भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हुआ है. एक महीने में कोरोना संक्रमण के मामले एक लाख प्रतिदिन से बढ़कर चार लाख तक पहुंच गए हैं. कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए कई राज्यों ने कुछ शर्तों के साथ लॉकडाउन भी लगा दिया है. इसके बावजूद कोरोना मरीजों की संख्या में कोई रोक लगती नजर नहीं आ रही है. इन सबके बीच भारत में टीकाकरण की रफ्तार पर ब्रेक लगता नजर आ रहा है. बीते अप्रैल महीने में वैक्सीनेशन का जो औसत प्रतिदिन करीब 25 लाख (पहली और दूसरी डोज शामिल) चल रहा था. वह 28 अप्रैल के बाद से लगातार कम होता जा रहा है. देश में 5 मई को 19,55,733 लोगों को वैक्सीन की डोज दी गई है, जिनमें पहली और दूसरी डोज लेने वाले लोग शामिल हैं. टीकाकरण की गति का यह हाल तब है, जब केंद्र सरकार ने 1 मई से 18+ उम्र के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन को शुरू कर दिया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर वो क्या वजहें हैं, जिनके चलते टीकाकरण की रफ्तार सुस्त दिखाई दे रही है?
क्या वैक्सीन की कमी बन रही कारण?
कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा मामलों वाले राज्य लगातार 18+ उम्र के लोगों के वैक्सीनेशन को शुरू करने की मांग कर रहे थे. केंद्र सरकार ने इसे 1 मई से शुरू भी कर दिया, लेकिन टीकाकरण में लगातार कमी दर्ज की जा रही है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों से टीकाकरण कुछ दिनों के लिए बंद किए जाने की खबरें सामने आती रही हैं. राज्य सरकारें टीकों की कमी की बात कहते हुए कुछ दिनों के अंतराल में वैक्सीनेशन ड्राइव पर रोक लगा रही हैं. जिसकी वजह से टीकाकरण की गति पर बड़ा असर पड़ रहा है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में ली गई एक...
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हुआ है. एक महीने में कोरोना संक्रमण के मामले एक लाख प्रतिदिन से बढ़कर चार लाख तक पहुंच गए हैं. कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए कई राज्यों ने कुछ शर्तों के साथ लॉकडाउन भी लगा दिया है. इसके बावजूद कोरोना मरीजों की संख्या में कोई रोक लगती नजर नहीं आ रही है. इन सबके बीच भारत में टीकाकरण की रफ्तार पर ब्रेक लगता नजर आ रहा है. बीते अप्रैल महीने में वैक्सीनेशन का जो औसत प्रतिदिन करीब 25 लाख (पहली और दूसरी डोज शामिल) चल रहा था. वह 28 अप्रैल के बाद से लगातार कम होता जा रहा है. देश में 5 मई को 19,55,733 लोगों को वैक्सीन की डोज दी गई है, जिनमें पहली और दूसरी डोज लेने वाले लोग शामिल हैं. टीकाकरण की गति का यह हाल तब है, जब केंद्र सरकार ने 1 मई से 18+ उम्र के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन को शुरू कर दिया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर वो क्या वजहें हैं, जिनके चलते टीकाकरण की रफ्तार सुस्त दिखाई दे रही है?
क्या वैक्सीन की कमी बन रही कारण?
कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा मामलों वाले राज्य लगातार 18+ उम्र के लोगों के वैक्सीनेशन को शुरू करने की मांग कर रहे थे. केंद्र सरकार ने इसे 1 मई से शुरू भी कर दिया, लेकिन टीकाकरण में लगातार कमी दर्ज की जा रही है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों से टीकाकरण कुछ दिनों के लिए बंद किए जाने की खबरें सामने आती रही हैं. राज्य सरकारें टीकों की कमी की बात कहते हुए कुछ दिनों के अंतराल में वैक्सीनेशन ड्राइव पर रोक लगा रही हैं. जिसकी वजह से टीकाकरण की गति पर बड़ा असर पड़ रहा है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में ली गई एक बैठक में बताया गया है कि राज्यों को करीब 17.7 करोड़ टीके भेजे जा चुके हैं. जब राज्यों के पास टीके उपलब्ध हैं, तो वैक्सीनेशन ड्राइव पर रोक क्यों लगाई जा रही है?
दरअसल, इसके पीछे की एक वजह ये भी है कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को अभी भी केवल 45+ लोगों का टीकाकरण करने के लिए ही मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराई जा रही है. वहीं, 18+ उम्र के लोगों का टीकाकरण करने के लिए राज्य सरकारों को खुद टीके खरीदने हैं. वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को टीकों का 50 फीसदी केंद्र सरकार को मुहैया कराना है. बाकी के 50 फीसदी टीके कंपनियां चाहें तो बाजार में और राज्य सरकारों को बेच सकती हैं. यहां इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि राज्य सरकारें टीकों की खरीद नहीं कर पा रही हैं. वैक्सीन की डोज बर्बाद होना भी वैक्सीन की कमी होने की एक वजह है.
वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट
भारत में देशव्यापी टीकाकरण अभियान में फिलहाल भारत निर्मित दो वैक्सीन (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) ही इस्तेमाल में लाई जा रही हैं. इन दोनों वैक्सीन के असर के बारे में टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद काफी अफवाहें फैलाई गई थीं. जिसमें देश के कई बड़े नेता, बुद्धिजीवी वर्ग और कथित पत्रकार भी शामिल रहे थे. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो इसे भाजपा की वैक्सीन बताकर लगवाने से मना करने की अपील की थी. उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने इस वैक्सीन से नपुंसकता फैलने की बात तक कह दी थी. वैक्सीन के बारे में इस तरह की बातें कहने वालों की लिस्ट बहुत लंबी है. टीकाकरण की शुरुआत में इन लोगों के बयानों से लोगों में वैक्सीन को लेकर भरोसा नहीं बन पा रहा था.
इन बयानों के साथ ही वैक्सीन लगने के बाद होने वाले साइड इफेक्ट्स को लेकर भी भरपूर अफवाहों का दौर जारी है. वैक्सीन लगवाने के बाद मौत, पैरालिसिस अटैक और ब्लड क्लॉटिंग आदि की अफवाहों की वजह से भी लोगों में वैक्सीन को लेकर अभी भी हिचकिचाहट मौजूद है. हाल ही में केंद्र सरकार ने रूसी वैक्सीन स्पूतनिक V के टीके को भी आपातस्थिति में इस्तेमाल की अनुमति दे दी है. हालांकि, अभी इस टीके का इस्तेमाल शुरू होने में 15 से 20 दिन और लग सकते हैं. यह टीका कोरोना वायरस पर 91 फीसदी तक प्रभावी है. वैक्सीन के बारे में केंद्र सरकार की ओर से व्यापक अभियान चलाए जाने की जरूरत है, ताकि लोगों का वैक्सीन पर भरोसा कायम हो सके.
कोरोना के बढ़ते मामले भी वजह
कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे मामलों की वजह से लोगों में घर से निकलने पर संक्रमित होने का डर भी बैठ गया है. लोगों में यह भी डर है कि सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन लेने के दौरान संक्रमित होने का खतरा ज्यादा हो सकता है. दरअसल, सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन लगवाने के लिए काफी भीड़ लगी रहती है. लोगों में कोरोना संक्रमित होने के डर के पीछे यह एक बड़ा कारण कहा जा सकता है. इसी डर की वजह से लोग घरों से कम ही निकल रहे हैं. लोगों को अपना ये डर खत्म करना होगा. अगर वह कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए वैक्सीनेशन सेंटर पर जाएंगे, तो उन्हें संक्रमण होने का खतरा न के बराबर है.
लॉकडाउन भी है बड़ी वजह
कई राज्यों में सरकारों ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी है और इसे धीरे-धीरे बढ़ाया भी जा रहा है. हालांकि, लॉकडाउन के दौरान वैक्सीनेशन के लिए जाने वालों को छूट दी गई है, लेकिन इसके बाद भी लोग घरों से निकलने में हिचकिचा रहे हैं. वैसे, 16 जनवरी को शुरू हुए देशव्यापी टीकाकरण अभियान के 110 दिन बीत चुके हैं. देश में अब तक 16,24,30,828 लोगों को वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है. जिनमें पहली और दूसरी डोज पाने वाले दोनों लोग शामिल हैं. बीती 14 अप्रैल को वैक्सीनेशन ड्राइव के 89वें दिन 33,13,848 लोगों को वैक्सीन की डोज दी गई थी, जो आज साढ़े 19 लाख के आसपास आ गई है.
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