140 करोड़ वाले देश में सेक्स एंड सेक्सुअल अवेयरनेस टैबू है. कोई नई बात नहीं बता रही आप माने या माने पहली पंक्ति में ही सेक्स पढ़ते हुए ज़रा सी असहजता हुई होगी. ये भी सच है इसे पढ़ने से ज़्यादा असहज अधिकतर लोग अपना सर्च लॉग पब्लिक करने में होंगे. हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है की हमारे समाज में सभ्यता और परम्परा का निर्वाह निर्बाध हो रहा है. 'हम साथ साथ हैं.' इस स्वप्न में जीने की हमारी आदत और इसे सच में बदलने की कोशिश में आसपास की गंदगी को झाड़ पोंछ कर दरी के नीचे छुपाने में हम माहिर हैं. कुछ साल पहले करिश्मा कपूर ने अपने तलाक के समय मिडिया और दुनिया से साझा किया था की उनके पति व्यवसायी संजय कपूर ने बाकायदा उनकी कीमत लगायी थी. जी हां, अपनी ही पत्नी के साथ रात गुज़ारने की कीमत. इन शार्ट पति के भेस में ही वाज़ प्लेयिंग अ पिंप. अब सुनने पढ़ने में सबसे पहले घृणा हैरानी गुस्से के साथ एक ख्याल आया कि, 'बड़े घरों के संस्कारहीन.' हिदुस्तान में ये सब होता होगा. हमारे आपके पड़ोस तक में नहीं होता हमारे घर की तो बात ही छोड़ दीजिये.
कहते हैं खतरे को देख कर कबूतर अपनी आंखें बंद कर लेता है. अब कितना सच कितना झूठ ये तो कबूतर जाने लेकिन गर्त में गिरते हुए समाज की तरफ हमने अपनी आंखें बंद कर ली और ये सोच लिया कि, 'ना ये हमारे घर में नहीं होता.' सोचने की बात है कि आये दिन के हादसे आखिर किस घर के पुरुषों के द्वारा किये जाते हैं.
केरल में सभ्य संस्कारी भारतीय समाज को शर्मसार करने वाला एक सच सामने आया. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए एक फेसबुक समूह का पता चला जिसकी नींव में है यौन कुंठित पुरुष और महज़ शरीर समझी जाने वाली औरतें जिनके वो मालिक /पति है. वाईफ स्वैपिंग - मतलब पत्नियों...
140 करोड़ वाले देश में सेक्स एंड सेक्सुअल अवेयरनेस टैबू है. कोई नई बात नहीं बता रही आप माने या माने पहली पंक्ति में ही सेक्स पढ़ते हुए ज़रा सी असहजता हुई होगी. ये भी सच है इसे पढ़ने से ज़्यादा असहज अधिकतर लोग अपना सर्च लॉग पब्लिक करने में होंगे. हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है की हमारे समाज में सभ्यता और परम्परा का निर्वाह निर्बाध हो रहा है. 'हम साथ साथ हैं.' इस स्वप्न में जीने की हमारी आदत और इसे सच में बदलने की कोशिश में आसपास की गंदगी को झाड़ पोंछ कर दरी के नीचे छुपाने में हम माहिर हैं. कुछ साल पहले करिश्मा कपूर ने अपने तलाक के समय मिडिया और दुनिया से साझा किया था की उनके पति व्यवसायी संजय कपूर ने बाकायदा उनकी कीमत लगायी थी. जी हां, अपनी ही पत्नी के साथ रात गुज़ारने की कीमत. इन शार्ट पति के भेस में ही वाज़ प्लेयिंग अ पिंप. अब सुनने पढ़ने में सबसे पहले घृणा हैरानी गुस्से के साथ एक ख्याल आया कि, 'बड़े घरों के संस्कारहीन.' हिदुस्तान में ये सब होता होगा. हमारे आपके पड़ोस तक में नहीं होता हमारे घर की तो बात ही छोड़ दीजिये.
कहते हैं खतरे को देख कर कबूतर अपनी आंखें बंद कर लेता है. अब कितना सच कितना झूठ ये तो कबूतर जाने लेकिन गर्त में गिरते हुए समाज की तरफ हमने अपनी आंखें बंद कर ली और ये सोच लिया कि, 'ना ये हमारे घर में नहीं होता.' सोचने की बात है कि आये दिन के हादसे आखिर किस घर के पुरुषों के द्वारा किये जाते हैं.
केरल में सभ्य संस्कारी भारतीय समाज को शर्मसार करने वाला एक सच सामने आया. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए एक फेसबुक समूह का पता चला जिसकी नींव में है यौन कुंठित पुरुष और महज़ शरीर समझी जाने वाली औरतें जिनके वो मालिक /पति है. वाईफ स्वैपिंग - मतलब पत्नियों की अदला बदली. आपसी समझौते के तहत जिस्म फरोशी का नया तरीका. इस घटिया कारनामे का पता पुलिस को तब चला जब कोट्टायम की एक महिला ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई कि उसका पति, उसकी मर्ज़ी के बगैर किसी पर पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने के लिए उसके ऊपर दबाव डाल रहा है.
अपने ही पति पर ऐसे गंभीर आरोपों के बाद पुलिस हरकत में आई और उसने मामले को गंभीरता से लेते हुए एक्शन लिया और पति और उसके दोस्तों को गिरफ्तार किया.फिलहाल 7 लोग गिरफ्तार और 25 निगरानी में हैं. ये समूह करीब 1000 जोड़ों का था जो 'वाईफ स्वैपिंग 'के मामले में शामिल थे. इसपर बहस होगी इसपर शक है, क्योंकि अपनी गलतियों को स्वीकार कर चिंतन करना हमे नहीं आता. मान ले कि बहस हुई तो विषय क्या होगा?
पढ़े लिखे समाज ने बनाई संस्कारों से दूरी- अथवा- नई पीढ़ी की नई नीचता
जी, क्योंकि खबर बनेगी तो बेंची जाएगी किसी न किसी कलेवर में. हो सकता है कोई मिडिया हॉउस इसे किसी खास राजनैतिक पार्टी के साशन से ही जोड़ ले और हद शायद तब हो जाये जब इस केस में लिप्त 1000 जोड़ों का धर्म पूछ कर डाटा एनालिसिस हो की किस धर्म के लोग कितने अनैतिक और ज्यादा गर्त में हैं.
इसमें से कुछ भी हो सकने की उम्मीद है लेकिन तमाम परतों के भीतर कुंठित पुरुष की मानसिकता और औरत को यौनेच्छा पूरी करने के साधन के अतिरिक्त कुछ न मानने के सच का ज़िक्र भी नहीं होगा.
ये वो समाज है जहां बसों और मेट्रो में ऑटो जाती हर महिला ने कभी न कभी वो हाथ महसूस किया है जो लिजलिजे केचुए सा उसके शरीर पर रेंगता हुआ निकलता है. हम उसी सोशल मिडिया के सशक्त समाज का हिस्सा है जहां पुरुष इनबॉक्स में अपनी उम्र का लिहाज़ किये बिना अपने ओछेपन का परिचय देते हैं. अनजान आदमी अपनी कुंठाओं को तस्वीरों और मेसेज के ज़रिये अनजान औरतों को भेज कर अपने मानसिक असंतुलन को उजागर करते हैं.
मीडिया का योगदान
जहां एक तरफ चैनल की भरमार है और रिपीट मोड़ में धार्मिक प्रवचन और सीरियल दिखाए जा रहे हैं. वहीं बाजार में उपलब्ध यूट्यूब के चैनल OTT सेक्स और वायलेंस को गर्म भजिये की तरह बेच रहे हैं. 'यह कॉन्टेंट 18 + की उम्र वालों के लिए है.' बस इतना कह कर कुंठा के शिकार पुरुषो की बीमारी को बढ़ाने का कार्य करती है. कम्प्यूटर पर खेले जाने वाले रेप डे और बॉयफ्रेंड डनजीओं जैसे गेम्स कितने खतरनाक है इसका हमे अंदाज़ा भी नहीं हैं. हम यही सोच कर खुश होते हैं की ये सब पश्चिम समाज का हिस्सा हैं.
कानून की नज़र में
हमारे कानून में विवाहेतर संबंध जिसे आम भाषा में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कहते हैं - इसे तलाक का आधार माना गया है किन्तु इसे क़ानूनी अपराध और सज़ा की परिधि से दूर रखा है. पुरुष जानता है की उसकी इस हरकत पर बेइज़्ज़ती भले हो सज़ा नहीं होगी. बेशर्मी की सारी हद से परे हमारे आपके पड़ोस में भी ऐसे पुरुष दिखते हैं जिसे देख कर अनदेखा किया जाता है. सोचने वाली बात है की 1000 जोड़ों में से किसी और ने ये आवाज़ क्यों नहीं उठाई.
किसी भी महिला को उसके सोचने समझने की उम्र से ही इस बात के लिए मानसिक तौर पर तैयार किया जाता है की उसका घर उसकी उबलब्धि और पति उसके सर का ताज है. ताज चुभे ,दर्द दे ,खून निकले दम घोंटे तब भी उसे धारण कर मुस्कराओ. तो हर 3 में से 1 महिला घरेलू हिंसा की शिकार है लेकिन हम तलाक की सबसे कम दर पर गर्व का घंटा बजा रहे हैं.
31 % विवाहित औरते कभी न कभी सेक्सुअल या इमोशनल /भावनात्मक एब्यूज का शिकार हुई हैं, लेकिन हम संस्कारों का गान करते नहीं थकते.यूएन के द्वारा दक्षिण एशियाई देशों में की गयी रिसर्च के अनुसार 74% से 94% पुलिस ही मानती है कि पति द्वारा पत्नी के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती गलत नहीं है.
दशकों से चली आ रही इस सोच के साथ कुछ पुरुषों ने अब एक कदम आगे बढ़ा कर अपनी पत्नी को निर्जीव वस्तु के समान एक बिस्तर से दूसरे पर रखने का मन बना लिया. और शायद इसी मालिकाना सोच और कुंठित बुध्दि से जन्म हुआ - वाईफ स्वैपिंग ग्रुप का. जिस समाज ने अभी डोमेस्टिक वायलेंस यानि घरेलू हिंसा के सच को ही नहीं स्वीकारा है वो मर्दों की यौन कुंठा और विवाह जैसे संबंधो में हो रहे सेक्सुअल एब्यूज,फोर्सड एंड अननैचुरल सेक्स जैसे अपराधों की स्वीकारोत्ति कैसे करेगी. इन्हे समझना और इससे जूझने वाले की मदद तो बहुत दूर की कौड़ी है.
क्या होना चाहिए? कहां गलत हैं? सुधार की कितनी गुंजाईश है और है भी की नहीं इन सब से इतर एक स्वीकारोक्ति की ज़रूरत सबसे पहले है. भारतीय समाज कई स्तरों पर बीमार हैं.
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