Mirzapur...क्या इतना सुनते ही आपके दिमाग में हिंसा, गोलीबारी, गुंडागर्दी जैसे ख्याल आ गए. क्या सालों पहले भी आप इस शहर के बारे में ऐसा ही सोचते थे या फिर यह Mirzapur Web Series का असर है. अगर ऐसा है तो आप यूपी के असली मिर्जापुर से अनजान हैं.
हम सभी को लगभग अपने शहर से प्यार होता है. हमारा बचपन जिसे हम दोबारा जीना चाहते हैं वहीं बीता रहता है. भले पढ़ाई-लिखाई या नौकरी की वजह से हम अपने शहर से दूर हो जाते हैं लेकिन भूल नहीं पाते. दिलवाले दुल्हनियां हो (DDLJ), स्वदेश हो या परदेश. ऐसी फिल्मों को देखकर हमें अपने शहर अपने गांव की याद जरूर आती है. बचपन में गाड़ियों के पीछे भागना, पड़ोस वाले दादाजी को चिढ़ाना या दोस्तों के साथ बिजली चले जाने पर छुप्पम छुपाई खेलना.
ऐसी यादों के साथ हम अपने शहर को अलविदा करते हैं और जिंदगी कोे चलाने के लिए निकल पड़ते हैं महानगरों की तरफ जहां रोजी-रोटी कमा सकें. इस दौर में नौकरी मिलना कितना मुश्किल है यह हम सब से छिपा नहीं है. नामुमकिन तो नहीं कहेंगे लेकिन आसान भी नहीं कहेंगे.
एक युवक जिसका नाम दीपू प्रजापति शॉर्टलिस्ट होने के बाद अपने शहर Mirzapur से कामयाबी के सपने लिए मायानगरी मुंबई में कदम रखता है. वह एक रेस्ट्रों के मैनेजर से मिलता है. जहां बायोडाटा देखने के बाद मैनेजर ने दीपू से पूछा कि क्या तुम मिर्जापुर के रहने वाले हो...जबाव में दीपू ने कहा जी सर, मैं यहीं का रहने वाला हूं. इस पर मैनेजर ने कहा कि, ‘मिर्जापुर के लोग तो गुंडा-बदमाश होते हैं, तुम यहां क्या कर रहे हो जाओ गुंडागिर्दी करो’.
इसके बाद दीपू को इंटरव्यू वाले कमरे से बाहर कर दिया गया. थोड़ी देर बाद एक आदमी बाहर आया और बोला कि तुम्हारे लिए यहां...
Mirzapur...क्या इतना सुनते ही आपके दिमाग में हिंसा, गोलीबारी, गुंडागर्दी जैसे ख्याल आ गए. क्या सालों पहले भी आप इस शहर के बारे में ऐसा ही सोचते थे या फिर यह Mirzapur Web Series का असर है. अगर ऐसा है तो आप यूपी के असली मिर्जापुर से अनजान हैं.
हम सभी को लगभग अपने शहर से प्यार होता है. हमारा बचपन जिसे हम दोबारा जीना चाहते हैं वहीं बीता रहता है. भले पढ़ाई-लिखाई या नौकरी की वजह से हम अपने शहर से दूर हो जाते हैं लेकिन भूल नहीं पाते. दिलवाले दुल्हनियां हो (DDLJ), स्वदेश हो या परदेश. ऐसी फिल्मों को देखकर हमें अपने शहर अपने गांव की याद जरूर आती है. बचपन में गाड़ियों के पीछे भागना, पड़ोस वाले दादाजी को चिढ़ाना या दोस्तों के साथ बिजली चले जाने पर छुप्पम छुपाई खेलना.
ऐसी यादों के साथ हम अपने शहर को अलविदा करते हैं और जिंदगी कोे चलाने के लिए निकल पड़ते हैं महानगरों की तरफ जहां रोजी-रोटी कमा सकें. इस दौर में नौकरी मिलना कितना मुश्किल है यह हम सब से छिपा नहीं है. नामुमकिन तो नहीं कहेंगे लेकिन आसान भी नहीं कहेंगे.
एक युवक जिसका नाम दीपू प्रजापति शॉर्टलिस्ट होने के बाद अपने शहर Mirzapur से कामयाबी के सपने लिए मायानगरी मुंबई में कदम रखता है. वह एक रेस्ट्रों के मैनेजर से मिलता है. जहां बायोडाटा देखने के बाद मैनेजर ने दीपू से पूछा कि क्या तुम मिर्जापुर के रहने वाले हो...जबाव में दीपू ने कहा जी सर, मैं यहीं का रहने वाला हूं. इस पर मैनेजर ने कहा कि, ‘मिर्जापुर के लोग तो गुंडा-बदमाश होते हैं, तुम यहां क्या कर रहे हो जाओ गुंडागिर्दी करो’.
इसके बाद दीपू को इंटरव्यू वाले कमरे से बाहर कर दिया गया. थोड़ी देर बाद एक आदमी बाहर आया और बोला कि तुम्हारे लिए यहां कोई जगह नहीं है. फिलहाल दीपू ने इस सीरीज के निर्माता-निर्देशक के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है. तो क्या इस शहर के लोगों को इस वजह से बेरोज़गारी झेलनी पड़ेगी. सवाल यह है कि निर्माता-निर्देशक क्या सोचकर किसी भी शहर की छवि खराब करते हैं. अगर आप नेट (Internet) पर मिर्जापुर के बारे में सर्च करते हैं तो सीरीज सबसे पहले दिखाई देती है. जबकि इस शहर का मिजाज सीरीज से परे है.
मैंने अपने कई दोस्तों को देखा है जो अपने शहर का नाम लेने से झिझकते हैं. जैसे पूर्वांचल के किसी जिले से हैं तो दिल्ली वालों के लखनऊ बता दिया. क्योंकि सही जगह का नाम बताते ही सामने वाला कहता है अच्छा वहां से हो, अरे वहां तो बहुत क्राइम (Crime) है या फिर वहां के लोग तो बड़े वो होते हैं. अब भला कौन समझाए कि क्राइम करने वाले जगह नहीं देखते हैं.
इस मामले में बात करने पर मिर्जापुर के सुरेश सिंह कहते हैं कि हमारे शहर के लोगों का बस यह डर है कि भविष्य में 15 या 20 साल बाद जब कोई इस शहर के बारे में जानना चाहेगा तो उसके सामने इस Web Series के हिंसक दृश्य आएंगे ना कि विंध्यासिनी देवी के बारे में. धीरे-धीरे मिर्जापुर की पूरी छवि बदल जाएगी. क्योंकि यह नेट का जमाना है. जिससे यहां का इतिहास, प्रकृति और तमाम अच्छाइयों के बारे में लोग अनजान न रह जाएं. सवाल ये भी है कि जब इस सीरीज का सीजन 1 रिलीज हुआ तभी लोगों ने एक साथ मिलकर इसका विरोध क्यों नहीं किया. कुछ ने विरोध जताया भी तो सिर्फ फेसबुक पर.
वहीं युवा पीढ़ी ने इसे अपने शान से भी जोड़ लिया, हम तो मिर्जापुर के रहने वाले हैं. अब युवाओं ने मुन्ना त्रिपाठी वाला स्टाइल अपना लिया जिसमें मुन्ना वाला चश्मा खूब बिका. अब यह समझाने की ज़िम्मेदारी घरवालों पर आ गई कि भईया हर कोई गुड्डू पंडित नहीं हो सकता. आदर्श मानना है तो मिर्जापुर के रहने वाले प्रो.पंजाब सिंह को मानो जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं.
हालांकि मिर्जापुर 2 आने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद अनुप्रिया पटेल ने ट्वीट कर सीरीज के निर्माता-निर्देशक के खिलाफ अपनी नाराज़गी जाहिर थी. मिर्ज़ापुर सीरीज में हिंसा और जातीय भेदभाव को बढ़ावा दिया गया है. मिर्ज़ापुर के सांसद होने के नाते हम इस सीरीज पर कार्रवाई करने की मांग करते हैं. वेब सीरीज के जरिए हमारे जनपद को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है.
पर्यटन, वनसंपदा और धार्मिक स्थल हैं मिर्जापुर की पहचान
मिर्जापुर को परिभाषित करें तो मिर्जा मतलब लक्ष्मी माना जाता है. इसे लक्ष्मी का नगर कहा जाता था. वहीं भारत का अंतर्राष्ट्रीय मानक समय भी अमरावती चौराहे के स्थान से लिया गया है.
विंध्याचल धाम
मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी के दर्शन करने के लिए हर साल करोड़ों श्रद्धालु आते हैं. पूरे भारत में विंध्याचल धाम काफी प्रसिद्ध है. यहां गंगा पहली बार विंध्यपर्वत को छूती हैं. वहीं मान्यता है कि भगवान राम ने यहां शिवलिंग की भी स्थापना की थी. यहां चुनार महल, सीताकुंड, लाल भैरव मंदिर, मोती तालाब, टांडा जलप्रपात, विल्डमफॉल, रामेश्वर, घंटाघर और देवरहा बाबा आश्रम पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.
वाटरफॉल और गुलाबी पत्थर
यूपी में सबसे अधिक वाटरफॉल मिर्जापुर में है. मिर्जापुर के पत्थर जो गुलाबी पत्थर के नाम से जाना जाता है जो अहरौरा से निकलते हैं. जिनका इस्तेमाल बड़े-बड़े इमारतें बनाने में किया जाता है. कहा जाता है कि राष्ट्रपति भवन में गुलाबी पत्थर लगाए गए हैं. साथ ही अयोध्या राम मंदिर निर्माण में भी गुलाबी पत्थर का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके अलावा यहां अहरौरा जलाशय में एक अशोक स्तम्भ भी मिला था.
व्यापार में नंबर एक
व्यापारिक दृष्टिकोण इसका इतिहास काफी मजबूत रहा है. यहां पर बड़ा बंदरगाह था. अंग्रेज यहां पर कालीन और लाख का व्यापार करते थे. कालीन की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. कभी मिर्जापुर में लाख बनाने का काम और पीतल का बिज़नेस यूपी में नंबर एक पर हुआ करता था. ओझला पुल के बारे में कहा जाता है कि एक व्यापारी ने अपनी एक दिन की कमाई से बनवा दिया था. सोचिए यह शहर कितना समृद्ध हुआ करता था.
सौहार्द कायम
यहां आपसी भाईचारा और सौहार्द कायम है. ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिससे लगे कि वह मिर्जापुर में दिखाया गया है. हालांकि फूलन देवी यहां से सांसद थीं लेकिन हालात ऐसे कभी नहीं थे. निर्माता-निर्देशक को अब यह समझना होगा कि, किसी शहर के नाम पर वेब सीरीज बनाना हो तो काल्पनिक लिख भर देने से काम नहीं चलने वाला. अब सीजन 2 के बाद Mirzapur Web Series 3 में क्या देखने को मिलेगा ये तो बाद में ही पता चलेगा.
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