Me Too कैम्पेन की एक सबसे अच्छी बात ये भी है कि यदि ये कैम्पेन न चलता तो हमें कभी उन सफेदपोश चेहरों का पता ही नहीं चलता जिनके भीतर रावण छुपा था जो लगातार मानवता को तार तार कर रहा था.
दशहरा कभी भी आए. एक बहुत बड़ा तर्क जो हर साल हमारे सामने आता है, वो ये कि 'इंसान अपने भीतर के रावण का नाश करे.' यानी वो बुराइयों का मार्ग त्याग कर अच्छाइयों को अपनाए. दशहरे के मद्देनजर बात अच्छाइयों और रावण की हो रही है. हम रावणों से घिरे हैं. क्या दफ्तर, क्या घर. रावण हमारे चारों ओर हैं. इनमें से कुछ तो सफेदपोश भी हैं. अब इनके चेहरे Me Too कैम्पेन के बाद धीरे धीरे हमारे सामने आ रहे हैं. इस अभियान में जो रावण अब तक बचे हुए हैं, उनकी भी धड़कनें तो शर्तिया बढ़ी हुई हैं. वे यही दुआ कर रहे होंगे कि उनका नाम बाहर न आ जाए.
प्रत्येक दशहरा हम यही सुनते हैं कि हमें अपने अन्दर के रावण का विनाश करना चाहिए
जिस वक़्त भारत में MeToo कैम्पेन की शुरुआत हुई, इसे रावणों (शोषण करने वाले अपराधियों) ने इसे हल्के में लिया. उन्हें लग रहा था कि उनके अपराध की लंका का ये कुछ ट्वीट क्या बिगाड़ पाएंगे. MeToo कैम्पेन के बाद क्या बॉलीवुड, क्या मीडिया, कॉरपरेट से लेकर न्यायपालिका तक में मौजूद यौन शोषण के आरोपियों के नाम बाहर आए. साफ हो गया कि ये कैम्पेन उतना हल्का बिल्कुल नहीं था, जितना इसे कुछ लोगों द्वारा माना जा रहा था. और ये भी साबित हो गया कि इन अपराधियों ने भी महिलाओं के आरोपों को उसी तरह हल्के में लिया, जिस तरह रावण ने राम की चुनौती को लिया था.
टीवी और सिनेमा इंडस्ट्री में आलोकनाथ, नाना पाटेकर, अनु मलिक, कैलाश खेर, रघु दीक्षित, अभिजीत भट्टाचार्य, सुभाष घई. पत्रकारिता में, विनोद दुआ. राजनीति में, एम जे अकबर. न्यायपालिका में, सोली सोराबजी जैसे कई बड़े नाम आज हमारे सामने आ गए हैं. इनमें से कुछ तो रावण की तरह खेत रहे, कुछ युद्ध लड़ रहे हैं.
दशहरा कभी भी आए. एक बहुत बड़ा तर्क जो हर साल हमारे सामने आता है, वो ये कि 'इंसान अपने भीतर के रावण का नाश करे.' यानी वो बुराइयों का मार्ग त्याग कर अच्छाइयों को अपनाए. दशहरे के मद्देनजर बात अच्छाइयों और रावण की हो रही है. हम रावणों से घिरे हैं. क्या दफ्तर, क्या घर. रावण हमारे चारों ओर हैं. इनमें से कुछ तो सफेदपोश भी हैं. अब इनके चेहरे Me Too कैम्पेन के बाद धीरे धीरे हमारे सामने आ रहे हैं. इस अभियान में जो रावण अब तक बचे हुए हैं, उनकी भी धड़कनें तो शर्तिया बढ़ी हुई हैं. वे यही दुआ कर रहे होंगे कि उनका नाम बाहर न आ जाए.
प्रत्येक दशहरा हम यही सुनते हैं कि हमें अपने अन्दर के रावण का विनाश करना चाहिए
जिस वक़्त भारत में MeToo कैम्पेन की शुरुआत हुई, इसे रावणों (शोषण करने वाले अपराधियों) ने इसे हल्के में लिया. उन्हें लग रहा था कि उनके अपराध की लंका का ये कुछ ट्वीट क्या बिगाड़ पाएंगे. MeToo कैम्पेन के बाद क्या बॉलीवुड, क्या मीडिया, कॉरपरेट से लेकर न्यायपालिका तक में मौजूद यौन शोषण के आरोपियों के नाम बाहर आए. साफ हो गया कि ये कैम्पेन उतना हल्का बिल्कुल नहीं था, जितना इसे कुछ लोगों द्वारा माना जा रहा था. और ये भी साबित हो गया कि इन अपराधियों ने भी महिलाओं के आरोपों को उसी तरह हल्के में लिया, जिस तरह रावण ने राम की चुनौती को लिया था.
टीवी और सिनेमा इंडस्ट्री में आलोकनाथ, नाना पाटेकर, अनु मलिक, कैलाश खेर, रघु दीक्षित, अभिजीत भट्टाचार्य, सुभाष घई. पत्रकारिता में, विनोद दुआ. राजनीति में, एम जे अकबर. न्यायपालिका में, सोली सोराबजी जैसे कई बड़े नाम आज हमारे सामने आ गए हैं. इनमें से कुछ तो रावण की तरह खेत रहे, कुछ युद्ध लड़ रहे हैं.
हमारे समाज में ऐसे बहुत से चेहरे थे जिनके अंदर छुपे रावण को मीटू कैम्पेन ने बेनकाब किया है
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि, MeToo ने न सिर्फ महिलाओं को सशक्त किया. बल्कि उन्हें एक प्लेटफॉर्म दिया है ताकि वो खुल कर अपने साथ हुए शोषण के बारे में दुनिया को बता सकें. गृहणी से लेकर वर्किंग प्रोफेशनल तक किसी भी क्षेत्र में रहकर काम करने वाली महिला को इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि Me Too उसके लिए एक ब्रह्मास्त्र हैं. Me Too के रूप में एक ऐसा हथियार उसे मिला है जिसे खींचकर वो बड़े से बड़े और शक्तिशाली से शक्तिशाली रावण का वध कर सकती है.
Me too अभियान में आवाज उठा रही महिलाओं को लेकर सवाल किया जा रहा है कि वे अब तक चुप क्यों रहीं. इस बात का जवाब रामायण में सीता के अनुभव से जोड़कर भी समझा जा सकता है. कहानी त्रेता युग की है, लेकिन उसके सबक तो कलयुग में भी लिए ही जा सकते हैं. जब निरपराध होते हुए माता सीता को अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि-परीक्षा देनी पड़ी थी, तो भला साधारण महिलाओं की कहानियों पर कौन भरोसा करता. इस दशहरे पर रावण के अंत के साथ हम समाज में महिलाओं का यौन-शोषण करने वाले पुरुषों के अंजाम तक पहुंचने की बात कर रहे हैं तो ये भी याद रखना होगा कि किसी कड़वा अनुभव सार्वजनिक करने वाली किसी महिला को नाहक अग्नि-परीक्षा न देनी पड़े.
संकल्प कीजिए कि शोषण करने वाले रावण तो हर दिन मारे जाएंगे, लेकिन निर्दोष महिलाओं को अग्नि-परीक्षा देने वाली रामायण कभी न दोहराई जाएगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.