दुनियाभर में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में भारत दूसरे स्थान पर आ चुका है. देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर भयावह हो चुकी है. कई राज्यों में लॉकडाउन लगाने के हालात बन चुके हैं. कोरोना वायरस के चलते देशभर के 1,73,123 लोग जान गंवा चुके हैं. इतना सब होने के बावजूद लोग अपनी सुरक्षा से ऊपर धर्म को तरजीह देते नजर आ रहे हैं. उत्तराखंड सरकार द्वारा धर्मनगरी हरिद्वार में इन दिनों कुंभ का आयोजन जारी है. लाखों की संख्या में लोग यहां आकर कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रहे हैं. कुंभ में भी कोरोना विस्फोट हो चुका है. बीते 10 से 14 अप्रैल के बीच में 2,167 श्रद्धालुओं को (इस संख्या में साधु-संत भी शामिल हैं) कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है. जबकि, बिना कोरोना निगेटिव रिपोर्ट के लोगों को कुंभ परिक्षेत्र में एंट्री नहीं मिल रही है. इस स्थिति में कुंभ की तुलना बीते साल दिल्ली में हुए तब्लीगी जमात के मरकज से होने लगी है. इस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कह रहे हैं कि मरकज की तुलना कुंभ से करना ठीक नहीं है. सवाल उठना लाजिमी है कि कुंभ की तुलना मरकज से क्यों नहीं हो सकती?
पिछले साल कोविड-19 महामारी के शुरूआती दिनों में दिल्ली के निजामुद्दीन में हुआ तब्लीगी जमात का मरकज कोरोना हॉटस्पॉट बनकर सामने आया था. देश-विदेश के तब्लीगी जमात के लोग बड़ी संख्या में इस मरकज में शामिल हुए थे. इनमें से कई लोगों के कोरोना संक्रमित मिलने पर इन्हें 'कोरोना बम' घोषित कर दिया गया था. उस दौरान इन जमातियों को तमाम लानत-मलानत झेलनी पड़ी थी. दिल्ली मरकज में तो कुछ हजार लोग ही शामिल थे, लेकिन कुंभ में लाखों की भीड़ इकट्ठा हो रही है....
दुनियाभर में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में भारत दूसरे स्थान पर आ चुका है. देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर भयावह हो चुकी है. कई राज्यों में लॉकडाउन लगाने के हालात बन चुके हैं. कोरोना वायरस के चलते देशभर के 1,73,123 लोग जान गंवा चुके हैं. इतना सब होने के बावजूद लोग अपनी सुरक्षा से ऊपर धर्म को तरजीह देते नजर आ रहे हैं. उत्तराखंड सरकार द्वारा धर्मनगरी हरिद्वार में इन दिनों कुंभ का आयोजन जारी है. लाखों की संख्या में लोग यहां आकर कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रहे हैं. कुंभ में भी कोरोना विस्फोट हो चुका है. बीते 10 से 14 अप्रैल के बीच में 2,167 श्रद्धालुओं को (इस संख्या में साधु-संत भी शामिल हैं) कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है. जबकि, बिना कोरोना निगेटिव रिपोर्ट के लोगों को कुंभ परिक्षेत्र में एंट्री नहीं मिल रही है. इस स्थिति में कुंभ की तुलना बीते साल दिल्ली में हुए तब्लीगी जमात के मरकज से होने लगी है. इस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कह रहे हैं कि मरकज की तुलना कुंभ से करना ठीक नहीं है. सवाल उठना लाजिमी है कि कुंभ की तुलना मरकज से क्यों नहीं हो सकती?
पिछले साल कोविड-19 महामारी के शुरूआती दिनों में दिल्ली के निजामुद्दीन में हुआ तब्लीगी जमात का मरकज कोरोना हॉटस्पॉट बनकर सामने आया था. देश-विदेश के तब्लीगी जमात के लोग बड़ी संख्या में इस मरकज में शामिल हुए थे. इनमें से कई लोगों के कोरोना संक्रमित मिलने पर इन्हें 'कोरोना बम' घोषित कर दिया गया था. उस दौरान इन जमातियों को तमाम लानत-मलानत झेलनी पड़ी थी. दिल्ली मरकज में तो कुछ हजार लोग ही शामिल थे, लेकिन कुंभ में लाखों की भीड़ इकट्ठा हो रही है. जिनमें दो हजार से ज्यादा लोगों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद भी इसके आयोजन पर रोक लगती नहीं दिख रही है.
उलटा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कुंभ के शाही स्नान में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन होने का दावा कर रहे हैं. हालांकि, उनके इस दावे की पोल मीडिया कवरेज और सोशल मीडिया में सामने आ रही तस्वीरों से खुल जा रही है. कहना गलत नहीं होगा कि उत्तराखंड सरकार मानकर चल रही है कि गंगा स्नान से कोरोना संक्रमण नहीं होगा. यहां बताना जरूरी है कि पहले शाही स्नान में करीब 21 लाख औऱ दूसरे शाही स्नान में करीब 35 लाख लोगों ने स्नान किया था.
कोरोना को लेकर पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है और लाखों की भीड़ सभी नियमों और तर्कों को दरकिनार करते हुए रखकर धर्म की भक्ति में लीन है. जिस तरह से मरकज में पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग आए थे और लौटने पर ये 'कोरोना कैरियर' गए थे. कुंभ में भी देशभर से लोग शामिल हो रहे हैं. जब ये सभी लोग वापस जाएंगे, तो काफी सारे लोग 'कोरोना कैरियर' की भूमिका निभाएंगे. तय बात है कि ये जहां जाएंगे, वहां कोरोना संक्रमण फैलाएंगे. इस आधार पर कुंभ को 'कोरोना कुंभ' आसानी से कहा जा सकता है.
चौंकाने वाली बात ये है कि एक साल पहले जब कोरोना गाइडलाइन और प्रोटोकॉल का नामोनिशान तक नहीं था. तब इन जमातियों को 'कोरोना बम' कहा गया. आज एक साल बाद जब लोगों को कोरोना से जुड़ी हर जानकारी पता है, उसके बाद भी ये लोग अपने साथ अन्य लोगों की जान सांसत में डालने को तैयार हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि शाही स्नान में शामिल हो रहे साधु-संतों आरटी-पीसीआर जांच के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. इस स्थिति में जानबूझकर की जा रही इन गलतियों की वजह से इन्हें भी 'कोरोना बम' क्यों न कहा जाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से 'जान है तो जहान है' से लेकर 'दवाई भी और कड़ाई भी' तक की अपील कर चुके हैं. लेकिन, चुनावी रैलियां करने में पीछे नहीं है. उन्हीं की नक्शेकदम पर चलते हुए लाखों लोगों की आस्था से जुड़े कुंभ की वजह से उत्तराखंड सरकार सीधे तौर पर लाखों की जान खतरे में डाल रही है. कुंभ मेला का आयोजन 30 अप्रैल तक चलेगा और आने वाले समय में यहां स्थितियां बिगड़ने की संभावना कहीं ज्यादा हैं. कोरोना वायरस के बारे में एक बात सभी को पता है कि ये हिंदू-मुस्लिम, अमीर-गरीब, छोटे-बड़े वगैरह का भेद नहीं करता है. कोरोना महामारी से जान गंवाने वाले लोगों में सभी तरह के लोग शामिल हैं.
इसके बावजूद सरकारों के पास कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों को लेकर कोई सटीक जवाब नही है. तीरथ सिंह रावत का कहना है कि लोगों का स्वास्थ्य प्राथमिकता है, लेकिन आस्था के मामलों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. अगर रावत के इस जवाब को सबसे सटीक मान लिया जाए, तो निजामुद्दीन मरकज में आए लोगों की आस्था के साथ सरकारों और मीडिया ने दोहरा मापदंड क्यों अपनाया था? कुंभ की वजह से अगर कोरोना विस्फोट हुआ, तो जिम्मेदार कौन होगा? कुंभ और मरकज की तुलना होनी ही चाहिए, जिससे सरकारों का असल चेहरा सामने आ सके.
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