पिछले डेढ़ साल में बीएसएफ के 774 जवानों की मृत्यु हुई है. आपको जानकर आशचर्य होगा कि इनमें से सिर्फ 25 को ही शहीद का दर्जा मिल पाया है. आखिर ऐसा क्यों? इसका जवाब सुनकर शायद आप सोच में पड़ जाएंगे.
आंकड़े कहते हैं कि 2015 जनवरी से लेकर 2016 सितंबर तक सिर्फ 25 जवानों की जान मुठभेड़ में गई है. बाकी या तो किसी बीमारी या फिर किसी दुर्घटना के कारण वीरगती को प्राप्त हुए हैं.
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हार्ट अटैक और बीमारी से हुई ज्यादातर मौतें-
आंकड़ों की मानें तो 774 में से 316 जवानों की मौत अलग-अलग तरह की बीमारियों की वजह से हुई है. 117 जवानों को हार्ट अटैक आया है. 18 को एड्स हुआ था और 38 को कैंसर. 5 जवानों की जान मलेरिया के कारण गई है. 192 जवान किसी दुर्घटना में मारे गए हैं.
सांकेतिक फोटो |
बढ़ रहा है ये ट्रेंड-
पिछले साल पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल ने कहा था कि 2.5 लाख की फोर्स में एक अजीब और खतरनाक ट्रेंड देखने को मिल रहा है. हम अपने जवान बाइक एक्सिडेंट और अन्य कारणों से खो रहे हैं जो चिंता का विषय है.
क्या लाइफस्टाइल के कारण हो रही मौतें?
बीएसएफ के जवानों की लाइफस्टाइल काफी कठिन होती है. मुश्किल से मुश्किल जगहों पर रहना. कई दिनों तक कोई आराम ना मिलना, छुट्टी ना मिलना, बीमारी फैलना आदि बीएसएफ के जवानों में आम है. गाहे-बगाहे ये खबरें आती...
पिछले डेढ़ साल में बीएसएफ के 774 जवानों की मृत्यु हुई है. आपको जानकर आशचर्य होगा कि इनमें से सिर्फ 25 को ही शहीद का दर्जा मिल पाया है. आखिर ऐसा क्यों? इसका जवाब सुनकर शायद आप सोच में पड़ जाएंगे.
आंकड़े कहते हैं कि 2015 जनवरी से लेकर 2016 सितंबर तक सिर्फ 25 जवानों की जान मुठभेड़ में गई है. बाकी या तो किसी बीमारी या फिर किसी दुर्घटना के कारण वीरगती को प्राप्त हुए हैं.
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हार्ट अटैक और बीमारी से हुई ज्यादातर मौतें-
आंकड़ों की मानें तो 774 में से 316 जवानों की मौत अलग-अलग तरह की बीमारियों की वजह से हुई है. 117 जवानों को हार्ट अटैक आया है. 18 को एड्स हुआ था और 38 को कैंसर. 5 जवानों की जान मलेरिया के कारण गई है. 192 जवान किसी दुर्घटना में मारे गए हैं.
सांकेतिक फोटो |
बढ़ रहा है ये ट्रेंड-
पिछले साल पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल ने कहा था कि 2.5 लाख की फोर्स में एक अजीब और खतरनाक ट्रेंड देखने को मिल रहा है. हम अपने जवान बाइक एक्सिडेंट और अन्य कारणों से खो रहे हैं जो चिंता का विषय है.
क्या लाइफस्टाइल के कारण हो रही मौतें?
बीएसएफ के जवानों की लाइफस्टाइल काफी कठिन होती है. मुश्किल से मुश्किल जगहों पर रहना. कई दिनों तक कोई आराम ना मिलना, छुट्टी ना मिलना, बीमारी फैलना आदि बीएसएफ के जवानों में आम है. गाहे-बगाहे ये खबरें आती रहती हैं कि जवानों में स्ट्रेस बढ़ रहा है.
क्या नहीं मिलता सही इलाज-
घटना ताजा है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी सीमा से फायरिंग के दौरान बीएसएफ जवान शहीद गुरनाम सिंह को सिर में गोली लगी थी. एडिश्नल डीजी अरुण कुमार के अनुसार शहीद गुरनाम सिंह को सरकारी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (GMC) ले जाया गया जहां उनकी मृत्यु हो गई. इसपर शहीद के भाई मनजीत सिंह का कहना है कि लापरवाही बरती गई. सिर पर गोली लगने के बाद भी उन्हें न्यूरोलॉजिकल डिपार्टमेंट में ट्रीटमेंट के लिए नहीं ले गए. GMC के चीफ मेडिकल ऑफिसर राजेंदर थापा का कहना है कि शहीद के परिवार वाले चाहते थे कि उन्हें Aiims इलाज के लिए शिफ्ट किया जाए.
तो क्या वाकई इलाज में लापवाही हुई थी?
ड्यूटी के लिए बुलाने पर हुआ ऐसा...
घटना दो साल पुरानी 2014 की है. मुंबई में गणेश उत्सव के दौरान बीएसएफ के जवानों को ड्यूटी करने के लिए बुलाया गया था. दिनभर ड्यूटी करने के बाद जब उन्हें आराम करना था तब ऐसी जगह दिखाई गई जहां बहुत से मच्छर थे, छत से पानी रिस रहा था. जगह रहने लायक नहीं थी. इसके बाद भी जवानों ने ठीक ड्यूटी की. वैसे तो बीएसएफ जवानों को इससे बदत्तर जगहों पर रहने की आदत है, लेकिन क्या महानगर में भी उनके लिए रहने की सही व्यवस्था नहीं की जा सकती?
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बीएसएफ के जवान ऐसी जगहों पर देश की रक्षा करते हैं जहां पानी का साफ पानी, बिजली, खाने जैसी समस्याओं से उन्हें रोज गुजरना पड़ता है. ऐसे में अगर किसी शहर में ड्यूटी के लिए फोर्स को बुलाया जाए तो भी उनके लिए कोई खास इंतजाम नहीं.
ये सब आंकड़े कुछ और नहीं बताते. क्या वाकई बीएसएफ जवानों की सुरक्षा और सेहत को लेकर सरकार लापरवाही बरत रही है? सवाल बड़ा है. बीएसएफ के जवान पाकिस्तान और बंगलादेश बॉर्डर की रक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं. कालेधन को लेकर इतनी हलचल है और एक तरफ देश में आतंकी जेल तोड़ रहे हैं और दूसरी तरफ बीएसएफ फोर्स के जवान बीमारी का शिकार हो रहे हैं. आखिर कुछ तो बदलने की जरूरत है!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.