बड़े बूढ़ों को भले ही आज के युवा इरिटेटिंग कहें लेकिन इनके पास बैठने के अपने अलग फायदे हैं. व्यक्ति कहावतें, मुहावरे और लोकोक्तियों को खूब सुनता है. ऐसी ही एक कहावत है जर जोरू जायदाद. बड़े कह गए कि इस संसार में जितने भी झगड़े हुए हैं उसकी एकमात्र वजह या तो जर है या जोरू या जायदाद. यहां जर का मतलब धन है जोरू पत्नी / महिला हुई और जायदाद को भी अगर परिभाषित करना पड़े तो कहना गलत न होगा कि दुनिया से इंसानियत खत्म हो गयी है.
खैर यहां मुद्दा इंसानियत नहीं है और न ही उसका खत्म होना है. मुद्दा वो डेटा है जो एनसीआरबी ने पेश किया और जिसमें जिक्र जर जोरू जायदाद का है. जी हां भले ही ये बात सुनने के बाद आप हैरत में पड़ जाएं लेकिन ये हुआ है और हमारे देश भारत में ही हुआ है.
सवाल होगा कैसे? तो इसके लिए हमें एनसीआरबी के डेटा का न केवल रुख करना होगा बल्कि उसे खंगालना भी होगा. तो आइए जानें कि साल 2020 में जर, जोरू और जमीन कितने लोगों की जान ली?
'जर' को लेकर साल 2020 में क्या हुआ कितनी हत्याओं का साक्षी बना देश
जैसा कि ज्ञात है रिश्ते चाहे कितने भी बलिष्ठ क्यों न हों जर उनमें दरार डाल ही देता है. कई मौके ऐसे आए हैं जब हमने पैसों के लिए न केवल गैरों को बल्कि अपनों को भी एक दूसरे के खून का प्यासा होते देखा है. इस लिहाज से साल 2020 भी कोई विरला नहीं था.
NCRB ने जो डेटा पेश लिया है. यदि उसपर नजर डाली जाए और उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि साल 2020 में 'जर' वाले कॉन्सेप्ट के मद्देनजर कुल 3037 हत्याएं हुई हैं.
भारत भर में हुई इन 3037 हत्याओं को यदि विभाजित किया जाए तो मिलता है कि Gain के तहत 1876 लोग मारे गए हैं. डकैती चोरी में 103...
बड़े बूढ़ों को भले ही आज के युवा इरिटेटिंग कहें लेकिन इनके पास बैठने के अपने अलग फायदे हैं. व्यक्ति कहावतें, मुहावरे और लोकोक्तियों को खूब सुनता है. ऐसी ही एक कहावत है जर जोरू जायदाद. बड़े कह गए कि इस संसार में जितने भी झगड़े हुए हैं उसकी एकमात्र वजह या तो जर है या जोरू या जायदाद. यहां जर का मतलब धन है जोरू पत्नी / महिला हुई और जायदाद को भी अगर परिभाषित करना पड़े तो कहना गलत न होगा कि दुनिया से इंसानियत खत्म हो गयी है.
खैर यहां मुद्दा इंसानियत नहीं है और न ही उसका खत्म होना है. मुद्दा वो डेटा है जो एनसीआरबी ने पेश किया और जिसमें जिक्र जर जोरू जायदाद का है. जी हां भले ही ये बात सुनने के बाद आप हैरत में पड़ जाएं लेकिन ये हुआ है और हमारे देश भारत में ही हुआ है.
सवाल होगा कैसे? तो इसके लिए हमें एनसीआरबी के डेटा का न केवल रुख करना होगा बल्कि उसे खंगालना भी होगा. तो आइए जानें कि साल 2020 में जर, जोरू और जमीन कितने लोगों की जान ली?
'जर' को लेकर साल 2020 में क्या हुआ कितनी हत्याओं का साक्षी बना देश
जैसा कि ज्ञात है रिश्ते चाहे कितने भी बलिष्ठ क्यों न हों जर उनमें दरार डाल ही देता है. कई मौके ऐसे आए हैं जब हमने पैसों के लिए न केवल गैरों को बल्कि अपनों को भी एक दूसरे के खून का प्यासा होते देखा है. इस लिहाज से साल 2020 भी कोई विरला नहीं था.
NCRB ने जो डेटा पेश लिया है. यदि उसपर नजर डाली जाए और उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि साल 2020 में 'जर' वाले कॉन्सेप्ट के मद्देनजर कुल 3037 हत्याएं हुई हैं.
भारत भर में हुई इन 3037 हत्याओं को यदि विभाजित किया जाए तो मिलता है कि Gain के तहत 1876 लोग मारे गए हैं. डकैती चोरी में 103 लोग मरे हैं. अलग अलग गैंग्स के चलते 66 लोगों ने अपने प्राणों से हाथ धोया है वहीं पैसों के डिस्प्यूट के चलते 992 लोग मरे हैं.
'जोरू' ने भी साल 2020 में कम आफत नहीं जोती
बड़े बुजुर्गों के हवाले से हम पहले ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि जब जब दो लोगों के बीच झगड़ा हुआ है तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसमें औरत का भी हाथ रहा है. ऐसे में जब हम एनसीआरबी के ताजे डेटा को देखें तो मिलता है कि बरसों पहले हमारे बड़े बुजुर्गों ने जो बातें कहीं थीं वो यूं ही नहीं थीं. उन बातों के पीछे मोटे और मजबूत तर्क थे.
साल 2020 में 3031 हत्याओं का सीधा कारण जोरू या ये कहें कि औरत थी. कैसे तो बताते चलें कि साल 2020 में 1443 हत्याएं लव अफेयर्स के चक्कर में हुईं वहीं अवैध संबंधों के चलते जिन हत्याओं का साक्षी देश बना है उनकी संख्या 1588 हैं.
ध्यान रहे इन हत्याओं की जो एकमात्र वजह थी वो औरत थी उसी के चलते लोगों को दुनिया को अलविदा कहना पड़ा.
जर और जोरू का जिक्र हो गया बिन जायदाद के तमाम बातें अधूरी हैं!
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप ये कोई आज से नहीं है कि जायदाद ने दो इंसानों को एक दूसरे का जानी दुश्मन बनाया. बात जब जब कहीं पर भी हुई हत्याओं के मद्देनजर होगी तब तब जायदाद का जिक्र होगा. तो इसी क्रम में साल 2020 में भी तमाम हत्याएं ऐसी हुई हैं जिनकी एकमात्र वजह जायदाद थी.
बताते चलें कि साल 2020 में जायदाद ने कुल 6687 लोगों के प्राणों की आहूति ली है. जायदाद के कारणवश हुई मौतों को यदि वर्गीकृत किया जाए तो परिणाम कई मायनों में चौंकाने वाले हैं.
बताते चलें कि उपरोक्त बताए गए 6687 लोगों में 3224 लोग ऐसे थे जिनकी जान प्रॉपर्टी या जमीन के झगड़े में गई. वहीं 3463 मृतक ऐसे थे जिन्हें सिर्फ इसलिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा क्योंकि जायदाद को लेकर डिस्प्यूट या ये कहें कि झगड़ा घर/ परिवार में था.
बहरहाल अब जबकि हम NCRB के 2020 के डेटा के मद्देनजर जर, जोरू और जायदाद वाले कॉन्सेप्ट से रू-ब-रू हो गए हैं, ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि बुजुर्ग जो कहावतें हमें हमारे घरों में सुनाते थे वो सब यूं ही टाइम पास के लिए नहीं थीं. उन बातों में आधार था और इस बात को साल 2020 में आए NCRB के डेटा और उस डेटा के अंतर्गत हुई हत्याओं ने हमें बता दिया है.
जाते जाते एक बात समझ लीजिए सिर्फ एक साल यानी 2020 में यदि कुल 12755 मौतें सिर्फ जर जोरू और जायदाद के लिए हुईं हैं तो ये बात मजाक की नहीं है और न ही हमें इसे हल्के में लेना है. याद रखिये ये तमाम मौतें एक समाज के रूप में न केवल हमें कटघरे में खड़ा करती हैं. बल्कि हमसे जवाब भी मांग रही हैं, जो हर सूरत में हमें देना ही होगा.
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