एक हिंदू और एक मुस्लिम महिला एक साथ जयपुर के एक अस्पताल में ईलाज के लिए पहुंचे. डाक्टर ने अनीता और तस्लीम दोनों को बता दिया कि उनकी किडनी काम नहीं कर रही है इसलिए बदलना पड़ेगा. सुनने और कहने में तो ये बेहद सामान्य सी बात है लेकिन इसमें खास ये रहा कि अजमेरी गेट पर रहनेवाली 36 साल की तस्लीम के पति अनवर की किडनी हसनपुरा में रहनेवाले 38 साल की अनीता को और अनीता के पति विनोद की किडनी तस्लीम को लगाई गई.
तस्लीम और अनीता दोनों की किडनी खराब हो गई थीं |
दो जिंदगियां तो बच ही गईं सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम हुई. किडनी के जरिए ही सही लेकिन सांप्रदायिक सद्भाव का यह दुर्लभ मामला हमें इतना बता गया कि दिल को धड़कने के लिए मजहब की बनाई कोई मशीन नही होती. भगवान के बनाए शरीर के पूर्जे तो सभी इंसानों में एक ही हैं, जिसे दुनिया में कई जगहों पर मजहबी नफरत का रंग देकर खत्म कर दिया जाता है.
एक दूसरे की पत्नियों को अपनी किडनी देकर उनकी जान बचाई |
अनवर और तस्लीम कहते हैं कि हमारे हिंदू भाई विनोद और अनीता की तरफ से ईद को मौके पर दिया गया ये हमारे जिंदगी का सबसे बड़ा उपहार है, मानो खुदा ने इन्हें हमारे लिए ही भेजा हो. इसी तरह विनोद और अनीता कहते हैं कि दीवाली अभी डेढ़ महीने दूर है लेकिन अनवर और तस्लीम ने हमारे घर अभी से दिवाली मना...
एक हिंदू और एक मुस्लिम महिला एक साथ जयपुर के एक अस्पताल में ईलाज के लिए पहुंचे. डाक्टर ने अनीता और तस्लीम दोनों को बता दिया कि उनकी किडनी काम नहीं कर रही है इसलिए बदलना पड़ेगा. सुनने और कहने में तो ये बेहद सामान्य सी बात है लेकिन इसमें खास ये रहा कि अजमेरी गेट पर रहनेवाली 36 साल की तस्लीम के पति अनवर की किडनी हसनपुरा में रहनेवाले 38 साल की अनीता को और अनीता के पति विनोद की किडनी तस्लीम को लगाई गई.
तस्लीम और अनीता दोनों की किडनी खराब हो गई थीं |
दो जिंदगियां तो बच ही गईं सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम हुई. किडनी के जरिए ही सही लेकिन सांप्रदायिक सद्भाव का यह दुर्लभ मामला हमें इतना बता गया कि दिल को धड़कने के लिए मजहब की बनाई कोई मशीन नही होती. भगवान के बनाए शरीर के पूर्जे तो सभी इंसानों में एक ही हैं, जिसे दुनिया में कई जगहों पर मजहबी नफरत का रंग देकर खत्म कर दिया जाता है.
एक दूसरे की पत्नियों को अपनी किडनी देकर उनकी जान बचाई |
अनवर और तस्लीम कहते हैं कि हमारे हिंदू भाई विनोद और अनीता की तरफ से ईद को मौके पर दिया गया ये हमारे जिंदगी का सबसे बड़ा उपहार है, मानो खुदा ने इन्हें हमारे लिए ही भेजा हो. इसी तरह विनोद और अनीता कहते हैं कि दीवाली अभी डेढ़ महीने दूर है लेकिन अनवर और तस्लीम ने हमारे घर अभी से दिवाली मना दी.
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40 साल के अनवर कहते हैं कि ऐसे तो हमने कभी हिंदू-मुस्लिम में भेद भाव नहीं किया मगर अब तो हमारे जिंदगी में सभी धर्मों से बड़ी इंसानियत ही रहेगी. कहने को तो दुनिया ने एक इंसान को अनवर अहमद बना दिया और दूसरे को विनोद मेहरा. एक मुस्लिम परिवार में जन्मा और इस्लामी तहजीब के अनुसार परवरिश हुई तो दूसरा हिंदू परिवार में जन्मा और हिंदू रीति-रिवाजों से पला-बढा. अनवर की शादी तस्लीम जहां से हुई और विनोद की शादी अनीता से. मगर बीमारी को क्या पता कि किस मजहब के व्यक्ति को जकड़ना है. अनीता और तस्लीम की किडनियां अलग-अलग वजहों से खराब हो गईं. अनवर और विनोद दोनों दुकानदार हैं और इनके पास ज्यादा पैसे भी नहीं हैं. अनवर के चार बेटे-बेटियां हैं तो विनोद के भी दो बेटे हैं.
सफल रहा ये ट्रांसप्लांट |
इनका इलाज करने वाले निजी अस्पताल के डाक्टर आशुतोष सोनी कहते हैं कि इस तरह का पहला किडनी ट्रांसप्लांट हैं जिसमें एक हिंदू और मुस्लिम आपस में किडनी बदलकर ट्रांसप्लांट करवा रहे हैं. नेफ्रोलोजिस्ट डा. सोनी कहते हैं कि 90 फीसदी मामलों में महिलाएं किडनी देती हैं लेकिन इसमें ये भी खास है कि घर के पुरुषों ने महिलाओं के लिए अपनी किडनी दी है.
अपने डॉक्टर के साथ दोनों परिवार |
ये संभव कैसे हुआ, ये भी बेहद दिलचस्प किस्सा है
अनवर अपनी पत्नी तस्लीम को दिखाने इसी अस्पताल में लेकर गया था. तस्लीम को घुटने और सिर में दर्द की शिकायत बहुत रहती थी जिसकी वजह से वो पेन किलर लेती थी. लगातार पेन किलर लेने से उसकी किडनी खराब हो गई थी. इसी तरह अनीता को भी उसके पति विनोद इसी अस्पताल में लेकर आते थे. अनीता कुछ सालों से ग्लोरेमुलर डिजिज से पीड़ित थी जिसकी वजह से इनकी किडनी खराब हो गई थी.
दोनों ही महिलाएं और पुरुष अब ठीक हैं और इन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है |
डा. सोनी ने जब दोनों को कहा कि किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा तो दोनों के पति अपनी-अपनी पत्नियों को किडनी देने के लिए तैयार हो गए. मगर इसे संयोग कहें या कुदरत का लिखा दोनों पतियों के ब्लड ग्रुप अपनी पत्नियों से नहीं मिले लेकिन अनवर और अनीता दोनों का ही ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव निकला जबकि विनोद और तस्लीम का ए पॉजिटिव निकला. डा. सोनी ने जब इन दोनों को ये बात बताई और उन्होंने दोनों परिवारों से कहा कि ऑपोजिट ब्लड ग्रुप की भी किडनी ट्रांसप्लांट हो सकते हैं मगर बहुत खर्च आएगा तो इन लोगों ने आपस में बात की और बिना हिंदू-मुस्लिम की बात सोचे एक दूसरे की पत्नियों को किडनी दे दी. फिर आठ डाक्टरों की टीम ने इनका किडनी ट्रांसप्लांट किया.
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सर्जिकल टीम, जिनके प्रयासों से ये ऑपरेशन सफल हो सका |
अस्पताल में काम करनेवाले कर्मचारी बताते हैं कि इन दोनों परिवारों में हमने ऐसी नजदीकी देखी कि दोनों के रिश्तेदार एक दूसरे से मिलन के लिए जाते और फल भी लाते तो दोनों परिवारों के लिए ही.
डाक्टर के अनुसार दोनों ही महिलाएं और पुरुष अब ठीक हैं और इन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है. अपने घर पर आराम कर रहे हैं बस इस दुनिया को ये संदेश दे गए हैं कि धर्म और संप्रदाय जहां भी रास्ता रोकती है इंसानियत वहां रास्ता खोलती है. उम्मीद है इन दोनों परिवारों से नफरत के सौदागर कुछ सीखेंगे.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.