हर घर के अपने नियम और कायदे होते हैं और परिवार में रहने वाले हर सदस्य को उनका पालन भी करना होता है. वो बात और है कि घर की बहुओं के लिए ये कायदे थोड़े ज्यादा होते हैं और औरों से कड़े भी. ये हर घर की कहानी है, वो चाहे आम इंसान का घर हो या फिर महारानी एलिजाबेथ का. वैसे ब्रिटिश शाही परिवार की तो हर बात थोड़ी ज्यादा ही होती है.
फिलहाल तो मेघन मार्कल और प्रिंस हैरी चर्चाओं में बने हुए हैं, क्योंकि खबरें है कि मेघन मां बनने वाली है. और ऐसे में वो क्या पहन रही हैं, कहां जा रही हैं, कैसे चल रही हैं, ये सब कुछ गौर किया जा रहा है. यूं तो मेघन और हैरी के तौर तरीकों को लेकर वैसे भी लोगों की त्योरियां चढ़ी रहती हैं लेकिन इन दोनों पर आंखे गड़ाए लोगों ने एक और बात नोटिस की है. वो ये कि जब मेघन और प्रिंस हैरी साथ-साथ चलते हैं तो असल में वो साथ नहीं चलते, बल्कि मेघन प्रिंस हैरी के पीछे चलती हैं, चाहे वो हाथ पकड़े चल रहे हों या फिर साथ-साथ.
मेघन मार्केल प्रिंस हैरी के पीछे ही चलती हैं, भले ही दोनों हाथ पकड़कर साथ चलें
तहज़ीब और तमीज़ के एक्सपर्ट विलियम हैनसन का कहना है कि 'मेघन प्रिंस और शाही परिवार को इज्जत देने के लिए प्रिंस हैरी के पीछे चलती हैं. ब्रिटिश रॉयल्टी के लिए मानक अभ्यास है कि 'शाही खून' (शाही परिवार में जन्मा) को आगे चलना चाहिए जबकि जो उनसे शादी करके आए हैं वो उनके पीछे रहें. भले ही दोनों अपने हिसाब से जीवन जी रहे हों लेकिन फिर भी वो दोनों ब्रिटिश राजशाही के नियमों का पालन कर रहे हैं, ये जानते हुए कि मेघन राज घराने में पैदा नहीं हुई हैं और शाही लोगों से अलग हैं.'
प्रिंस हैरी कई बार लोगों से गले मिल चुके हैं, लेकिन कुछ तौर-तरीके हमेशा निभाते हैं
हैरी और मेघन का लाइफस्टाइल बाकी शाही लोगों से थोड़ा सा अलग है, वो सामान्य लोगों की तरह घूमना फिरना और कपड़े पहनना पसंद करते हैं, वो लोगों से भी बड़ी आत्मीयता से मिलते हैं, यहां तक कि जहां शाही लोगों को आम लोगों को छूना तक मना है, वहीं मेघन और हैरी को इन नियमों को तोड़ते हुए भी देखा गया है. हैरी और मेघन अपने बीच के प्रेम को एक दूसरे का हाथ थामकर हमेशा दिखाते आए हैं, लेकिन मेघन तब भी हैरी के पीछे ही चलती दिखाई देती हैं, भले ही एक कदम पीछे हों.
ये राज शाही का सम्मान है या पितृसत्ता का?
इतना ही नहीं मेघन तो रानी के साथ भी नहीं चल सकतीं और न ही अपनी जेठानी केट के साथ चल सकती हैं. मेघन की ससुराल, यानी ब्रिटिश राज घराने के नियमानुसार राज परिवार अगर एक साथ खड़ा भी हो तो भी मेघन को अपने औहदे के हिसाब से ही खड़ा होना होगा. इसलिए वो केट के भी पीछे ही खड़ी दिखाई देती हैं.
इन सभी चीजों का पालन मेघन की जेठानी केट ने भी किया. और करें भी क्यों न, घर की बहुएं संस्कारी हों तभी सास को अच्छी लगती हैं. बहू का पहनावा हो, बोल-चाल का लहजा हो या फिर उसका आचार व्यवहार, ये चीजों तो हर सास को खटकती हैं, क्योंकि ये कभी भी ससुराल के हिसाब से नहीं होतीं, उसमें बेहतरी की गुंजाइश हमेशा होती ही है.
मेघन अपनी जेठानी केट के भी पीछे ही चलती हैं
आपने एक चुटकुला जरूर सुना होगा-
एक सयानी सास ने नई-नई आई बहू से पूछा- बहू, मान लो अगर तुम पलंग पर बैठी हो और मैं भी उस पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी?
बहू : तो मैं उठकर सोफे पर बैठ जाऊंगी.
सास : और अगर मैं भी आकर सोफे पर बैठ जाऊं तो क्या करोगी?
बहू : तो मैं फर्श पर चटाई बिछाकर बैठ जाऊंगी.
सास : और अगर मैं भी चटाई पर आ जाऊं तो फिर क्या करोगी?
बहू : तो मैं जमीन पर बैठ जाऊंगी.
सास (मजे लेते हुए आगे बोली) : और मैं जमीन पर भी तुम्हारे बगल में बैठ गई तो क्या करोगी?
बहू : तो मैं जमीन में गड्ढा खोद कर उसमें बैठ जाऊंगी.
सास : और अगर मैं गड्ढे में भी आकर बैठ गई तो?
बहू : तो मैं ऊपर से मिट्टी डालकर मामला ही खत्म कर दूंगी.
हंसने वाली बात पर हंसना चाहिए. लेकिन ये वरिष्ठों को सम्मान देने के लिए बनाए गए नियम और कायदे हैं. और भारतीय समाज में देखें तो यहां ससुराल का हर व्यक्ति घर आई बहू से वरिष्ठ ही बताया जाता है. और उनका सम्मान करने के लिए उनके पांव छूना अत्यंत आवश्यक माना गया है. फिर चाहे वो उम्र में कई साल छोटी ननद हो या फिर ननद के बच्चे. घर के बेटे भले ही इस तरह की इज्जत मां-बाप और वरिष्ठों को दें न दें लेकिन घर आई हर बहू को ये कुछ कायदे निभाने ही होते हैं.
यानी ब्रिटिश राज घराना हो या फिर मोहल्ले की मिसेज़ गुप्ता, सबको अपनी बहुओं से यही चाहिए होता है कि वो अपने-अपने घर के नियमों का पालन करें और परंपरा को आगे बढ़ाएं. खासतौर पर तब, जब वो घर के बाहर हों, क्योंकि वो ऐसा नहीं करेंगी तो 'लोग क्या कहेंगे' 'घर की परंपरा भी कोई चाज़ है' 'आखिर खानदान की इज्जत का सवाल है'. और परंपरा की दुहाई राजघरानों के कायदों जैसी होती है, आसानी से टूटती नहीं. मेघन हैरी के पीछे चलती हैं तो इसे राजशाही को सम्मान देना कहा जाए या फिर पितृसत्ता के आगे नतमस्तक होना, ये आप ही तय करें.
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