नोटबंदी को लेकर तरह-तरह के बयान आ रहे हैं, तरह-तरह की सच्चाइयां आ रही हैं. अब एसबीआई रिसर्च का एक निष्कर्ष सामने आया है. कहा गया है कि नोटों की कमी की वजह कैशलेस संस्कृति में कमी आना है. बात मानी जा सकती है लेकिन अभी तक के सरकारों के कदम से ये समझ ही नहीं आता कि वो कैशलेस सोसायटी चाहती है या कैश वाली.
याद कीजिए जब पीएम मोदी ने अचानक टीवी पर आकर एलान किया था कि आज से बड़े नोट बंद. पांच बातें बताई गईं लेकिन कुछ दिन बाद कहा गया असली कारण कैशलेस लेनदेन था. लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और पेटीएम जैसे पचासों माध्यमों से पैसा खर्च करने लगे.
नतीजा ये हुआ कि लोगों के खर्च कम होने लगे. समाज के कैश इस्तेमाल करने वाले वर्ग के पास कैश नहीं था और वो कैशलेस माध्यमों से परिचित नहीं था. इससे बाज़ार की हालत बिगड़ने लगी. सरकार को एहसास हुआ कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था को डुबो सकती है. इसके बाद तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. जल्दी से यू टर्न लिया गया. बाज़ार में कैश ज्यादा आए इसके लिए नये हथकंडे ढूंढे गये. सरकार ने बैंक से पैसे निकालने पर शुल्क लगा दिया. एटीएम से पैसे निकालने पर शुल्क लगा दिया. यहां तक कि पेटीएम जैसे तरीकों पर भी शुल्क लगाया जाने लगा.
जाहिर बात है लोग एटीएम से एक बार में ज्यादा धन निकालने लगे क्योंकि निकालने का शुल्क ही देना है तो बार-बार थोड़े थोड़े पैसे निकालकर ज्यादा क्यों दिया जाए. यही बैंकों से धन निकालने में हुआ. इतना ही नहीं सरकार के ड्रामे देखकर व्यापारियों ने भी बैंकों में कैश जमा कराने से बेहतर पैसा अपने पास रखना ठीक समझा. वो बैंक में तभी पैसा जमा कराते थे जब किसी को चेक से भुगतान करना हो. इस नीति से फायदा हुआ कि बाज़ार में कैश धीरे धीरे वापस आने लगा. व्यापार सामान्य हो गए और वर्ल्डबैंक ने भी...
नोटबंदी को लेकर तरह-तरह के बयान आ रहे हैं, तरह-तरह की सच्चाइयां आ रही हैं. अब एसबीआई रिसर्च का एक निष्कर्ष सामने आया है. कहा गया है कि नोटों की कमी की वजह कैशलेस संस्कृति में कमी आना है. बात मानी जा सकती है लेकिन अभी तक के सरकारों के कदम से ये समझ ही नहीं आता कि वो कैशलेस सोसायटी चाहती है या कैश वाली.
याद कीजिए जब पीएम मोदी ने अचानक टीवी पर आकर एलान किया था कि आज से बड़े नोट बंद. पांच बातें बताई गईं लेकिन कुछ दिन बाद कहा गया असली कारण कैशलेस लेनदेन था. लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और पेटीएम जैसे पचासों माध्यमों से पैसा खर्च करने लगे.
नतीजा ये हुआ कि लोगों के खर्च कम होने लगे. समाज के कैश इस्तेमाल करने वाले वर्ग के पास कैश नहीं था और वो कैशलेस माध्यमों से परिचित नहीं था. इससे बाज़ार की हालत बिगड़ने लगी. सरकार को एहसास हुआ कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था को डुबो सकती है. इसके बाद तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. जल्दी से यू टर्न लिया गया. बाज़ार में कैश ज्यादा आए इसके लिए नये हथकंडे ढूंढे गये. सरकार ने बैंक से पैसे निकालने पर शुल्क लगा दिया. एटीएम से पैसे निकालने पर शुल्क लगा दिया. यहां तक कि पेटीएम जैसे तरीकों पर भी शुल्क लगाया जाने लगा.
जाहिर बात है लोग एटीएम से एक बार में ज्यादा धन निकालने लगे क्योंकि निकालने का शुल्क ही देना है तो बार-बार थोड़े थोड़े पैसे निकालकर ज्यादा क्यों दिया जाए. यही बैंकों से धन निकालने में हुआ. इतना ही नहीं सरकार के ड्रामे देखकर व्यापारियों ने भी बैंकों में कैश जमा कराने से बेहतर पैसा अपने पास रखना ठीक समझा. वो बैंक में तभी पैसा जमा कराते थे जब किसी को चेक से भुगतान करना हो. इस नीति से फायदा हुआ कि बाज़ार में कैश धीरे धीरे वापस आने लगा. व्यापार सामान्य हो गए और वर्ल्डबैंक ने भी घोषणा कर दी कि नोटबंदी से हुआ असर अब खत्म होने वाले हालात हैं.
इस बीच रिलायंस और एयरटेल जैसी कंपनियों ने पेमेन्ट बैंकिंग के लायसेंस ले लिए थे. कैशलेस में पेमेन्ट बैंक का काम कैसे चलता. जाहिर बात है सरकार पर दबाव पड़ने लगा. इसके बाद सरकार ने एक और रास्ता निकाला, उसने फिर से कैशलेस की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. लेकिन यू टर्न लेने से बदनामी हो सकती थी. एटीएम से कैश निकालने की लिमिट नहीं लगा सकते थे इसलिए एक तरीका निकाला. तरीका था एटीएम में छोटे नोट डालो. इस यू टर्न के बाद सरकार कैश की किल्लत फिर शुरू हो गई.
कुल मिलाकर सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वो कैश लेस सहे या कैश फुल. इस दुविधा में सरकार झूल रही है इधर गिरे तो कुआं उधर गिरे तो खाई. किसी भी लोकतांत्रिक देश में अनुभव की कमी सरकार को ऐसे ही नाच नचाती है.
ये भी पढ़ें-
कैश की किल्लत: सरकार ने तो अपनी बड़ी गलती फिर दोहरा दी !
'कैशलेस' एटीएम कहीं एक और नोटबंदी का इशारा तो नहीं
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.