कोरोना (Coronavirus) के चलते मचे ग़दर में आम आदमी का जीवन तहस नहस हो गया है. लोग दो वक़्त के भोजन के लिए मारे मारे फिर रहे हैं और जिन्दा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन ऐसे समय पर भी अपने राजनेता घटिया राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) है. पिछले 56 दिनों में तकलीफ और दर्द की तमाम कहानियां देखने और सुनाने को मिली हैं. लेकिन इनके साथ साथ ही कई ऐसी मानवता और प्रेम की कहानियां भी देखने सुनने को मिली हैं कि इंसानियत पर यक़ीन हो जाता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग आम इंसान हैं जिनके पास न तो बहुत ज्यादा संसाधन हैं और न पुरखों की अथाह संपत्ति. लेकिन मदद करने के जूनून ने इनको आज आम इंसान से कुछ ऊपर कर दिया है. भोपाल (Bhopal) भी शुरू से इस बीमारी की चपेट में है और इसका अधिकतर हिस्सा लॉकडाउन (Lockdown) में है.
ऐसे में यहां के गरीबों, रोज कार्य करने वाले श्रमिकों और स्लम एरिया के लोगों के लिए कुछ ही दिनों बाद दो वक़्त का भोजन भी मुश्किल हो गया. ऐसे में यहां के तमाम युवा आगे आये और उन्होंने दिन रात मेहनत करके अपनी कैंटीन चलायी, लोगों को पका भोजन और राशन, दवा इत्यादि पहुंचाया.
एक युवक, जो अभी अपने बीडीएस. के आखिरी साल में है और पिछले दो तीन साल से एक स्लम बस्ती में बच्चों के लिए स्कूल चला रहा है, ने अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए इसमें अपने आप को झोंक दिया. न सिर्फ उसने अपना बचत का सारा पैसा लगा दिया बल्कि अपने घर से भी पैसा लेकर इस कार्य में लगा रहा.
भोपाल के तमाम लोग भी उसकी मदद के लिए आगे आये और उसका कैंटीन लगातार चलता रहा. इसी बीच उसे खुद कोरोना ने जकड लिया, लेकिन वह इससे...
कोरोना (Coronavirus) के चलते मचे ग़दर में आम आदमी का जीवन तहस नहस हो गया है. लोग दो वक़्त के भोजन के लिए मारे मारे फिर रहे हैं और जिन्दा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन ऐसे समय पर भी अपने राजनेता घटिया राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) है. पिछले 56 दिनों में तकलीफ और दर्द की तमाम कहानियां देखने और सुनाने को मिली हैं. लेकिन इनके साथ साथ ही कई ऐसी मानवता और प्रेम की कहानियां भी देखने सुनने को मिली हैं कि इंसानियत पर यक़ीन हो जाता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग आम इंसान हैं जिनके पास न तो बहुत ज्यादा संसाधन हैं और न पुरखों की अथाह संपत्ति. लेकिन मदद करने के जूनून ने इनको आज आम इंसान से कुछ ऊपर कर दिया है. भोपाल (Bhopal) भी शुरू से इस बीमारी की चपेट में है और इसका अधिकतर हिस्सा लॉकडाउन (Lockdown) में है.
ऐसे में यहां के गरीबों, रोज कार्य करने वाले श्रमिकों और स्लम एरिया के लोगों के लिए कुछ ही दिनों बाद दो वक़्त का भोजन भी मुश्किल हो गया. ऐसे में यहां के तमाम युवा आगे आये और उन्होंने दिन रात मेहनत करके अपनी कैंटीन चलायी, लोगों को पका भोजन और राशन, दवा इत्यादि पहुंचाया.
एक युवक, जो अभी अपने बीडीएस. के आखिरी साल में है और पिछले दो तीन साल से एक स्लम बस्ती में बच्चों के लिए स्कूल चला रहा है, ने अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए इसमें अपने आप को झोंक दिया. न सिर्फ उसने अपना बचत का सारा पैसा लगा दिया बल्कि अपने घर से भी पैसा लेकर इस कार्य में लगा रहा.
भोपाल के तमाम लोग भी उसकी मदद के लिए आगे आये और उसका कैंटीन लगातार चलता रहा. इसी बीच उसे खुद कोरोना ने जकड लिया, लेकिन वह इससे जीतकर वापस इसमें लग गया. उसकी टीम में लोग स्कूटर से, साइकिल से और पैदल घूम घूम कर लोगों को खाना खिलाते रहे. जहां से भी इनको खबर मिलती, ये लोग वहां भोजन या मदद लेकर पहुंच जाते थे.
इसी बीच रक्तदान के लिए भी इनकी टीम तैयार रहती थी और जिस जगह से भी खून के लिए फोन आता, ये लोग वहां इंतजाम कर देते थे. एक मुस्लिम नौजवान ने तो रात के तीन बजे फोन आने पर हॉस्पिटल जाकर जरूरतमंद को खून दिया, जबकि उसका रोजा चल रहा था. एक दंपति भी ऐसा मिला जिसने रक्त की जरुरत पड़ने पर हॉस्पिटल जाकर पति पत्नी दोनों का रक्त दान किया.
इस तकलीफ के वक़्त ऐसे ही कई अन्य समूहों को बेहद करीब से देखने का मौका मिला जो बिना किसी स्वार्थ के इस समय लगे रहे और आज भी लगातार कर रहे हैं. यहां के समाचार पत्रों ने भी इन योद्धाओं के बारे में लिखा और इनके साथ साथ अन्य लोगों को भी इस नेक काम में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया.
आज समय यही है कि ऐसे लोगों को न सिर्फ याद रखा जाए, बल्कि इनको उचित मंच पर सम्मानित भी किया जाए, कम से कम इतना तो हम इनके लिए कर ही सकते हैं.
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