अगर सवाल है कि भारत के किस राज्य के लोग सबसे ज्यादा पढ़ लिखे हैं तो सबसे पहला नाम केरल का आता है. सेंसेक्स 2011 बताता है कि यहां की साक्षरता दर 93.91 है. लेकिन इसी राज्य के लोगों की धार्मिक कट्टरता उन्हें उनकी इस उपलब्धि को धोती नजर आती है.
पहले देवी देवताओं को खुश करने के लिए पशु बलि देने की प्रथा थी जो अब कहीं सुन भी लें तो पशु प्रेमियों का माथा ठनक जाता है. लेकिन केरल तिरुवनंथपुरम के विथुरा गांव के लोगों ने तो सारी हदें पार कर दी हैं. देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पशुओं का रक्त नहीं बल्कि इंसानों का रक्त चाहिए. एक पब्लिक नोटिस जारिए उन्होंने बाकायदा लोगों से अपील की है कि लोग देवी के अभिषेक के लिए रक्त दान करें.
देवीयोदु श्रीविदुआरी वैद्यनाथ नाम के मंदिर में ये नोटिस कालीयुत्तू महोत्सवम के मद्देनजर लगाया गया है. 14 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव के दूसरे दिन देवी काली का अभिषेक किया जाता है, जो इंसान के रक्त से होने की परंपरा बताई जाती है. मंदिर प्रशासन का कहना है कि देवी के अभिषेक के लिए रक्त बलि के जरिए नहीं, बल्कि दान के जरिए जुटाया जाता है. इस प्रथा को कालीयुत्तू महोत्सवम के रूप में जाना जाता है.
इस बात का खास खयाल रखा गया है कि देवी के अभिषेक के लिए सरकारी मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ ही रक्त इकट्ठा करते हैं, जो व्यवस्थित तरीके से डिस्पोजेबल सीरिंज का प्रयोग करते हैं. इसलिए डरने वाली कोई बात नहीं है. महोत्सव 11 मार्च से 24 मार्च तक चलेगा, जबकि रक्त से देवी काली के अभिषेक की रस्म 12 मार्च को निभाई जाएगी.
अगर सवाल है कि भारत के किस राज्य के लोग सबसे ज्यादा पढ़ लिखे हैं तो सबसे पहला नाम केरल का आता है. सेंसेक्स 2011 बताता है कि यहां की साक्षरता दर 93.91 है. लेकिन इसी राज्य के लोगों की धार्मिक कट्टरता उन्हें उनकी इस उपलब्धि को धोती नजर आती है.
पहले देवी देवताओं को खुश करने के लिए पशु बलि देने की प्रथा थी जो अब कहीं सुन भी लें तो पशु प्रेमियों का माथा ठनक जाता है. लेकिन केरल तिरुवनंथपुरम के विथुरा गांव के लोगों ने तो सारी हदें पार कर दी हैं. देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पशुओं का रक्त नहीं बल्कि इंसानों का रक्त चाहिए. एक पब्लिक नोटिस जारिए उन्होंने बाकायदा लोगों से अपील की है कि लोग देवी के अभिषेक के लिए रक्त दान करें.
देवीयोदु श्रीविदुआरी वैद्यनाथ नाम के मंदिर में ये नोटिस कालीयुत्तू महोत्सवम के मद्देनजर लगाया गया है. 14 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव के दूसरे दिन देवी काली का अभिषेक किया जाता है, जो इंसान के रक्त से होने की परंपरा बताई जाती है. मंदिर प्रशासन का कहना है कि देवी के अभिषेक के लिए रक्त बलि के जरिए नहीं, बल्कि दान के जरिए जुटाया जाता है. इस प्रथा को कालीयुत्तू महोत्सवम के रूप में जाना जाता है.
इस बात का खास खयाल रखा गया है कि देवी के अभिषेक के लिए सरकारी मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ ही रक्त इकट्ठा करते हैं, जो व्यवस्थित तरीके से डिस्पोजेबल सीरिंज का प्रयोग करते हैं. इसलिए डरने वाली कोई बात नहीं है. महोत्सव 11 मार्च से 24 मार्च तक चलेगा, जबकि रक्त से देवी काली के अभिषेक की रस्म 12 मार्च को निभाई जाएगी.
अब बताइए, रक्त दान जिसे सबसे बड़ा दान कहा गया है, जिससे किसी इंसान की जान बचाई जा सकती है, उसी रक्त से काली मां की मूर्ति को नहलाया जाएगा. क्यों... क्योंकि काली मां प्रसन्न होंगी. अरे, काली मां को क्या वाकई ऐसे भक्त चाहिए जो उन्हें रक्त दें. ये कैसी आस्था है?
मामला सिर्फ इतना नहीं है, ये और गंभीर तब हो जाता है जब दक्षिण भारत से ही कई जगह बच्चों की सर कटी लाशें मिलती हैं. इस खबर के आने से पहले आंध्र प्रदेश के तिरुपति में कलावाकुंता रेजरवॉर में करीब एक साल की मासूम बच्ची की सिर कटी लाश मिली थी. अभी, फरवरी में भी हैदराबाद के उप्पल इलाके में एक कैब ड्राइवर के घर की छत से एक नवजात का सिर कटा शव पाया गया था. और हम अब इतने भी भोले नहीं कि इन सब घटनाओं के तार जोड़ न सकें.
सबसे साक्षर राज्य से जब इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं तो ये समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि लोगों की शिक्षा आखिर किस दिशा में काम कर रही है. शिक्षा अगर लोगों की सोच नहीं बदल पा रही तो फिर ये शिक्षा किस काम की. हम किसी भी व्यक्ति के आध्यात्मिक विश्वास पर टिप्पणी नहीं कर सकते लेकिन अंधविश्वास या धार्मिक कट्टरता के लिए किसी की बलि देना या फिर मानव रक्त का इस्तेमाल इस रूप में करना कतई स्वीकार योग्य नहीं है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.