शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर' सिंह जब से रिलीज़ हुई है, तभी से इसपर बहस हो रही है. कहा जा रहा है कि ये फिल्म महिलाओं के लिए नहीं बनाई गई, महिला विरोधी है. फिल्म के लिए 'toxic masculinity' शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे विषाक्त पुरुषत्व कह सकते हैं. वहीं फिल्म देखकर आए कुछ लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि फिल्म में ऐसा क्या है जिसपर इतनी बात की जा रही है. उनका मानना है कि फिल्म का हीरो गुस्से वाला है और पूरी फिल्म में उसने हिरोइन पर सिर्फ एक बार हाथ उठाया है. इसमें ऐसा भी कुछ नहीं है.
पुरुषों के पास शाहिद कपूर के किरदार को सही ठहराने के कारण हो सकते हैं लेकिन महिलाएं जब ये कहती हैं कि उन्हें शाहिद के किरदार से कोई परेशानी नहीं है, तो बहस अपने आप उठती है. आखिर क्यों महलाओं को ये लगता है कि एक पुरुष का गुस्सैल और आक्रामक होना कोई बड़ी बात नहीं है. और इस वजह से अगर वो अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी पर हाथ भी उठा दे तो भी its ok.
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DI) ने पाया है कि पति से पिटने वाली आधी से ज्यादा महिलाएं उनपर की गई हिंसा को सही ठहराती हैं. यानी वो इसे कोई बड़ी बात नहीं मानती. उनका कहना वही कि- 'आदमी तो ऐसे ही होते हैं !' जबकि ऐसे पुरुष बहुत कम थे जो पत्नियों द्वारी की गई पिटाई को सही ठहराते हों. जाहिर है, पत्नियों को पीटने का हक पति के पास होता है लेकिन एक पत्नी पति को कैसे पीट सकती है!
2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) के आंकड़ों के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की कुछ 51 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि पति का 7 परिस्थितियों में से कम से कम 1 में अपने साथी की पिटाई करना उचित है. जो पुरुष अपनी पत्नियों के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराते हैं वो...
शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर' सिंह जब से रिलीज़ हुई है, तभी से इसपर बहस हो रही है. कहा जा रहा है कि ये फिल्म महिलाओं के लिए नहीं बनाई गई, महिला विरोधी है. फिल्म के लिए 'toxic masculinity' शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे विषाक्त पुरुषत्व कह सकते हैं. वहीं फिल्म देखकर आए कुछ लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि फिल्म में ऐसा क्या है जिसपर इतनी बात की जा रही है. उनका मानना है कि फिल्म का हीरो गुस्से वाला है और पूरी फिल्म में उसने हिरोइन पर सिर्फ एक बार हाथ उठाया है. इसमें ऐसा भी कुछ नहीं है.
पुरुषों के पास शाहिद कपूर के किरदार को सही ठहराने के कारण हो सकते हैं लेकिन महिलाएं जब ये कहती हैं कि उन्हें शाहिद के किरदार से कोई परेशानी नहीं है, तो बहस अपने आप उठती है. आखिर क्यों महलाओं को ये लगता है कि एक पुरुष का गुस्सैल और आक्रामक होना कोई बड़ी बात नहीं है. और इस वजह से अगर वो अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी पर हाथ भी उठा दे तो भी its ok.
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DI) ने पाया है कि पति से पिटने वाली आधी से ज्यादा महिलाएं उनपर की गई हिंसा को सही ठहराती हैं. यानी वो इसे कोई बड़ी बात नहीं मानती. उनका कहना वही कि- 'आदमी तो ऐसे ही होते हैं !' जबकि ऐसे पुरुष बहुत कम थे जो पत्नियों द्वारी की गई पिटाई को सही ठहराते हों. जाहिर है, पत्नियों को पीटने का हक पति के पास होता है लेकिन एक पत्नी पति को कैसे पीट सकती है!
2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) के आंकड़ों के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की कुछ 51 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि पति का 7 परिस्थितियों में से कम से कम 1 में अपने साथी की पिटाई करना उचित है. जो पुरुष अपनी पत्नियों के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराते हैं वो 42 फीसदी हैं.
10 सालों में भी महिलाओं की सोच में बहुत बदलाव नहीं आया. यानी 2005-06 में ऐसा सोचने वाली महिलाएं 54 प्रतिशत थीं जो अब 51 प्रतिशत हो गई हैं. लेकिन हां, पुरुषों ने अपनी सोच जरूर बदली. पत्नियों के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराने वाले जो पुरुष पहले 54 प्रतिशत थे उनमें 9 प्रतिशत की गिरावट आई.
यानी महिलाएं खुद अपने हिंसक पतियों को सही मानती हैं, इसलिए वो भी ऐसे ही हैं. लेकिन आश्चर्य है कि ऐसा समझने वाले पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं से कम है.
परिस्थितियां जिनमें पुरुषों का हिंसक होना जायज लगता है
अब ये जान लेना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हैं जब महिलाएं पुरुषों के हिंसक होने को सही ठहराती हैं. सर्वे में पाया गया कि ऐसे 7 परिस्थितियां हैं.
- ससुराल वालों का अनादर करना. (37% महिलाएं और 29% पुरुष इसे सही मानते हैं)
- जब पति को पत्नी पर बेवफाई करने का शक होता है.
- ठीक से खाना न बनाना.
- बहस करना.
- किसी को बिना बताए बाहर जाना.
- बच्चों या घर की देखभाल न करना (33% महिलाएं और 20% पुरुष इसे सही मानते हैं)
आखिर पति पत्नियों पर हिंसा क्यों करते हैं?
ये मान भी लिया जाए कि गुस्सा करना कुछ पुरुषों का स्वाभाव हो सकता है लेकिन तब भी पत्नियों पर हाथ उठाना कहां तक जायज है. लेकिन कुछ फैक्टर ऐसे भी हैं जो इस स्वाभाव यानी गुस्से और बढ़ा देते हैं. जैसे-
पति जितना पिएगा, पत्नी उतना ही पिटेगी
आंकड़े बताते हैं कि शराब की खपत और घरेलू हिंसा में काफी हद तक समानता दिखाई देती है. NHFS-4 के अनुसार, 22 प्रतिशत पत्नियां जिनके पति शराब नहीं पीते हैं, उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ा. लेकिन ये प्रतिशत बढ़ जाता है अगर पति शराब पीता हो. सर्वे से पता चलता है कि 77% पत्नियां जिनके पति शराबी हैं वो खूब पिटती हैं.
कम पढ़ी लिखी और कम पैसे वाली महिलाएं ज्यादा पिटती हैं
NFHS-4 के अनुसार अच्छी सामाजिक स्थिति वाली महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार कम होती हैं. ज्यादा पढ़ी लिखी और धनी महिलाओं की तुलना में कम शिक्षित और गरीब महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार ज्यादा होती हैं.
पतियों से डर और घरेलू हिंसा के बीच भी गहरा संबंध देखने को मिला. सर्वेक्षण से पता चला कि 58 प्रतिशत महिलाएं जिन्होंने कहा कि वे अपने पति से डरती हैं उन्होंने घरेलू हिंसा का अनुभव भी किया. जबकि 32 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें अपने पति से डर नहीं लगता था.
पत्नी की नौकरी
सर्वे से पता चला है कि पत्नी की रोजगार की स्थिति अक्सर पुरुषों को परेशान करती है. और इसलिए बेरोजगार महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाओं को हिंसा का सामना करने की अधिक संभावना होती है. 26 प्रतिशत बेरोजगार महिलाओं की तुलना में 39 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं पति द्वारा हिंसा की शिकार हुई थीं.
तो इन आंकड़ों को देखकर ये तो कहा ही जा सकता है कि ये 7 परिस्थितियां वही हैं जब औरत को साथी कम और सिर्फ घर लाई हुई वो महिला समझा जाता है जिसपर पति अपना पूरा अधिकार समझता है. और अधिकार है तो पत्नी को पीटने में भी उन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती. लेकिन आश्चर्य तब होता है जब महिलाएं खुद अपने आपको पति के समकक्ष नहीं समझतीं और उसकी हिंसा से लेकर हर अन्याय को जायज ठहराती हैं.
कबीर सिंह ने समाज के सामने समाज की ही सच्चाई रख दी है, जिसे प्रगतिशील महिलाएं पचा नहीं पा रहीं. लेकिन जिन्हें इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती वो असल में उन 51 प्रतिशत महिलाओं में से ही हैं. और इससे एक बात और सिद्ध होती है कि भारत के ज्यादातर घरों में एक कबीर सिंह तो बसता ही है.
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