सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक को बैन तो कर दिया, लेकिन तीन तलाक के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाली महिलाओं की स्थिति अब क्या है उसके बारे में खबर लेनी जरुरी है. तीन तलाक के खिलाफ याचिका दायर करने वाली पांच महिलाओं में एक इशरत जहां भी थीं. मुस्लिम समाज के माथे से तीन तलाक का काला धब्बा हटाने की शाबाशी के बजाए इशरत गुरबत की जिंदगी जी रही हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इशरत जहां की जिंदगी अब बद से बदतर हो गई है. उसके पड़ोसियों ने उससे बात करना बंद कर दिया है. आते-जाते लोग अब उसे छेड़ने से बाज नहीं आ रहे. यही नहीं अब उसे खुद के घर (जो पति के नाम है) से निकलने के लिए भी कहा जा रहा है. इशरत की शादी 14 साल की उम्र में हो गई थी. अपने चौथ बच्चे के जन्म के बाद इशरत का पति दुबई जाकर बस गया था और फिर इशरत को तीन तलाक दे दिया.
इसके बाद इशरत ने चार और औरतों के साथ मिलकर इस भयानक और दुखदाई प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया. लेकिन इशरत को कहां पता था कि मुस्लिम महिलाओं का जीवन बदलने की आस लगाए. उन्हें तीन तलाक के दलदल से निकालने की मशाल जलाने वाली को खुद उसी के समाज अछूत बना देगा. मर्द तो मर्द वो औरतें ही उसकी दुश्मन बन जाएंगी जिनके सुकून भरे भविष्य के लिए उसने ये कदम उठाया था.
ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के साथ ही इशरत के कष्ट भरे दिन शुरू हो गए. उसे उसके पड़ोसियों ने परेशान करना और ताने देना शुरू कर दिया. इशरत कहती हैं- 'जब भी मैं सड़क पर चलती हूं तो मेरे पड़ोसी मुझसे मुंह फेर लेते हैं. मेरे सुनने में आता है कि अब ये लोग नहीं चाहते कि मैं यहां रहूं. कुछ लोग तो मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाते हैं. मेरे चाल-चलन पर शक करते हैं. कुछ लोग...
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक को बैन तो कर दिया, लेकिन तीन तलाक के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाली महिलाओं की स्थिति अब क्या है उसके बारे में खबर लेनी जरुरी है. तीन तलाक के खिलाफ याचिका दायर करने वाली पांच महिलाओं में एक इशरत जहां भी थीं. मुस्लिम समाज के माथे से तीन तलाक का काला धब्बा हटाने की शाबाशी के बजाए इशरत गुरबत की जिंदगी जी रही हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इशरत जहां की जिंदगी अब बद से बदतर हो गई है. उसके पड़ोसियों ने उससे बात करना बंद कर दिया है. आते-जाते लोग अब उसे छेड़ने से बाज नहीं आ रहे. यही नहीं अब उसे खुद के घर (जो पति के नाम है) से निकलने के लिए भी कहा जा रहा है. इशरत की शादी 14 साल की उम्र में हो गई थी. अपने चौथ बच्चे के जन्म के बाद इशरत का पति दुबई जाकर बस गया था और फिर इशरत को तीन तलाक दे दिया.
इसके बाद इशरत ने चार और औरतों के साथ मिलकर इस भयानक और दुखदाई प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया. लेकिन इशरत को कहां पता था कि मुस्लिम महिलाओं का जीवन बदलने की आस लगाए. उन्हें तीन तलाक के दलदल से निकालने की मशाल जलाने वाली को खुद उसी के समाज अछूत बना देगा. मर्द तो मर्द वो औरतें ही उसकी दुश्मन बन जाएंगी जिनके सुकून भरे भविष्य के लिए उसने ये कदम उठाया था.
ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के साथ ही इशरत के कष्ट भरे दिन शुरू हो गए. उसे उसके पड़ोसियों ने परेशान करना और ताने देना शुरू कर दिया. इशरत कहती हैं- 'जब भी मैं सड़क पर चलती हूं तो मेरे पड़ोसी मुझसे मुंह फेर लेते हैं. मेरे सुनने में आता है कि अब ये लोग नहीं चाहते कि मैं यहां रहूं. कुछ लोग तो मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाते हैं. मेरे चाल-चलन पर शक करते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि मैंने शरिया लॉ का उल्लंघन किया है. ईद पर किसी ने मुझे मुबारकबाद नहीं दी. यहां तक की किसी ने मुझे फोन भी नहीं किया. कोई मेरे घर भी नहीं आया. मुझे सिर्फ बिहार से मेरी मां ने फोन किया और ईद की बधाई दी.' यहां तक कि अब इशरत की टेलरिंग की दुकान भी बंद होे के कगार पर खड़ी है क्योंकि लोग अब उसके पास कपड़े सिलवाने नहीं आते. एक तरह से कहें तो पड़ोसियों ने इशरत का हुक्का-पानी बंद कर दिया है.
इशरत के घर के पास वाले मस्जिद के मुफ्ती का मानना है कि वो शरिया कानून के विरूद्ध गई हैं. और उसकी ही सजा वो भुगत रही हैं. मुफ्ति कहता है- 'शरिया कानून के खिलाफ वो कोर्ट में केस कैसे फाइल कर सकती है? मैं ऐसी 'बुरी' बात पर बात नहीं करना चाहता. आप उसके पड़ोसियों जाकर पूछें... वो आपको बताएंगे कि उसका चरित्र ही अच्छा नहीं है. उसके जैसे लोगों ने ही ट्रिपल तलाक पर ऐसी बेकार का विवाद खड़ा किया है.'
इशरत के देवर और उसकी पत्नी घर से उसे घर से निकालना चाहते हैं. इस बात को कोई नहीं देख रहा कि इशरत के इस कदम से पूरे देश में हजारों मुस्लिम महिलाओं को कितना फायदा पहुंचा है. ट्रिपल तलाक के बैन होने से न जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली है. सभी ने अपने आंखों पर धर्म की चादर ओढ़ रखी है.
ट्रिपल तलाक पर बैन लगने से मुस्लिम महिलाओं को दूरगामी फायदा होगा ये कोई नहीं देख रहा. मुस्लिम महिलाएं कम-से-कम अब इस चिंता से दूर हो गई कि क्या पता कब उनका पति गुस्से में, शराब के नशे में या किसी औरत के साथ होते ही उसे एक मैसेज करे, फोन करे या सामने बैठे ही तलाक, तलाक, तलाक कह दे. पति के मुंह से इतना भर निकलना और उस औरत की जिंदगी नर्क.
आखिर कब तक हम धर्म के नाम पर बरसों से चली आ रही रुढ़िवादी और बेकार रीति-रिवाजों को झेलते रहेंगे? चाहे हिंदु हो या मुसलमान, औरत हो या मर्द अगर किसी धर्म में, रिवाज में या किसी भी संस्था में उनके शोषण की रिवायत है तो उसे खत्म करने के लिए सभी को साथ खड़े होना चाहिए.
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