'बेटा, ऐसे pose बनाओ'
'मुंह थोड़ा कम खोलकर हंसो, हां, बस थोड़ा-सा इधर की ओर देखो'
हद है भाई! तस्वीर ले रहे हो कि स्क्रीन टेस्ट? और सबसे ज्यादा बुरी तस्वीर तो मुझे नहाए हुए, राजा बेटा, रानी बिटिया जैसे अप-टू-डेट बच्चों की लगती है. बच्चे अपने स्वाभाविक रूप में सबसे प्यारे लगते हैं. मुंह बनाते हुए, गला फाड़ चिल्लाते हुए, मिट्टी में खेलते, हंसते और बिखरे बाल के साथ. दोनों हाथ खाने से सने हुए, पर चेहरे की चमक इस बात का पक्का सबूत कि उन्हें भोजन बड़ा मस्त लग रहा. कुल मिलाकर, बच्चों को हर समय सलीके से रहने की कोई जरूरत नहीं. उम्र के साथ समझदारी स्वत: ही आ जाती है.
सिखाना जरूर चाहिए, पर कुछ पल उन्हें बिंदास भी जीने देना चाहिए. ये दिखावा, बोले तो शो बाज़ी करने के लिए बड़े ही काफी हैं. लो अब देखो! वही बच्चा, फ़ोटो खिंचवा-खिंचवाकर भन्नाया बैठा है. वैसे मुंह गोलगप्पे-सा बनाकर बड़ा प्यारा भी लग रहा. पर नहीं, उसके मम्मी-पापा का इतने में भी जी नहीं भरा। उन्हें उसकी प्राकृतिक सुन्दरता पर यकीं ही नहीं! सो, फ़ोटोशॉप करके उसे और सुंदर बना रहे हैं. इन गैजेट्स ने तो बचपन की नाक में दम कर रखा है.
और वो वाले अंकल-आंटी जी से तो मुझे भयंकरतम नफ़रत हो चुकी है जो किसी मेहमान के घर में आते ही अपने बच्चों को सीधा 'हॉट सीट' पर बैठा देते हैं. फिर उनके गुणों की लम्बी फ़ेहरिस्त को सैद्धांतिक और व्यावहारिक तौर पर प्रदर्शित करवाने के बाद ही चाय-पानी का पूछते हैं. बच्चा भले ही संकोच से गड़ा जा रहा, शर्म के मारे मरा जा रहा और नीचे से आपकी कुर्ती खींचते हुए बोले, 'रहने दो न मम्मी! कल शर्मा अंकल जी को भी तो यही पोएम सुनाई थी.'
तब तक हर बात पर चप्पल फेंककर मारने वाले पापा भी सीना चौड़ा कर उचककर कहते हैं कि 'अबकी...
'बेटा, ऐसे pose बनाओ'
'मुंह थोड़ा कम खोलकर हंसो, हां, बस थोड़ा-सा इधर की ओर देखो'
हद है भाई! तस्वीर ले रहे हो कि स्क्रीन टेस्ट? और सबसे ज्यादा बुरी तस्वीर तो मुझे नहाए हुए, राजा बेटा, रानी बिटिया जैसे अप-टू-डेट बच्चों की लगती है. बच्चे अपने स्वाभाविक रूप में सबसे प्यारे लगते हैं. मुंह बनाते हुए, गला फाड़ चिल्लाते हुए, मिट्टी में खेलते, हंसते और बिखरे बाल के साथ. दोनों हाथ खाने से सने हुए, पर चेहरे की चमक इस बात का पक्का सबूत कि उन्हें भोजन बड़ा मस्त लग रहा. कुल मिलाकर, बच्चों को हर समय सलीके से रहने की कोई जरूरत नहीं. उम्र के साथ समझदारी स्वत: ही आ जाती है.
सिखाना जरूर चाहिए, पर कुछ पल उन्हें बिंदास भी जीने देना चाहिए. ये दिखावा, बोले तो शो बाज़ी करने के लिए बड़े ही काफी हैं. लो अब देखो! वही बच्चा, फ़ोटो खिंचवा-खिंचवाकर भन्नाया बैठा है. वैसे मुंह गोलगप्पे-सा बनाकर बड़ा प्यारा भी लग रहा. पर नहीं, उसके मम्मी-पापा का इतने में भी जी नहीं भरा। उन्हें उसकी प्राकृतिक सुन्दरता पर यकीं ही नहीं! सो, फ़ोटोशॉप करके उसे और सुंदर बना रहे हैं. इन गैजेट्स ने तो बचपन की नाक में दम कर रखा है.
और वो वाले अंकल-आंटी जी से तो मुझे भयंकरतम नफ़रत हो चुकी है जो किसी मेहमान के घर में आते ही अपने बच्चों को सीधा 'हॉट सीट' पर बैठा देते हैं. फिर उनके गुणों की लम्बी फ़ेहरिस्त को सैद्धांतिक और व्यावहारिक तौर पर प्रदर्शित करवाने के बाद ही चाय-पानी का पूछते हैं. बच्चा भले ही संकोच से गड़ा जा रहा, शर्म के मारे मरा जा रहा और नीचे से आपकी कुर्ती खींचते हुए बोले, 'रहने दो न मम्मी! कल शर्मा अंकल जी को भी तो यही पोएम सुनाई थी.'
तब तक हर बात पर चप्पल फेंककर मारने वाले पापा भी सीना चौड़ा कर उचककर कहते हैं कि 'अबकी हमारा बबलू क्विज़ में फर्स्ट आया है.' मरता क्या न करता की तर्ज़ पर बेचारे मेहमान जी को भी अपनी गोल-गोल बटननुमा आंखें, आई-बॉल के अन्दर पूरा 180 डिग्री नचाने के बाद भद्दा-सा अभिनय करते हुए बोलना पड़ता, 'अजी, बेटा किसका है साहब!" पर एक्चुअली में वो मन-ही-मन ये सोच रहे होते थे कि 'बस कर भाई, मैंने तो तेरे से मिलने की सोचकर ही अपने सारे पापों का प्रायश्चित कर लिया है. अब तो बख्श!
सबसे क्यूट वो बच्चे होते हैं जो एक सेकंड में 36 भाव-भंगिमा दिखाते हुए खुद कहते हैं, 'चलो न अंकल, मेरे साथ खेलो' पर कोई-कोई दुष्ट टाइप बच्चे भी होते हैं जी, वो सीधा मुंह पर ही यह पूछ मेहमान जी का सारा प्लान चौपट कर देते 'आप खाना खाके जाओगे न?'. 'आप हमारे लिए कौन-सी गिफ्ट लाए?' 'आप कब जाओगे' एक्चुअली ये वही बच्चे हैं जिनका आप ज़बरन इंटरव्यू दिलवाते हो. ये एक ही झटके में अपने माता-पिता को यूं शर्मिंदा कर देते हैं कि अगली बार वो दोनों ख़ुद बच्चे के पैरों पर लोटकर चिरौरी कर रहे होते, 'बेटा, तुझे हमाई क़सम! अंकल-आंटी के सामने मुंह मत खोलियो!'
छुट्टियां, बचपन और गुलाटियां... ज़िंदगी की सारी खूबसूरत अदाएं, इन्हीं लम्हों से होकर गुजरती हैं. एल्बम पलटो, तो बड़ा गुस्सा आता है. बच्चे, इतनी जल्दी बड़े क्यों हो जाते हैं! फिर आईना याद दिलाता है, उफ़्फ़ हम भी तो हो गए! याद है न अपना बचपन? भोला-भाला, हंसता-खिलखिलाता, खुद ही रूठता और चटोरा तो इतना कि बस एक पेड़े या जलेबी से ही मान जाता.
मने हद है, भई! इतने में ही बिक जाते थे! कितनी प्यारी कहानियां हैं हम सबकी. कैसे अजीब-अजीब से खेल थे. और उस समय के सपने तो अब बिलकुल ही बेहूदा लगते हैं. समय ने हम सबको कहां पहुंचा दिया है. कि पुराने सारे रंग स्मृतियों के पन्नों पर ही शेष रह गए हैं. कितना बदल गया है न सब.हैरानगी की बात है कि इस उम्र में हम जैसों के अंदर अब तक, एक बच्चा, कुलांचे मारता है, काश... ये 'जीवित' रहे हर बच्चे में, उसकी मासूमियत और मुस्काती आंखों में. आमीन.
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