मैंने सोचा कि 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' देख ही ली जाए. कहने की जरूरत तो नहीं कि इतने विवाद के बाद दर्शक देखना ही चाहेंगे कि आखिरकार इस फिल्म में ऐसा था क्या. वैसे फिल्म बहुत अच्छी है, लेकिन मैं आपको फिल्म का रिव्यू देकर पकाने नहीं वाली. मैं आपको कुछ ऐसा बताने वाली हूं जो बहुत ज्यादा परेशान करने वाला है, जिसे मैंने ये फिल्म देखते हुए महसूस किया.
कोंकणा सेन शर्मा एक फंसी हुई ग्रहणी
मैं फिल्म के बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं बताउंगी नहीं तो आपका मजा खराब हो जाएगा. पर फिल्म के किरदारों के बारे में थोड़ा बहुत जान लेने में कोई हर्ज नहीं है. जैसे फिल्म में कोंकणा सेन शर्मा ने शिरीन असलम का किरदार निभाया है, वो महिला जो उसे दबा कर रखने वाले पति यानी सुशांत सिंह से अपनी व्यवसायिक जिंदगी को छिपाकर रखती है. लेकिन दुख की बात ये नहीं है, बल्कि शिरीन की सहमति पर जरा भी ध्यान दिए बिना सेक्स की मांग करने वाले पति को देखकर बड़ा अजीब लगता है.
पुरुष तो पुरुष ही रहेंगे, और यही दुर्भाग्य है
जब शिरीन का पति उसके पैर खोलकर खुद को उसपर थोपता है और अपनी मर्दानगी दिखाता है, तो थिएटर में बैठी सभी महिलाओं के मुंह से घृणा और आश्चर्य से आवाज निकल जाती है, लेकिन थिएटर में बैठे कुछ मर्द हंसने लगते हैं. हां, वो इस सीन पर जोर-जोर से हंस रहे थे, जिसमें मेरिटल रेप किया जा रहा था.
उनकी हर हंसी के साथ मेरी मायूसी भी बढ़ती जी रही थी. मैंने पीछे मुड़कर इन लोगों को देखना चाहा, और पाया कि असल में वो लोग ठीक ठाक कपड़े पहने थे, इतने पढ़े-लिखे तो दिखाई दे रहे थे कि कम से कम रेप और सहमति से किए सेक्स में फर्क समझ सकें.
रेप और सहमति से किए सेक्स में...
मैंने सोचा कि 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' देख ही ली जाए. कहने की जरूरत तो नहीं कि इतने विवाद के बाद दर्शक देखना ही चाहेंगे कि आखिरकार इस फिल्म में ऐसा था क्या. वैसे फिल्म बहुत अच्छी है, लेकिन मैं आपको फिल्म का रिव्यू देकर पकाने नहीं वाली. मैं आपको कुछ ऐसा बताने वाली हूं जो बहुत ज्यादा परेशान करने वाला है, जिसे मैंने ये फिल्म देखते हुए महसूस किया.
कोंकणा सेन शर्मा एक फंसी हुई ग्रहणी
मैं फिल्म के बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं बताउंगी नहीं तो आपका मजा खराब हो जाएगा. पर फिल्म के किरदारों के बारे में थोड़ा बहुत जान लेने में कोई हर्ज नहीं है. जैसे फिल्म में कोंकणा सेन शर्मा ने शिरीन असलम का किरदार निभाया है, वो महिला जो उसे दबा कर रखने वाले पति यानी सुशांत सिंह से अपनी व्यवसायिक जिंदगी को छिपाकर रखती है. लेकिन दुख की बात ये नहीं है, बल्कि शिरीन की सहमति पर जरा भी ध्यान दिए बिना सेक्स की मांग करने वाले पति को देखकर बड़ा अजीब लगता है.
पुरुष तो पुरुष ही रहेंगे, और यही दुर्भाग्य है
जब शिरीन का पति उसके पैर खोलकर खुद को उसपर थोपता है और अपनी मर्दानगी दिखाता है, तो थिएटर में बैठी सभी महिलाओं के मुंह से घृणा और आश्चर्य से आवाज निकल जाती है, लेकिन थिएटर में बैठे कुछ मर्द हंसने लगते हैं. हां, वो इस सीन पर जोर-जोर से हंस रहे थे, जिसमें मेरिटल रेप किया जा रहा था.
उनकी हर हंसी के साथ मेरी मायूसी भी बढ़ती जी रही थी. मैंने पीछे मुड़कर इन लोगों को देखना चाहा, और पाया कि असल में वो लोग ठीक ठाक कपड़े पहने थे, इतने पढ़े-लिखे तो दिखाई दे रहे थे कि कम से कम रेप और सहमति से किए सेक्स में फर्क समझ सकें.
रेप और सहमति से किए सेक्स में फर्क
सच कहूं तो, मैं उनकी इस असंवेदनशीलता से बहुत आहत थी. कोई भी सही दिमाग वाला इंसान इस तरह के रेप सीन्स पर भला कैसे हंस सकता है? शायद इन मर्दों के लिए सेक्स और रेप दो अलग चीजें नहीं थीं. उनके लिए वो सिर्फ सेक्स था. सीन में उन्हें वो एक असंतुष्ट पति नजर आ रहा था जो अपनी पत्नी के साथ सेक्स कर रहा था, जिसने उसकी बात नहीं मानने की हिम्मत की थी. एक सबक, वो सोचते हैं कि अगर महिलाएं अपनी हदों को पार करने की कोशिश करती हैं तो उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए.
लोगों की ये मानसिकता बदलनी चाहिए
यहां बात सिर्फ इतनी नहीं है कि कुछ मर्द थिएटर में बैठकर रेप सीन पर हंस रहे थे, बल्कि ये मानसिकता तो हमारे समाज में अंदर तक बसी हुई है. कुछ मर्द वास्तव में ये बात समझ ही नहीं पाते कि मेरिटल रेप सेक्स नहीं होता. यहां तक कि किसी भी तरह का सेक्स जो महिला की सहमति से नहीं होता वो रेप है. और इससे वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो महिला तुम्हारा प्यार है या फिर तुम्हारी पत्नी. अगर वो किसी भी यौन क्रिया में तुम्हारा साथ नहीं देती, तो बेहतर है कि अपने कदम पीछे हटा लो.
कुछ मर्द भले ही ये सोचते होंगे कि रेप मर्दानगी दिखाने का सबसे अच्छा साधन है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है, ये बेहद घिनौना है. और जब तक समाज की ये मानसिकता बदल नहीं जाती तब तक सत्य और कल्पनाएं आपस में यूं ही उलझती रहेंगी.
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