अक्सर कहा जाता है कि मां (Mother ) अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है, चाहे वह इंसान हो या जानवर. हमारे चारो तरफ ऐसे हजारों उदहारण मिल जाते हैं जिसमें मां ने बच्चे के लिए अपनी जान तक क़ुर्बान कर दी. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि एक पिता (Father) भी अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकता है, दिन रात मेहनत मजदूरी करके बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम (Education) दिलवाना चाहता है. इसके पीछे बस एक ही कारण होता है कि वह चाहता है कि जो तकलीफ उसने झेली है, वह उसके बच्चे नहीं झेलें. दो दिन पहले ही मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धार जिले में एक ऐसा ही वाकया घटित हुआ जिसने इस बात को पुख्ता कर दिया. मनावर के रहने वाले मजदूर शोभाराम (Shobharam) जो कि एक पिता के तौर पर अपने बच्चे को अच्छी तालीम दिलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे. उनकी आंखों में अपने बच्चे को एक अफसर के रूप में देखने का सपना था जिसके लिए वह अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च कर रहे थे.
बच्चे ने हाई स्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन किसी वजह से वह दो विषयों में अनुत्तीर्ण हो गया था. शायद कोई और रहता तो वह अपने बच्चे से नाराज हुआ होता और कह देता कि बहुत हुई पढ़ाई, अब तुम भी मेहनत मजदूरी करो और घर चलाने में हमारी मदद करो. लेकिन शोभाराम के दिमाग में कुछ और ही था और जब बेटे ने भी कहा कि मैं फिर से परीक्षा दूंगा और पास होकर दिखाऊंगा तो शोभाराम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मध्य प्रदेश सरकार की योजना 'रुक जाना नहीं' के अंतर्गत ऐसे बच्चों को दुबारा अवसर दिया गया और शोभाराम के बेटे आशीष की परीक्षा का दिन भी आ गया. परीक्षा का केंद्र मनावर से लगभग 105 किमी दूर था और कोविड...
अक्सर कहा जाता है कि मां (Mother ) अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है, चाहे वह इंसान हो या जानवर. हमारे चारो तरफ ऐसे हजारों उदहारण मिल जाते हैं जिसमें मां ने बच्चे के लिए अपनी जान तक क़ुर्बान कर दी. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि एक पिता (Father) भी अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकता है, दिन रात मेहनत मजदूरी करके बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम (Education) दिलवाना चाहता है. इसके पीछे बस एक ही कारण होता है कि वह चाहता है कि जो तकलीफ उसने झेली है, वह उसके बच्चे नहीं झेलें. दो दिन पहले ही मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धार जिले में एक ऐसा ही वाकया घटित हुआ जिसने इस बात को पुख्ता कर दिया. मनावर के रहने वाले मजदूर शोभाराम (Shobharam) जो कि एक पिता के तौर पर अपने बच्चे को अच्छी तालीम दिलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे. उनकी आंखों में अपने बच्चे को एक अफसर के रूप में देखने का सपना था जिसके लिए वह अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च कर रहे थे.
बच्चे ने हाई स्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन किसी वजह से वह दो विषयों में अनुत्तीर्ण हो गया था. शायद कोई और रहता तो वह अपने बच्चे से नाराज हुआ होता और कह देता कि बहुत हुई पढ़ाई, अब तुम भी मेहनत मजदूरी करो और घर चलाने में हमारी मदद करो. लेकिन शोभाराम के दिमाग में कुछ और ही था और जब बेटे ने भी कहा कि मैं फिर से परीक्षा दूंगा और पास होकर दिखाऊंगा तो शोभाराम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मध्य प्रदेश सरकार की योजना 'रुक जाना नहीं' के अंतर्गत ऐसे बच्चों को दुबारा अवसर दिया गया और शोभाराम के बेटे आशीष की परीक्षा का दिन भी आ गया. परीक्षा का केंद्र मनावर से लगभग 105 किमी दूर था और कोविड के चलते पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद था. ऐसे में शायद कोई ठीक ठाक हैसियत वाला पिता होता तो बच्चे को कार नहीं तो बाइक से जरूर ही ले जाता. लेकिन शोभाराम के पास जमा पूंजी सिर्फ एक पुरानी साइकिल थी और परीक्षा केंद्र तक उनको बेटे को साइकिल से ही ले जाना था.
उनके पास न तो धार में रुकने का ठिकाना था और न ही तीन दिन तक चलने वाले परीक्षा के लिए पर्याप्त धन. खैर जब बात बच्चे के भविष्य की हो तो पिता कुछ भी करता है और शोभाराम ने रास्ते के लिए और अगले तीन दिन के लिए कुछ चना चबैना बांधा, पडोसी से 500 रुपये उधार लिए (ये रकम शोभाराम के लिए बहुत बड़ी रकम है) और बेटे को साइकिल पर बैठाकर 105 किमी के सफर पर चल निकले. रुकने के हिसाब से एक दो कपडे भी उन्होंने रख लिए थे और सोच लिया था कि चाहे खुले आसमान के नीचे ही क्यों न रुकना पड़े, वह बेटे को परीक्षा दिलाकर ही लौटेंगे.
बरसात के दिनों में अच्छा रास्ता भी खराब हो जाता है और यह रास्ता तो घाटी से होकर गुजरता था. रास्ते में गुजरने वाले ट्रकों का शोर, रात में हाई वे पर साइकिल से यात्रा, हमारी आपकी कल्पना करके ही हालत खराब हो जायेगी. लेकिन शोभाराम रात में मांडू पहुंचे और वहीं कुछ देर आराम करने का फैसला किया जिससे कि बाकी सफर ताजादम होकर भोर में किया जा सके.
एक कहावत है कि अगर आप कुछ करने के लिए ठान लेते हैं तो लोग खुद ब खुद मदद के लिए आगे आ जाते हैं. मांडू में अनजान लोगों ने पिता पुत्र को खाना दिया, रहने के लिए आसरा दिया और कुछ देर आराम करके शोभाराम पुनः धार के लिए निकल पड़े. सुबह 8 बजे से परीक्षा थी और शोभाराम ठीक 7.45 पर परीक्षा केंद्र पर पहुंच गए. परीक्षा के बाद पिता पुत्र एक सरकारी भवन के बाहर खाली जगह में रुक गए और पुत्र ने अगली परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी.
यह खबर जब किसी पत्रकार को लगी तो उसने जाकर शोभाराम से मुलाकात की और इसकी सुचना जिला प्रशासन को भी दी. अगले दिन अख़बारों में इस पिता की खबर पूरे देश में थी और जिला प्रशासन के लोग भी शोभाराम की मदद के लिए पहुंच गए. पिता पुत्र के रहने और भोजन की व्यवस्था की गयी और परीक्षा ख़त्म होने के बाद दोनों को वापस जाने की भी व्यवस्था स्थानीय प्रशासन ने की है. जब यह खबर महिंद्रा ग्रुप के आनंद महिंद्रा को मिली तो उन्होंने इस खबर को ट्वीट किया और आशीष के भविष्य के शिक्षा के खर्च को वहां करने का जिम्मा लिया.
अभी तक आशीष की परीक्षा ख़त्म नहीं हुई है लेकिन यह तो तंय है कि इस परीक्षा के बाद उसे आने वाली परीक्षाओं के लिए परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. साथ ही साथ यह भी साबित हो गया कि सोशल मीडिया का सकारात्मक पहलू भी है और यह किसी भी इंसान के मदद के लिए बहुत ज्यादा कारगर साबित हो सकता है.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभिनेता सोनू सूद हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में हजारों लोगों की मदद की और तमाम लोगों ने सोनू सूद से सोशल मीडिया के जरिये ही संपर्क किया. और आखिर में एक बात सिद्ध हो गयी कि पिता अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकता है, कुछ भी.
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