बड़े कठोर शब्दों में कहा जाता है कि लड़के क्या जाने कि त्याग क्या होता है? वे तो मस्त रहते हैं. उन्हें घर का कोई काम नहीं करना पड़ता. वे जो डिमांड करते उनके सामने हाजिर हो जाता है. वे सिर्फ बना बनाया खाना जानते हैं. उन्हें घर गृहस्थी की जिम्मेदारी से कोई मतलब नहीं होता है. उन्हें शादी के बाद अपना घऱ छोड़कर किसी के घर जाना नहीं पड़ता. वे जिंदगी भर अपने घरवालों के साथ रह सकते हैं. उन्हें हमेशा माता-पिता का प्यार मिलता रहता है.
इसके उलट एक लड़की शादी के बाद अपना घर, अपने माता-पिता अपनी दुनिया सबकुछ छोड़कर पति के साथ आ जाती है. वह पति के साथ एक नई दुनिया बसाती है. वह घरवालों का ख्याल रखती है. पूरा घऱ संभालती है सबके लिए खाना बनाती है. मगर लोग यह भूल जाते हैं कि एक लड़की भी अपनी जिंदगी में परिवार के लिए बहुत त्याग करता है.
यह धारणा गलत है कि सारा त्याग लड़कियां करती हैं. ऐसा कहने वाले शायद किसी जिम्मेदार शादीशुदा पुरुष से नहीं मिले हैं. पुरुष भी त्याग करते हैं. कभी बहन, कभी पत्नी, कभी मां तो कभी बेटी के लिए वो भी कुर्बानियां देते हैं. वो परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए दिन रात काम करते हैं. अगर लड़की अपना घर छोड़कर सिर्फ लड़के के लिए आती है तो वे भी पूरी जिंदगी उसकी देखभाल और उसकी जरूरतों को पूरी करने में निकाल देते हैं.
बचपन में बहन की जिम्मेदारी उठाते हैं. उसका ख्याल रखते हैं. उसकी शादी में मजदूर की तरह खटते हैं. उसके लिए अपनी कमाई का हिस्सा देते हैं. वे अपनी दोस्त को स्टेशन पहुंचाने जाते हैं. प्रेमिका छोड़कर चली जाए तो वे भी छिपकर रोते हैं. शादी के बाद पत्नी की जिम्मेदारी उठाते हैं. दर्द सहते हैं. मगर किसी के सामने अपने दर्द को जाहिर नहीं होने देते हैं....
बड़े कठोर शब्दों में कहा जाता है कि लड़के क्या जाने कि त्याग क्या होता है? वे तो मस्त रहते हैं. उन्हें घर का कोई काम नहीं करना पड़ता. वे जो डिमांड करते उनके सामने हाजिर हो जाता है. वे सिर्फ बना बनाया खाना जानते हैं. उन्हें घर गृहस्थी की जिम्मेदारी से कोई मतलब नहीं होता है. उन्हें शादी के बाद अपना घऱ छोड़कर किसी के घर जाना नहीं पड़ता. वे जिंदगी भर अपने घरवालों के साथ रह सकते हैं. उन्हें हमेशा माता-पिता का प्यार मिलता रहता है.
इसके उलट एक लड़की शादी के बाद अपना घर, अपने माता-पिता अपनी दुनिया सबकुछ छोड़कर पति के साथ आ जाती है. वह पति के साथ एक नई दुनिया बसाती है. वह घरवालों का ख्याल रखती है. पूरा घऱ संभालती है सबके लिए खाना बनाती है. मगर लोग यह भूल जाते हैं कि एक लड़की भी अपनी जिंदगी में परिवार के लिए बहुत त्याग करता है.
यह धारणा गलत है कि सारा त्याग लड़कियां करती हैं. ऐसा कहने वाले शायद किसी जिम्मेदार शादीशुदा पुरुष से नहीं मिले हैं. पुरुष भी त्याग करते हैं. कभी बहन, कभी पत्नी, कभी मां तो कभी बेटी के लिए वो भी कुर्बानियां देते हैं. वो परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए दिन रात काम करते हैं. अगर लड़की अपना घर छोड़कर सिर्फ लड़के के लिए आती है तो वे भी पूरी जिंदगी उसकी देखभाल और उसकी जरूरतों को पूरी करने में निकाल देते हैं.
बचपन में बहन की जिम्मेदारी उठाते हैं. उसका ख्याल रखते हैं. उसकी शादी में मजदूर की तरह खटते हैं. उसके लिए अपनी कमाई का हिस्सा देते हैं. वे अपनी दोस्त को स्टेशन पहुंचाने जाते हैं. प्रेमिका छोड़कर चली जाए तो वे भी छिपकर रोते हैं. शादी के बाद पत्नी की जिम्मेदारी उठाते हैं. दर्द सहते हैं. मगर किसी के सामने अपने दर्द को जाहिर नहीं होने देते हैं. उन्हें भी तकलीफ होती है मगर किसी से कुछ कहते नहीं है.
दिन भर ऑफिस में खटते हैं, थककर घर आते हैं तो घर के छोटे-मोटे काम निपटाते हैं. बच्चों को टाइम देते हैं. कई बार कुछ पुरुषों को घर छोड़कर बाहर कमाने जाना पड़ता है. वे दूसरे शहर जाकर अकेले रहते हैं. नौकरी करते हैं ताकि उनके घऱवालों को कोई परेशानी ना हो. हर महीने सैलरी के लिए वे दिन-रात एक करते हैं. उनके सिर पर हमेशा जिम्मेदारियों का बोझ होता है. माता-पिता की दवाई, घऱ की छत, बच्चों की पढ़ाई, और शादी की चिंता लगी रहती है. कई बार वे इन सब के लिए लोन लेता है, फिर कर्ज चुकाते हैं. मगर वे किसी को पता नहीं चलने देते हैं कि वह इतना कुछ कैसे मैनज कर रहे हैं.
देखिए लड़के क्या त्याग करते हैं-
एक पुरुष अपनी पूरी जिंदगी में कमाने निकाल देता है.
एक पुरुष यह सोचने में निकाल देता है कि अपने परिवार को कैसे खुश रखा जाए?
एक पुरुष यह सोचने में निकाल देता है कि उसके बच्चे के किस स्कूल में भेजा जाए, कैसे उसकी पढ़ाई अच्छे से हो?
एक पुरुष यह सोचने में निकाल देता है कि घऱ कैसे चलेगा? बचत कैसे होगी?
एक पुरुष यह सोचने में निकाल देता है कि कैसे परिवार को एक साथ जोड़कर रखा जाए?
असल में एक पुरुष की लाइफ बहुत टफ होती है. जब बच्चा बीमार पड़ता है घर में दुख आता है तो महिलाएं रो देती हैं मगर पुरुष के ऊपर इतनी जिम्मेदारियां होती हैं कि वह उफ्फ तक नहीं करता. बुखार में बच्चे की पट्टी वह भी करता है. मगर सबको मां की ममता दिखती है पिता की तड़प प्यार नहीं. यह सही है कि महिलाएं बहुत करती हैं मगर पुरुष होना भी कोई आसान नहीं है.
एक पुरुष सेल्फिश नहीं होता है. वह खुद के बारे में ना सोचकर सबसे पहले अपनी पत्नी, बच्चे औऱ माता-पिता के बारे में सोचता है. वह अपने लिए कभी कुछ नहीं लेता है लेकिन सभी को जरूरत की हर चीज दिलाने की कोशिश करता है. वह खुद को सबसे आखिरी में रखता है और परिवार को पहले. कई बार तो वह बच्चे के नए जूते खरीदने के लिए अपने पुराने जूते से ही काम चलाता है.
कुल मिलाकर एक पुरुष अपनी पूरी जिंदगी अपने परिवार पर न्योछावर कर देता है. जिसे समझना है वह समझ सकते हैं और जिन्हें समझना उनकी बात ही छोड़ दीजिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.