मैंने दरवाजा खोलकर सुषमा (बदला हुआ नाम) को अंदर बुलाया. उसकी आंखों के नीचे चोट के निशान साफ दिख रहे थे. मैंने उसे चाय दी और सोफे पर बैठ गई.
मैंने पूछा- "उसने किया?"
उसने जवाब दिया- 'दो दिन पहले. अभी वो कुछ दिनों के लिए गांव गया है तभी मैं आपके पास आ पाई.' सुषमा मेरे एक दूर के रिश्तेदार की जानकार है. मैंने यूं ही बातों-बातों में अपनी रिश्तेदार को बताया था कि मैं marital rape यानी वैवाहिक बलात्कार पर एक आर्टिकल लिख रही हूं. तभी उसने सुषमा से बात करने की जिद्द की.
"क्या हुआ?"
"वही पुरानी कहानी. देर रात को वो पीकर आया. मैं और बच्चे जमीन पर सो रहे थे. सबसे पहले आते ही उसने बच्चों को मारा. मैं हड़बड़ा कर उठी. मुझे पता था अब क्या होने वाला है. इसलिए जल्दी से बच्चों को घर के बाहर भेजा. लेकिन मेरे दरवाजा बंद करने से पहले ही उसने अपनी पैंट खोल ली थी. मैंने भागने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे मुक्का मारा. जब सब खत्म हुआ तब मैं बच्चों को लेने के लिए बाहर गई. डरे सहमे बच्चे कोने में दुबके बैठे थे. बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी, बच्चे उसमें पूरी तरह भींग गए थे. मेरे पास इतना भी समय नहीं था कि मैं उन्हें छाता पकड़ा पाती." इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसुओं की तेज धार बह निकली थी.
"तुम पुलिस के पास नहीं गईं?"
"गई थी. एक साल पहले. पुलिस उसे उठाकर ले गई और डराने धमकाने के बाद छोड़ दिया. उस रात वो खुब गुस्से में आया और मुझे खुब मारा. इतना कि एक हफ्ते तक मैं बिस्तर से उठ नहीं पाई. पुलिस के पास जाने का कोई फायदा नहीं है. वो मुझे उससे नहीं बचा पाएंगे. इसके लिए मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता है..."
"क्या?"
"मैं उसे तलाक दे सकती हूं. मैंने इस बारे में एक वकील से बात की है. उसने कहा कि रेप के बारे में कुछ नहीं कह सकती. तो इसलिए उसके खिलाफ सिर्फ मारने पीटने की शिकायत ही कर सकते हैं. मुझे एलिमनी, बच्चों की कस्टडी और हर चीज के लिए लड़ना होगा. न तो मेरे पास पैसा है और न ही मैं इतनी पढ़ी लिखी हूं. अगर मैं...
मैंने दरवाजा खोलकर सुषमा (बदला हुआ नाम) को अंदर बुलाया. उसकी आंखों के नीचे चोट के निशान साफ दिख रहे थे. मैंने उसे चाय दी और सोफे पर बैठ गई.
मैंने पूछा- "उसने किया?"
उसने जवाब दिया- 'दो दिन पहले. अभी वो कुछ दिनों के लिए गांव गया है तभी मैं आपके पास आ पाई.' सुषमा मेरे एक दूर के रिश्तेदार की जानकार है. मैंने यूं ही बातों-बातों में अपनी रिश्तेदार को बताया था कि मैं marital rape यानी वैवाहिक बलात्कार पर एक आर्टिकल लिख रही हूं. तभी उसने सुषमा से बात करने की जिद्द की.
"क्या हुआ?"
"वही पुरानी कहानी. देर रात को वो पीकर आया. मैं और बच्चे जमीन पर सो रहे थे. सबसे पहले आते ही उसने बच्चों को मारा. मैं हड़बड़ा कर उठी. मुझे पता था अब क्या होने वाला है. इसलिए जल्दी से बच्चों को घर के बाहर भेजा. लेकिन मेरे दरवाजा बंद करने से पहले ही उसने अपनी पैंट खोल ली थी. मैंने भागने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे मुक्का मारा. जब सब खत्म हुआ तब मैं बच्चों को लेने के लिए बाहर गई. डरे सहमे बच्चे कोने में दुबके बैठे थे. बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी, बच्चे उसमें पूरी तरह भींग गए थे. मेरे पास इतना भी समय नहीं था कि मैं उन्हें छाता पकड़ा पाती." इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसुओं की तेज धार बह निकली थी.
"तुम पुलिस के पास नहीं गईं?"
"गई थी. एक साल पहले. पुलिस उसे उठाकर ले गई और डराने धमकाने के बाद छोड़ दिया. उस रात वो खुब गुस्से में आया और मुझे खुब मारा. इतना कि एक हफ्ते तक मैं बिस्तर से उठ नहीं पाई. पुलिस के पास जाने का कोई फायदा नहीं है. वो मुझे उससे नहीं बचा पाएंगे. इसके लिए मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता है..."
"क्या?"
"मैं उसे तलाक दे सकती हूं. मैंने इस बारे में एक वकील से बात की है. उसने कहा कि रेप के बारे में कुछ नहीं कह सकती. तो इसलिए उसके खिलाफ सिर्फ मारने पीटने की शिकायत ही कर सकते हैं. मुझे एलिमनी, बच्चों की कस्टडी और हर चीज के लिए लड़ना होगा. न तो मेरे पास पैसा है और न ही मैं इतनी पढ़ी लिखी हूं. अगर मैं उसे छोड़ देती हूं तो मुझे जीरो से शुरु करना होगा. और दो बच्चों के साथ ये डरावना है."
"तो तुम क्या करोगी?" मैंने पूछा.
"मुझे नहीं पता..."
सुषमा की कहानी सुनकर मैं सन्न थी. जवाब जानने के लिए मैं रेड एलिफैंट फाउंडेशन के पास गई. "भारत में महिलाओं का रेप अजनबियों की अपेक्षा अपने पतियों द्वारा किए जाने की संभावना 40 प्रतिशत अधिक होती है." एनजीओ में लीगल रिसर्चर वंदिता मोरारका ने मुझे ये बात बताई. वंदिता के साथ एनजीओ की संस्थापक किर्थी जयकुमार वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के लिए प्रचार करने में लगे दल का एक मुख्य हिस्सा थी.
एक तरफ जहां महिला एवं बाल विकास मंत्री मनेका गांधी ने कहा कि- वैवाहिक बलात्कार जैसी कोई बात भारतीय संदर्भ में लागू नहीं होती. वहीं दूसरी तरफ हम किर्थी जयकुमार जैसे समझदार लोगों की बातें भी सुनते हैं. वो कहती हैं- रेप, रेप ही होता है. फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की कहां हुआ या किस परिस्थिति में हुआ. आज के समय में भारत में जरुरत है वैवाहिक रेप के मामले में सजा देने की और साथ ही साथ लोगों में रेप, सहमति और पर्सनल स्पेस का ज्ञान बढ़ाने की.
समाज के लिए खतरा:
वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ हाल ही में कोर्ट में तर्क दिए गए कि इससे विवाह जैसी संस्था को नुकसान होगा. वंदिता जो वन फ्यूचर कलेक्टिव की संस्थापक और सीईओ भी हैं ने इस तर्क का पुरजोर विरोध किया. उनका कहना है- "जो लोग वैवाहिक बलात्कार के कारण विवाह को खतरे में मान रहे हैं, वो इसे विवाह के मूल धर्म के रुप में स्वीकार रहे हैं."
"क्या शादी का यही मतलब है? क्या शादी के संबंध को हम इसी तरीके से बढ़ाना चाहते हैं? शादी के बारे में हमें हमारी सोच बदलने की जरुरत है. आज हमें जरुरत है शादी का मतलब पुरुष प्रधान और एकपक्षिय संस्था से बदलकर बराबरी का और एक दूसरे की सहमति पर आधारित बरने की है."
सुषमा कहती है- "मैंने अपने पिताजी को देखा है मेरी मां को मारते हुए. शायद इसलिए ही मैं ऐसी डरी सहमी सी हूं और इस बेहूदगी को बर्दाश्त कर रही हूं. मुझे अपने बच्चों के लिए डर लग रहा है. मैं उन्हें प्यार करना चाहती हूं और उनसे सम्मान पाना चाहती हूं. ये अगली पीढ़ी तक नहीं जाना चाहिए."
थोड़ी समझदारी बची रहने दीजिए:
किर्थी की बात से मैं एकबार फिर सहमत हो गई- "दुनिया में किसी भी चीज का इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा सकता है. जिस चाकू का इस्तेमाल फल काटने के लिए किया जाता है, उसी चाकू से कत्ल भी किया जा सकता है. तो क्या आप चाकू को बैन कर देंगे? नहीं. इसी तरह हर कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है. सच्चाई तो ये है कि किसी भी कानून से लोगों को कितना फायदा हो रहा है ये देखना चाहिए. किसी कानून का दुरुपयोग रोकने का सबसे सही उपाय ये है कि कानून के लागू होने, उसका पालन होने, उसकी व्याख्या करने पर नजर रखी जाए."
अब कानून जब बनेगा तब बनेगा. लेकिन मैंने सुषमा से पूछा कि वो क्या बदलाव चाहती है. सुषमा का कहना था कि- "भारतीय महिलाएं जो पहली चीज चाहती हैं वो है 'चुनने की स्वतंत्रता'. हमें ये चुनने का अधिकार होना चाहिए कि हम पढ़ेंगे या नहीं, शादी करेंगे या नहीं, बच्चे चाहिए या नहीं, सेक्स करना चाहती हैं या नहीं. अब चाहे जो हो मैं अपनी बेटी को तो ये अधिकार दूंगी." इतना कहते हुए उसकी आंखों में उम्मीद की चमक थी.
(पहचान गुप्त रखने के मकसद से लोगों के नाम बदल दिए गए हैं. यह आपबीती bonobology.com पर प्रकाशित हुई है.
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