आजादी से पहले तक भारत में चीतों की अच्छी-खासी संख्या मौजूद थी. लेकिन, 1952 में भारत में चीते को विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया गया. खैर, अब एक बार फिर से भारत में विलुप्त हो चुके चीते 70 साल बाद वापसी कर रहे हैं. 17 सितंबर को दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से आठ चीते भारत आएंगे. और, मध्यप्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क में एक भव्य कार्यक्रम के कुछ महीनों बाद ही जंगलों में एक बार फिर से चीते को दौड़ते हुए देखा जा सकेगा.
मुझे फिल्म बाजीराव मस्तानी का एक मशहूर डायलॉग याद आ रहा है 'चीते की चाल, बाज की नजर...' वाला. चीते हमेशा से ही अपनी रफ्तार के लिए जाने जाते रहे हैं. दरअसल, बिल्ली की बड़ी प्रजातियों में चीते इकलौते ऐसे जानवर हैं, जो 100 किमी/प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ लगा सकते हैं. और, जमीन पर चलने वाले जानवरों में चीते को 'उसैन बोल्ट' कहा जाता हैं. लेकिन, अहम सवाल ये है कि आखिर भारत से चीते विलुप्त क्यों हो गए? आइए जानते हैं उन 3 चीतों के शिकार के बारे में जिसके साथ भारत में खत्म हो गई थी इस प्रजाति की कहानी...
छत्तीसगढ़ में हुआ था आखिरी चीतों का शिकार
भारतीय वन सेवा में कार्यरत प्रवीण कासवान ने ट्विटर पर एक थ्रेड शेयर किया है. जिसमें जानकारी दी गई है कि भारत के आखिरी चीतों का कहां और किसने शिकार किया था? प्रवीण कासवान के अनुसार, 1947 में आखिरी 3 चीतों का शिकार छत्तीसगढ़ में किया गया था. सरगुजा में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने इन चीतों का शिकार किया था. जर्नल ऑफ द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में इस शिकार के दस्तावेज मौजूद हैं. प्रवीण कासवान के अनुसार, भारत में चीतों का ये आखिरी दस्तावेज था, वो भी मरे हुए...
आजादी से पहले तक भारत में चीतों की अच्छी-खासी संख्या मौजूद थी. लेकिन, 1952 में भारत में चीते को विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया गया. खैर, अब एक बार फिर से भारत में विलुप्त हो चुके चीते 70 साल बाद वापसी कर रहे हैं. 17 सितंबर को दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से आठ चीते भारत आएंगे. और, मध्यप्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क में एक भव्य कार्यक्रम के कुछ महीनों बाद ही जंगलों में एक बार फिर से चीते को दौड़ते हुए देखा जा सकेगा.
मुझे फिल्म बाजीराव मस्तानी का एक मशहूर डायलॉग याद आ रहा है 'चीते की चाल, बाज की नजर...' वाला. चीते हमेशा से ही अपनी रफ्तार के लिए जाने जाते रहे हैं. दरअसल, बिल्ली की बड़ी प्रजातियों में चीते इकलौते ऐसे जानवर हैं, जो 100 किमी/प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ लगा सकते हैं. और, जमीन पर चलने वाले जानवरों में चीते को 'उसैन बोल्ट' कहा जाता हैं. लेकिन, अहम सवाल ये है कि आखिर भारत से चीते विलुप्त क्यों हो गए? आइए जानते हैं उन 3 चीतों के शिकार के बारे में जिसके साथ भारत में खत्म हो गई थी इस प्रजाति की कहानी...
छत्तीसगढ़ में हुआ था आखिरी चीतों का शिकार
भारतीय वन सेवा में कार्यरत प्रवीण कासवान ने ट्विटर पर एक थ्रेड शेयर किया है. जिसमें जानकारी दी गई है कि भारत के आखिरी चीतों का कहां और किसने शिकार किया था? प्रवीण कासवान के अनुसार, 1947 में आखिरी 3 चीतों का शिकार छत्तीसगढ़ में किया गया था. सरगुजा में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने इन चीतों का शिकार किया था. जर्नल ऑफ द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में इस शिकार के दस्तावेज मौजूद हैं. प्रवीण कासवान के अनुसार, भारत में चीतों का ये आखिरी दस्तावेज था, वो भी मरे हुए चीतों का. ये तस्वीर महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव के निजी सचिव ने ही दस्तावेज के तौर पर जर्नल ऑफ द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को दी थी. इन आखिरी चीतों के शिकार के बाद 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया था.
मध्य प्रदेश ही क्यों ले जाए जा रहे हैं चीते?
नामीबिया से आने वाले आठ चीते एक शानदार बी747 जंबो जेट में ग्वालियर पहुंचेंगे. और, यहां से इन्हें भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिये श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क पहुंचाया जाएगा. वैसे, सवाल उठना लाजिमी है कि ये चीते मध्य प्रदेश ही क्यों लाए जा रहे हैं? तो, इसका जवाब भी इन चीतों के शिकार से ही जुड़ा हुआ है. इन चीतों को छत्तीसगढ़ में मारा गया था. लेकिन, 1948 में छत्तीसगढ़ राज्य मध्य प्रदेश का ही हिस्सा था. इसे बाद में विभाजित कर एक नया राज्य बनाया गया था. आसान शब्दों में कहें, तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहले भी चीते रहते रहे हैं. तो, इसी को देखते हुए इन्हें यहां लाया जा रहा है. क्योंकि, इन चीतों को यहां रखने के बाद ये भी देखना होगा कि वे यहां के जंगलों की स्थिति के हिसाब से खुद को ढाल पा रहे हैं या नहीं.
भारत में क्यों विलुप्त हुए चीते?
भारत में चीतों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण उनका बढ़ता शिकार था. आजादी से पहले देश में कई राजा-महाराजा हुआ करते थे. जो अपने मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार किया करते थे. आखिरी चीतों को मारने वाले महाराजा रामानुज प्रताप सिंह ने भी कई बाघ, तेंदुआ, चीतल, हिरण जैसे सैकड़ों जानवरों का शिकार किया था. हालांकि, चीतों की ये संख्या अचानक नहीं घटी. भारत लंबे समय तक मुगलों से लेकर अंग्रेजों का गुलाम रहा था. मुगलों और अंग्रेजों के दौर में चीतों का खूब शिकार किया गया. भारत की छोटी-छोटी रियासतों के राजा भी अंग्रेजों को अपनी रियासत के जंगलों में शिकार के लिए निमंत्रण देते थे. 19वीं सदी की शुरुआत में ही चीते लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे. और, देश की आजादी के बाद ये पूरी तरह से लुप्त हो गए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.