीवड़ा नामक यूजर ने लिखा है कि "आज़ाद जीवन जीने के इच्छुक युवाओं से आपको क्या परेशानी है? विवाह और संबंधों के बारे में 'नैतिक' व्याख्यान करने के लिए किसने कहा?" वहीं लिशा कहती हैं कि "ये नैतिक विज्ञान के व्याख्यान में हैं...". इस पर रितुराज कहते हैं कि "चिंता की बात तो यह है कि जजों में एक महिला भी थीं, वह खुद भी 'निवेश' शब्द का इस्तेमाल महिलाओं के लिए कर रही हैं."
इस पर निलेश भोषले ने लिखा है कि "समस्या युवाओं के लिए नहीं है...समस्या उनके जीवनसाथी और बच्चों के लिए है... जिस तरह पैसे का लालच पर्यावरण को नष्ट कर देता है, उसी तरह वासना का लोभ परिवार, प्रेम और नैतिकता को नष्ट कर देता है." वहीं धान्या कहती हैं कि "जो लोग धोखा देना चाहते हैं, वो तो दे ही देंगे...चाहे शादीशुदा हों हो या लिव इन में..."
कुल मिलाकर कोर्ट के फैसले के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दिया है. एक ने लिखा है कि "और हम न्याय की उम्मीद करते हैं..."
मतलब साफ है कई लोगों को कोर्ट की यह टिप्पणी पसंद नहीं आई है. उनका मानना है कि "प्रगतिशील समाज में इस तरह की रुढ़िवादी सोच का क्या मतलब है, यह आरक्षण व्यवस्था है जिसके बिना ये प्रथम दृष्टया न्यायाधीश नहीं बन सकते हैं."
वहीं कई ने कोर्ट के फैसला का समर्थन किया है. उनका मानना है कि "क्या वफादारी, दया और प्रेम रूढ़िवादी है? किसी का इस्तेमाल कर उसे फेंक दो, है ना? अंडरगारमेंट्स की तरह पार्टनर बदलना स्वार्थ है? इसे किसी भी तर्क से सही साबित नहीं किया जा सकता है."
वहीं एक यूजर ने पूछा है कि "क्या वफादारी शादी से ही आती है? कई बार लोग शादी में एडजस्ट करते हैं. एक जिंदगी जीता है और दूसरा उसे मजबूरी में निभाता है, ताकि उसका घर ना टूटे...हर किसी को अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने की आजादी है, हम उसे बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. अगर वह गलती करता है तो उसे भुगतना पड़ेगा...मगर युवाओं को अपनी पसंद से जीने के लिए हम उन्हें बदनाम नहीं कर सकते..."
वैसे कोर्ट की इस टिप्पणी पर आपकी क्या राय है?
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