आज भी कई घरों में लड़कियां अपने फैसले खुद नहीं लेती. शादी के बाद भी उनके ससुराल वाले ही उनके बारे में सब कुछ तय करते हैं. कौन से कपड़े पहनने हैं, किससे दोस्ती करनी है यहां तक की मायके कब जाना है.
शादी में कन्यादान करने का मतलब यह नहीं होता कि घरवालों ने अपनी बेटी को पराया कर दिया या दान ही कर दिया. बेटियां भले ससुराल चली जाएं लेकिन उनका एक हिस्सा हमेशा के लिए अपने घर में बस जाता है, जिसे शादी के बाद मायका कहा जाता है. ससुराल के प्रति जिम्मेदारी निभाने का यह मतलब नहीं होता कि कोई लड़की अपने माता-पिता या भाई-बहन को भूल जाए.
अक्सर आपने देखा होगा या सुना होगा कि भले कुछ घंटों के लिए सही अगर लड़की का मायका एक शहर में हो तो वह छिपकर अपनों से मिलने है. कई बार ऐसा भी होता है कि किसी ससुराल वाले बहू की विदाई नहीं करते और उसे अपने मायके गए हुए सालों बीत जाते हैं. ऐसे में दूर रहते हुए जब भी उसे मौका मिलता है तो वह छुपकर घरवालों से मिलने आ जाती है.
शायद आपको लगे कि इस जमाने में ऐसा कौन करता है तो यह जानकर हैरानी होगी कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पुराने ख्यालातों वाले होते हैं. जिनके घर की महिलाओं के लिए पाबंदियां होती हैं. जिनके बिना मर्जी और बिना परमिशन के बहुएं मायके नहीं जा सकतीं. कई लोगों के घरों में तो यह भी तय होता है कि एक साल में कितनी दफा बहू मायके जाएगी.
बड़े शहरों की बात छोड़ दीजिए, कभी छोटे शहर और गांवों की तरफ नजर घुमाइए तब पता चलेगा कि सारी दुनिया वैसी नहीं है, जैसा हम सोचते हैं. आज ऐसी तीन लड़कियों की कहानी आपको बता रहे हैं.
1- नीरू की शादी (marriage) हुए एक साल से अधिक हो गए लेकिन वह मायके नहीं आ पा रही थी. उसे अपने घर...
आज भी कई घरों में लड़कियां अपने फैसले खुद नहीं लेती. शादी के बाद भी उनके ससुराल वाले ही उनके बारे में सब कुछ तय करते हैं. कौन से कपड़े पहनने हैं, किससे दोस्ती करनी है यहां तक की मायके कब जाना है.
शादी में कन्यादान करने का मतलब यह नहीं होता कि घरवालों ने अपनी बेटी को पराया कर दिया या दान ही कर दिया. बेटियां भले ससुराल चली जाएं लेकिन उनका एक हिस्सा हमेशा के लिए अपने घर में बस जाता है, जिसे शादी के बाद मायका कहा जाता है. ससुराल के प्रति जिम्मेदारी निभाने का यह मतलब नहीं होता कि कोई लड़की अपने माता-पिता या भाई-बहन को भूल जाए.
अक्सर आपने देखा होगा या सुना होगा कि भले कुछ घंटों के लिए सही अगर लड़की का मायका एक शहर में हो तो वह छिपकर अपनों से मिलने है. कई बार ऐसा भी होता है कि किसी ससुराल वाले बहू की विदाई नहीं करते और उसे अपने मायके गए हुए सालों बीत जाते हैं. ऐसे में दूर रहते हुए जब भी उसे मौका मिलता है तो वह छुपकर घरवालों से मिलने आ जाती है.
शायद आपको लगे कि इस जमाने में ऐसा कौन करता है तो यह जानकर हैरानी होगी कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पुराने ख्यालातों वाले होते हैं. जिनके घर की महिलाओं के लिए पाबंदियां होती हैं. जिनके बिना मर्जी और बिना परमिशन के बहुएं मायके नहीं जा सकतीं. कई लोगों के घरों में तो यह भी तय होता है कि एक साल में कितनी दफा बहू मायके जाएगी.
बड़े शहरों की बात छोड़ दीजिए, कभी छोटे शहर और गांवों की तरफ नजर घुमाइए तब पता चलेगा कि सारी दुनिया वैसी नहीं है, जैसा हम सोचते हैं. आज ऐसी तीन लड़कियों की कहानी आपको बता रहे हैं.
1- नीरू की शादी (marriage) हुए एक साल से अधिक हो गए लेकिन वह मायके नहीं आ पा रही थी. उसे अपने घर की याद आ रही थी. ऐसा नहीं है कि उसके ससुराल में कोई कमी थी लेकिन नए रिश्ते मिलने से पुराने रिश्ते, वो भी अपने घरवालों कोई भूल पाता है क्या. वह मां को फोन पर कहती मम्मी घर आना है, मुझे सबकी याद आती है. मैं सबको बहुत मिस करती हूं, लेकिन नीरू की मम्मी जब भी उसकी सासू मां से उसे घर बुलाने की बात करतीं तो वह कोई ना कोई बहाना बनाकर मना कर देती, क्योंकि वह बहुत ज्यादा पाखंडी विचारधारा वाली हैं. नीरू अब उदास रहने लगी, उसका वहां मन नहीं लगता. एक दिन उसे मौका मिला जब वह अपने मायके के पास वाले शहर में होली की शाम पति के साथ आने वाली थी. वह कुछ देरी के लिए ही सही बिना किसी को बताए घर आ गई. घर आते ही उसका चेहरा खिल गया. वह उसी रात ससुराल भी चली गई क्योंकि उसकी सासू मां को बुरा लगता.
2- संगीता की शादी को 8 साल हो गए. उसकी शादी दिल्ली के एक पॉश इलाके में हुई है लेकिन ससुराल ना जाने किस जमाने में जीते हैं. उसके ससुराल में हर चीज पर पाबंदी है. वह ससुराल में अपने मनपसंद के कपड़े भी नहीं पहन सकती. मायके भी साल में एक बार जाने को मिल जाए वही बहुत है. पति की पोस्टिंग दूसरे शहर में है. वह बताती है कि एक बार मां बीमार थी, तब बिना ससुराल में बताए मैं मां से मिलने गई थी. अगर बताती तो उनसे मिल नहीं पाती. ऊपर से मायके से ससुराल आने पर सब यही देखते कि मां ने विदाई में क्या-क्या दिया है. कुछ कमी लगने पर फिर वही पुरानी बातें कि ये नहीं दिया, ऐसी साड़ी कौन पहनेगा...इसलिए मैंने नहीं बताया. ऐसा जरूरी नहीं कि हर बार मायके जाने पर मैं विदाई में सामान भर कर ससुराल लेकर जाउं. वो भी जब वे परेशान हों.
3- दिल्ली के एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली प्रेरणा का मायका मेरठ में है. कई बार वह शनिवार को हाफ डे लेकर मायके जातीं, वहां अपने माता-पिता से मिलती फिर ससुराल के लिए निकलतीं और रोज की तरह समय घर पहुंच जाती. ससुराल में वह नहीं बताती कि वह मां-पापा के पास गई थीं. इस बारे में उनका कहना है कि लड़की जब मायके की दहलीज पार कर ससुराल में कदम रखती है, तो उस घर को ही अपना मान लेती है. उस घर की हर चीज को अपना मानने के लिए हर प्रयास करती है, लेकिन जब सासू मां बहू को बेटी नहीं मान पातीं और परिवार में बहू को वो स्नेह (love) नहीं मिल पाता. साथ ही उसके मायके में जाने पर पाबंदियां लग जाती हैं. यही वो वजहें हैं जो हम बेटियों को यह राह चुनने पर मजबूर करते हैं.
हमें लगता है कि अगर बता कर जाउंगी तो मुझपर नज़र रखी जाएगी. रोका-टोका जाएगा. वहीं मायके से हमसे पूछताछ होगी कि क्या दिया तेरी मां ने हमारे लिए. हम बेटियां अपने पेरेंट्स पर हर समय ये बेवजह बोझ नहीं पढ़ने देना चाहतीं. वहीं शादी के बाद पेरेंट्स (parents) को किसी भी तरह की मदद पहुंचाना ससुराल वालों को पसंद नही होता, ऐसे में एक लड़की छिप कर अपना फर्ज निभाती है.
असल में शादी के बाद बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी बहू को मायके की जिम्मेदारी निभाने की छूट देते हैं. उन्हें लगता है कि इस तरह वह अपने घर में ही फंसी रहेगी और ससुराल पर ध्यान नहीं दे पाएगी. मैंने ऐसे भी मजबूर पिता को देखा था कि वो कैसे अपनी ही बेटी से मिलने उसके ऑफिस आते थे, क्योंकि बेटी के सुसराल वालों को यह पसंद नहीं था. क्या शादी के बाद पिता का अपनी ही बेटी पर कोई हक नहीं होता, फिर एक पिता क्यों बेटी की सुख-शांति के लिए सब जानते हुए चुप रहता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.