केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण अनिवार्य किया जाए. इससे महिला और बच्चे का रिकॉर्ड रहेगा और इससे बाद गर्भवती महिला की मॉनिटरिंग की जा सकेगी. उसकी निगरानी रखना आसान हो जायेगा कि वो लड़की पैदा कर भी रही है या नहीं. इससे कन्या भ्रूण हत्याओं में कमी आएगी. मेनका गांधी की इस निजी राय पर निश्चित तौर पर बहस की स्थिति तो बनती है. क्योंकि एक तरफ तो इस जांच के पक्षधर कई लोग हैं, लेकिन बहुतों का मानना है कि ये प्लान भारत में कामयाब नहीं होगा.
क्यों हो सकता है फेल
* बैन के बावजूद भी लिंग परीक्षण और गर्भपात हो ही रहे हैं. बैन हटने के बाद इमरजेंसी एबॉर्शन्स की संख्या में उछाल आएगा.
* जो सलूक महिलाओं से बेटी पैदा करने के बाद किया जाता है, वो उनकी गर्भावस्था से ही शुरू हो जाएगा. उन महिलाओं का ख्याल तो छोड़ए, उनके साथ दुर्व्यवहार और प्रताड़ना के मामले बढ़ने लगेंगे.
* जिन्हें लड़की नहीं चाहिए और गर्भपात करवाना है वो तो करवाएंगे ही. डॉक्टरों के पास नहीं जाकर गर्भपात के अवैध तरीके अपनाएंगे, जिससे मां की जान को खतरा हो सकता है. इससे गर्भपात की संख्या पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन महिलाओं की सेहत पर जरूर पड़ेगा.
* अभी लिंग परीक्षण पर कानूनन बैन है. यदि यही परीक्षण अनिवार्य किया जाएगा तो उसके लिए हर गर्भवती महिला की सोनोग्राफी कराना सुनिश्चित करना होगा और इसके लिए उतना ही बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा. जो फिलहाल तो नामुमकिन लगता है.
ये सब कुछ हो सकता है. यानी कन्याओं को स्वीकार न करने के जो कारण हैं वही गर्भपात की भी वजह हैं. लिहाजा समस्या को खत्म करना ज्यादा जरूरी है. लड़कियों के लिए चलाई जाने वाली योजना 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाओं पर अगर सही दिशा में काम हो तो फिर लिंग परीक्षण की जरूरत ही न पड़े. लड़कियां पढ़ेंगी, आत्मनिर्भर होंगी तो बोझ नहीं रहेंगी. माता-पिता लड़कियों की पढ़ाई पर पैसा...
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण अनिवार्य किया जाए. इससे महिला और बच्चे का रिकॉर्ड रहेगा और इससे बाद गर्भवती महिला की मॉनिटरिंग की जा सकेगी. उसकी निगरानी रखना आसान हो जायेगा कि वो लड़की पैदा कर भी रही है या नहीं. इससे कन्या भ्रूण हत्याओं में कमी आएगी. मेनका गांधी की इस निजी राय पर निश्चित तौर पर बहस की स्थिति तो बनती है. क्योंकि एक तरफ तो इस जांच के पक्षधर कई लोग हैं, लेकिन बहुतों का मानना है कि ये प्लान भारत में कामयाब नहीं होगा.
क्यों हो सकता है फेल
* बैन के बावजूद भी लिंग परीक्षण और गर्भपात हो ही रहे हैं. बैन हटने के बाद इमरजेंसी एबॉर्शन्स की संख्या में उछाल आएगा.
* जो सलूक महिलाओं से बेटी पैदा करने के बाद किया जाता है, वो उनकी गर्भावस्था से ही शुरू हो जाएगा. उन महिलाओं का ख्याल तो छोड़ए, उनके साथ दुर्व्यवहार और प्रताड़ना के मामले बढ़ने लगेंगे.
* जिन्हें लड़की नहीं चाहिए और गर्भपात करवाना है वो तो करवाएंगे ही. डॉक्टरों के पास नहीं जाकर गर्भपात के अवैध तरीके अपनाएंगे, जिससे मां की जान को खतरा हो सकता है. इससे गर्भपात की संख्या पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन महिलाओं की सेहत पर जरूर पड़ेगा.
* अभी लिंग परीक्षण पर कानूनन बैन है. यदि यही परीक्षण अनिवार्य किया जाएगा तो उसके लिए हर गर्भवती महिला की सोनोग्राफी कराना सुनिश्चित करना होगा और इसके लिए उतना ही बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा. जो फिलहाल तो नामुमकिन लगता है.
ये सब कुछ हो सकता है. यानी कन्याओं को स्वीकार न करने के जो कारण हैं वही गर्भपात की भी वजह हैं. लिहाजा समस्या को खत्म करना ज्यादा जरूरी है. लड़कियों के लिए चलाई जाने वाली योजना 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाओं पर अगर सही दिशा में काम हो तो फिर लिंग परीक्षण की जरूरत ही न पड़े. लड़कियां पढ़ेंगी, आत्मनिर्भर होंगी तो बोझ नहीं रहेंगी. माता-पिता लड़कियों की पढ़ाई पर पैसा लगाएं, न कि दहेज इकट्ठा करें.
मेनका गांधी की लिंग परीक्षण अनिवार्य करने की ये राय भले ही काम की हो लेकिन है अधूरी है. क्योंकि इस बात पर अब भी शक है कि गर्भवती महिलाओं की मॉनिटरिंग कैसे होगी. क्या सरकार हर गर्भवती महिला के घर-घर जाकर उससे होने वाले व्यवहार का ब्यौरा लेगी? सरकार इस बात का सत्यापन कैसे करेगी कि जो गर्भपात हुआ उसकी वजह वाजिब थी कि नहीं? बेटियों को बचाना है तो फिर लड़की पैदा होने के बाद भी सरकार को निगरानी रखनी होगी कि लड़की को सही पोषण मिल रहा है कि नहीं, लड़की की उच्च शिक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी. सरकार अगर ये सब करने के लिए तैयार है तो स्वागत है. और अगर नहीं तो फिर ये योजना सिर्फ अधूरे ख्वाब की तरह ही रह जाएगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.