लड़कियां शादी से पहले सोचती हैं कि उन्हें सपनों का राजुकमा मिलेगा. जो उनकी हर छोटी-छोटी बात की परवाह करेगा. जो उनका पूरा ख्याल रखेगा. वे अपनी ख्याली दुनिया में खुश हो जाती हैं. उन्हें लगता है कि शादी के बाद उनकी जिंदगी बदल जाएगी. उनकी शादी होती है, वे अपने सुसराल जाती हैं. पति को पाकर वे फूले न समाती हैं. शादी के बाद कुछ दिनों उन्हें लगता है कि वे परियों की दुनिया में गलती से पहुंच गई हैं. मगर जब नई शादी का खुमार उतर जाता है और वे हकीकत की दुनिया में कदम रखती हैं तो पति के रूप में कुछ शैतान रूपी चेहरों को देखकर घबरा जाती हैं. अगर पति अच्छा निकल जाए तब तो उनकी जिंदगी सही कटती है वरना गलत इंसान के साथ उनकी जिंदगी नर्क बन जाती है.
स्टोन बेंच फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म 'अम्मू' भी घरेलू हिंसा पर आधारित है. इसमें ऐश्वर्या लक्ष्मी ने अम्मू नामक महिला का किरदार निभाया है जो घरेलू हिंसा का शिकार हो जाती है. इस फिल्म को चारुकेश सेकर ने निर्देशित किया है जो मूल रूप से तमिल में बनी है मगर इसे तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ के साथ हिंदी भाषा में अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम किया गया है. मैंने यह फिल्म कल ही देखी. कई सीन ऐसे हैं जो सिहरन पैदा कर देते हैं. अम्मू की हालत देख कई बार आंखों से आंसू निकल आते हैं...अम्मू वह महिला है जो अपने चोट छिपाने के लिए मेकअप लगा लेती है ताकि किसी को पता न चल जाए.
महिलाओं को सही गलत में फर्क करने के लिए यह फिल्म देखनी चाहिए. यह फिल्म बताती है कि घरेलू हिंसा होता क्या है?
अम्मू एक ऐसी लड़की है जो अपने घर में बहुत खुश है. उसके अम्मा बाबा उसे बहुत प्यार करते हैं. पड़ोस में रहने वाला रवि से उसकी शादी करा दी जाती है. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहता है मगर धीरे-धीरे रवि उसे अपना असली रूप दिखाना शुरु करता है. वह हर छोटी-छोटी बात पर अम्मू पर हाथ उठा देता है फिर उसके सामने रोकर माफी मांगता है. वह अम्मू को थप्पड़ मार देता है और फिर कहता है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं औऱ तुम्हारे बिना...
लड़कियां शादी से पहले सोचती हैं कि उन्हें सपनों का राजुकमा मिलेगा. जो उनकी हर छोटी-छोटी बात की परवाह करेगा. जो उनका पूरा ख्याल रखेगा. वे अपनी ख्याली दुनिया में खुश हो जाती हैं. उन्हें लगता है कि शादी के बाद उनकी जिंदगी बदल जाएगी. उनकी शादी होती है, वे अपने सुसराल जाती हैं. पति को पाकर वे फूले न समाती हैं. शादी के बाद कुछ दिनों उन्हें लगता है कि वे परियों की दुनिया में गलती से पहुंच गई हैं. मगर जब नई शादी का खुमार उतर जाता है और वे हकीकत की दुनिया में कदम रखती हैं तो पति के रूप में कुछ शैतान रूपी चेहरों को देखकर घबरा जाती हैं. अगर पति अच्छा निकल जाए तब तो उनकी जिंदगी सही कटती है वरना गलत इंसान के साथ उनकी जिंदगी नर्क बन जाती है.
स्टोन बेंच फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म 'अम्मू' भी घरेलू हिंसा पर आधारित है. इसमें ऐश्वर्या लक्ष्मी ने अम्मू नामक महिला का किरदार निभाया है जो घरेलू हिंसा का शिकार हो जाती है. इस फिल्म को चारुकेश सेकर ने निर्देशित किया है जो मूल रूप से तमिल में बनी है मगर इसे तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ के साथ हिंदी भाषा में अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम किया गया है. मैंने यह फिल्म कल ही देखी. कई सीन ऐसे हैं जो सिहरन पैदा कर देते हैं. अम्मू की हालत देख कई बार आंखों से आंसू निकल आते हैं...अम्मू वह महिला है जो अपने चोट छिपाने के लिए मेकअप लगा लेती है ताकि किसी को पता न चल जाए.
महिलाओं को सही गलत में फर्क करने के लिए यह फिल्म देखनी चाहिए. यह फिल्म बताती है कि घरेलू हिंसा होता क्या है?
अम्मू एक ऐसी लड़की है जो अपने घर में बहुत खुश है. उसके अम्मा बाबा उसे बहुत प्यार करते हैं. पड़ोस में रहने वाला रवि से उसकी शादी करा दी जाती है. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहता है मगर धीरे-धीरे रवि उसे अपना असली रूप दिखाना शुरु करता है. वह हर छोटी-छोटी बात पर अम्मू पर हाथ उठा देता है फिर उसके सामने रोकर माफी मांगता है. वह अम्मू को थप्पड़ मार देता है और फिर कहता है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं औऱ तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूं. जब तुमने घर न आने की बात कही तो मुझे गुस्सा आ गया. मैं तुम्हें चाहता हूं. ऐसे में तुम जब ऐसी बात करोगी तो मुझे गु्स्सा को आएगा ही. मैं ऐसा नहीं हूं, मैं बहुत सेंस्टिव हूं. तुमने गलती की तो गुस्सा आ गया. अब ऐसा मत करना.
रवि को लगता है कि पत्नी को पति की हर बात माननी चाहिए. पत्नी को पति के हिसाब से रहना चाहिए. अगर वह गड़बड़ करती है तो उसे सजा तो देना ही पड़ेगा. इसी सोच के साथ वह अपनी पत्नी पर हाथ उठाने की आदत बना लेता है. जब उसका मन किया वह पत्नी को थप्पड़ लगा देता है. भोजन की थाली फेंक देता है, सबके सामने चिल्ला देते हैं. ऐसा करके वे खुद को मर्द समझता है. वह पत्नी को अपने वश में रखना चाहता है. इस बात को ऐसे समझिए कि उसे अम्मू की सिलाई मशीन से भी चिढ़ है.
ऐसी स्थिती में अम्मू की तरह दूसरी महिलाओं को भी समझ नहीं आता कि वह क्या करें? रवि को नहीं समझ आता कि शादीशुदा महिलाएं पति के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली नहीं हैं. अम्मू चेहरे पर मेकअप लगाकर लोगों से अपनी चोट के निशान छिपाती फिरती है. वह पति को रिझाने में लग जाती है. वह पति की और अधिक केयर करने लगती है. वह हर संभव कोशिश करती है कि वह एक आदर्श पत्नी बन जाए ताकि उसे मार न पड़े.
इस तरह रवि के हाथों पिटना अम्मू की जिंदगी का हिस्सा बन गया. अम्मू को खुद ही समझ नहीं आ रहा है कि उसके साथ क्या हो रहा है. उसे रवि क्यों मारता है? उसे लगता है कि वह अपनी गलती के कारण ही पिटती है. वह अपनी ही गलती खोजती रहती है. वह अपनी हालत की जिम्मेदार खुद को समझती है. उसे लगता है कि उससे ही कोई गलती हो जा रही है. वह कहती है कि वह रवि को और अधिक समझेगी उसे औऱ अधिकर प्यार करेगी तो वह उसे नहीं मारेगा. वह एकदम परफेक्ट हाउसवाइफ बन जाएगी तो रवि उसे नहीं पीटेगा.
वह कहती है कि मैं रवि से प्यार करती हूं, वह मेरी दुनिया है मैं उसके हिसाब से बन जाउंगी. मैं उसे छोड़कर कभी नहीं जाउंगी. उसे लगता है कि उससे गलती से फाइल जल गई, गलती से सुई चुभ गई इसलिए रवि ने उसे पीटा. वह बिना बताए घर से बाहर चली गई इसलिए रवि को गुस्सा आ गया. ऑफिस में रवि का मूड खराब होगा इसिलए मुझे मारा. मैंने ही उसे गुस्सा दिलाया इलिए उनसे मुझे पीटा. वह इतना डर गई है कि यह मानने को तैयार नहीं है कि वह सही है औऱ रवि गलत. वह यह बताने की हालात में नहीं है कि रवि उसके साथ घरेलू हिंसा करता है.
मार खाना की अम्मू की आदत बन जाती है. अब यही उसकी जिंदगी है. एक बार उसका मां उसके मिलने उसके घर आती है. वह मां से कहती है कि रवि मुझे मारता है. मां कहती है कि तुमने कोई गलती की. रवि को अच्छा लड़का है वह ऐसे ही तुम्हें नहीं मारेगा. शादी के बाद यह सब तो बर्दाश्त करना होगा. मेरी मां ने मुझसे यही कहा था. उसे किसी बात पर गुस्सा आ गया होगा. पुरुष लोग बाहर जाकर बहुत काम करते हैं इसिलए कभी-कभी उनका दिमाग खराब हो जाता है. तुम चिंता मत करो बच्चा होगा तो सब ठीक हो जाएगा. बाकी तुम देखो कि तुम्हें क्या करना है?
अम्मू की हालत ऐसी हो गई है कि वह समझ नहीं पा रही है कि वह घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है. रवि सबके समाने उसकी बेइज्जती करता है. सबके सामने उसे डांटता है मगर अम्मू कुछ नहीं कर पाती है. वह सिर्फ अकेले में रोती रहती है. रवि पूरी तरह उस पर हावी हो जाता है. वह उसे कहीं बाहर जाने नहीं देता है. वह अम्मू की बातों को रिकॉर्ड करता है. उसे आंखें दिखाकर धमकाता है...यह सब सहते-सहते अम्मू मेंटली डिस्टर्ब हो जाती है. वह डिप्रेशन में चली जाती है. उसे जिंदगी से कोई मोह नहीं रहता है.
उसके पास एक पति की शिकायत दर्ज कराने का एक मौका आता है मगर वह रवि से डर के मारे कुछ बोल नहीं पाती है. फिल्म के आखिर में वह समझ जाती है कि गलती उसकी नहीं रवि की है. वह उसके साथ गलत कर रहा है. वह हिम्मत करती है और अपने लिए सोचना शुरु करती है. वह बिना हिंसक हुए रवि को सबक सिखाती है और अंत में वह रवि को जेल पहुंचा कर आजाद हो जाती है.
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