दुःख-
मंज़िलों पे आके लुटते हैं दिलों के कारवां..
कश्तियां साहिल पे अक्सर, डूबती हैं प्यार की
चांद की सतह पर कदम रखते-रखते अचानक ही सम्पर्क टूट जाने की जो असीम पीड़ा है उसे शब्दों में बयान कर पाना संभव नहीं. पूरा भारत इस मिशन की सफलता के पल का साक्षी बनने की उम्मीद लिए रतजगे पर था. समस्त देशवासी इस गौरवशाली समय को अपनी मुट्ठी में बांध लेना चाहते थे. वे आह्लादित थे कि आने वाली पीढ़ियों को बता सकें कि "जब हमारा प्रज्ञान चांद पर चहलकदमी करने उतरा तो हमने उस अद्भुत क्षण को अपनी आंखों से देखा था." ISRO के अथक परिश्रम एवं प्रतिभा पर पूरे देश को गर्व है और हमेशा रहेगा. जो अभी नहीं हुआ वो कभी तो होगा ही, इस तथ्य से भी हम भली-भांति परिचित हैं. पूरे स्नेह और धन्यवाद के साथ हमारी शुभकामनाएं, हम वैज्ञानिकों के साथ हैं. उन्हें उनके अब तक के प्रयासों और सफलताओं के लिए हार्दिक बधाई. विज्ञान की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि वह हार नहीं मानता और सफल होने तक अपनी कोशिशें निरंतर जारी रखता है.
संबल
यूं तो किसी भी बड़े तनावपूर्ण मिशन के समय राजनेताओं, प्रधानमंत्री या अन्य क्षेत्रों के प्रमुख की उपस्थिति व्यवधान की तरह ही होती है क्योंकि फिर न केवल सबका ध्यान उस ओर भी थोड़ा बंट जाता है, बल्कि एक अतिरिक्त दबाव भी महसूस होने लगता है. वैज्ञानिक, असफलताओं के आगे कभी घुटने नहीं टेकते और न ही कभी टूटते ही हैं. एक अनदेखे-अनजाने लक्ष्य की ओर बढ़ना उन्हें यही अभ्यास कराता है. सतत प्रयास करना और निरंतर जूझना, यही विज्ञान की परिभाषा भी है. इसलिए डॉ. सिवान के आंसू आश्चर्यजनक नहीं...
दुःख-
मंज़िलों पे आके लुटते हैं दिलों के कारवां..
कश्तियां साहिल पे अक्सर, डूबती हैं प्यार की
चांद की सतह पर कदम रखते-रखते अचानक ही सम्पर्क टूट जाने की जो असीम पीड़ा है उसे शब्दों में बयान कर पाना संभव नहीं. पूरा भारत इस मिशन की सफलता के पल का साक्षी बनने की उम्मीद लिए रतजगे पर था. समस्त देशवासी इस गौरवशाली समय को अपनी मुट्ठी में बांध लेना चाहते थे. वे आह्लादित थे कि आने वाली पीढ़ियों को बता सकें कि "जब हमारा प्रज्ञान चांद पर चहलकदमी करने उतरा तो हमने उस अद्भुत क्षण को अपनी आंखों से देखा था." ISRO के अथक परिश्रम एवं प्रतिभा पर पूरे देश को गर्व है और हमेशा रहेगा. जो अभी नहीं हुआ वो कभी तो होगा ही, इस तथ्य से भी हम भली-भांति परिचित हैं. पूरे स्नेह और धन्यवाद के साथ हमारी शुभकामनाएं, हम वैज्ञानिकों के साथ हैं. उन्हें उनके अब तक के प्रयासों और सफलताओं के लिए हार्दिक बधाई. विज्ञान की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि वह हार नहीं मानता और सफल होने तक अपनी कोशिशें निरंतर जारी रखता है.
संबल
यूं तो किसी भी बड़े तनावपूर्ण मिशन के समय राजनेताओं, प्रधानमंत्री या अन्य क्षेत्रों के प्रमुख की उपस्थिति व्यवधान की तरह ही होती है क्योंकि फिर न केवल सबका ध्यान उस ओर भी थोड़ा बंट जाता है, बल्कि एक अतिरिक्त दबाव भी महसूस होने लगता है. वैज्ञानिक, असफलताओं के आगे कभी घुटने नहीं टेकते और न ही कभी टूटते ही हैं. एक अनदेखे-अनजाने लक्ष्य की ओर बढ़ना उन्हें यही अभ्यास कराता है. सतत प्रयास करना और निरंतर जूझना, यही विज्ञान की परिभाषा भी है. इसलिए डॉ. सिवान के आंसू आश्चर्यजनक नहीं बल्कि उनकी टीम द्वारा सच्चे दिल से किये गए अथाह परिश्रम और परिणाम से उपजी पीड़ा का प्रतीक हैं. वैज्ञानिकता को इतर रख यह एक मानव की सहज प्रतिक्रिया है जो अपनी वर्षों की मेहनत पर पानी फिरते देख टूट भी सकता है. इस बार जब निराशा भरे पलों में प्रधानमंत्री जी ने इसरो प्रमुख डॉ. सिवान को गले लग ढांढस बंधाया तो सबका मन भीतर तक भीग गया होगा. प्रायः मौन अभिव्यक्ति की ऐसी तस्वीर कम ही देखने को मिलती है. जब उदासी का घनघोर अंधेरा छाया हो तो एक ऐसी झप्पी संजीवनी बन महक उठती है.
आक्रोश
हर बार की तरह इस बार भी मीडिया ने पहले से ही जय-जयकार शुरू कर दी. यहां तक कि अन्य देशों का उपहास उड़ाने से भी नहीं चूके. यही विश्व-कप के समय भी होता आया है. मीडिया का काम जानकारी देना है, आवश्यक सूचनाओं को जनमानस तक उसी रूप में पहुंचाना है, जैसी वे हैं. लेकिन यहां तो हर बात को उछाल-उछालकर इतना बड़ा बना दिया जाता है कि हर तरफ यज्ञ-हवन, पाठपूजा का दौर प्रारम्भ हो जाता है. खुशियों की दीवाली मनाई जाने लगती है. आप घटना के पल-पल की खबर दीजिये पर परिणाम तक पहुंचने की जल्दबाज़ी मत कीजिये. यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि तमाम अंधविश्वासों के बाद भी भले ही नतीजा सकारात्मक न आए पर पाखंडियों का व्यवसाय फिर भी जारी रहता है. इन पाखण्डों से मुक्ति का भी एक अभियान चलाया जाना चाहिए.
उम्मीद
मुझे तो अभी भी लग रहा कि एक दिन मेले में खोए हुए किसी बच्चे के मिलने की उद्घोषणा की तरह हमारे ISRO के पास भी इस सन्देश के साथ सिग्नल आयेंगे कि "6 सितम्बर देर रात (7 की सुबह) चांद की सबसे ऊंची पहाड़ी के पीछे रात के घुप्प अंधेरे में कोई प्रज्ञान बाबू टहलते पाए गए. उन्होंने पीले-कत्थई रंग की शर्ट और स्लेटी कलर के जूते पहन रखे हैं. पूछे जाने पर अपने पिता का नाम विक्रम और मां पृथ्वी को बताते हैं. इनका अपने परिजनों से सम्पर्क टूट चुका है. जिस किसी का भी हो कृपया चांदमहल के पास बनी पुलिस चौकी से आकर ले जाएं. ये बच्चा कुछ भी खा-पी नहीं रहा है."
देखना, एक दिन ये सम्पर्क जरूर होगा! सलाम, इसरो....हमें आप पर बेहद गर्व है!
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