कॉलोनी में किसी को पता भी नहीं है कि बिट्टू की मम्मी का नाम क्या है? वह इतना काम करती है फिर भी पूरे मोहल्ले में बिट्टू के नाम से ही पहचानी जाती हैं. मां (Mother) बनने के पहले वो सरला की बहू थी. सोचिए एक मां अपने परिवार के लिए सिलबट्टे की तरह घिस कर अपनी पहचान तक खो देती है. अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए वह खुद को दिन रात कूटती रहती है.
चेहरे पर थकान लिए उसकी सुबह होती है और कमर में दर्द लिए उसकी रात हो जाती है. उसकी दुनिया पूरी तरह बच्चों में सिमट जाती है. बच्चा खुश तो मां खुश, बच्चा दुखी तो मां की आंखों से अनायास ही आंसू बहने लगते हैं. वह खुद एक रोटी कम खाती है मगर बच्चे के टिफिन बॉक्स में एक रोटी अधिक रखती है ताकि वह अच्छे से खा सके. मां का दिल ऐसा ही होता है, मगर वह कुछ गलतियां करके खुद को हमेशा तकलीफ में रखती है.
अरे वह मां है, कोई मशीन नहीं जो दिन रात रोबोट की तरह चलती रहे. मशीन भी एक बार को खराब हो जाए मगर वह मां है जो बच्चों के लिए कभी थकती नहीं है...वह पूरे परिवार को संभाले रखने के चक्कर में खुद को भूल ही जाती है. घर के हर सदस्य को लगता है कि उनका काम सबसे ज्यादा कठिन है. बच्चों को लगता है कि उनकी पढ़ाई सबसे टफ है तो पति को लगता है कि उसकी 9 से 5 की जॉब सबसे हार्ड वर्किंग काम है. किसी का ध्यान मां पर जाता ही नहीं. जबकि सबसे अधिक मेहनत वही करती है.
सबको लगता है मां बनना कौन सा पहाड़ तोड़ने वाला काम है, वह तो बस दो टाइम 4 लोगों का खाना बनाकर पूरा दिन आराम करती है. जबकि हकीकत यह है कि एक दिन मां बीमार पड़ जाए तो घर पर पहाड़ टूट पड़ता है. वह बीमारी हालात में भी बच्चों के लिए गर्म रोटियां सेंकती है.
मां दूसरों के लिए तो...
कॉलोनी में किसी को पता भी नहीं है कि बिट्टू की मम्मी का नाम क्या है? वह इतना काम करती है फिर भी पूरे मोहल्ले में बिट्टू के नाम से ही पहचानी जाती हैं. मां (Mother) बनने के पहले वो सरला की बहू थी. सोचिए एक मां अपने परिवार के लिए सिलबट्टे की तरह घिस कर अपनी पहचान तक खो देती है. अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए वह खुद को दिन रात कूटती रहती है.
चेहरे पर थकान लिए उसकी सुबह होती है और कमर में दर्द लिए उसकी रात हो जाती है. उसकी दुनिया पूरी तरह बच्चों में सिमट जाती है. बच्चा खुश तो मां खुश, बच्चा दुखी तो मां की आंखों से अनायास ही आंसू बहने लगते हैं. वह खुद एक रोटी कम खाती है मगर बच्चे के टिफिन बॉक्स में एक रोटी अधिक रखती है ताकि वह अच्छे से खा सके. मां का दिल ऐसा ही होता है, मगर वह कुछ गलतियां करके खुद को हमेशा तकलीफ में रखती है.
अरे वह मां है, कोई मशीन नहीं जो दिन रात रोबोट की तरह चलती रहे. मशीन भी एक बार को खराब हो जाए मगर वह मां है जो बच्चों के लिए कभी थकती नहीं है...वह पूरे परिवार को संभाले रखने के चक्कर में खुद को भूल ही जाती है. घर के हर सदस्य को लगता है कि उनका काम सबसे ज्यादा कठिन है. बच्चों को लगता है कि उनकी पढ़ाई सबसे टफ है तो पति को लगता है कि उसकी 9 से 5 की जॉब सबसे हार्ड वर्किंग काम है. किसी का ध्यान मां पर जाता ही नहीं. जबकि सबसे अधिक मेहनत वही करती है.
सबको लगता है मां बनना कौन सा पहाड़ तोड़ने वाला काम है, वह तो बस दो टाइम 4 लोगों का खाना बनाकर पूरा दिन आराम करती है. जबकि हकीकत यह है कि एक दिन मां बीमार पड़ जाए तो घर पर पहाड़ टूट पड़ता है. वह बीमारी हालात में भी बच्चों के लिए गर्म रोटियां सेंकती है.
मां दूसरों के लिए तो सब कर देती है लेकिन अपने लिए उसके पास समय ही नहीं रहता है. ऐसे में मां को चाहिए कि अब वह कुछ गलतियां करनी छोड़ दे ताकि वह खुश रह सके.
मां होने का मतलब खुद को भूलना नहीं है. मां होने का मतलब हर वक्त आंसू बहाना नहीं है. मां होने का मतलब अपनी खुशियों को छोड़ना नहीं है. मां होने का मतलब त्याग की देवी होना नहीं है. चलिए बताते हैं कि मां की वह कौन सी गलतियां है जिसके कारण वे दुखी रहती हैं...
1- देरी से भोजना करना
मां सुबह समय पर नाश्ता बना देगी, मगर खाएगी सबसे लेट. वह पति और बच्चों के खा लेने का इंतजार करती हैं इसके बाद ही खुद खाती है. वह सभी लोगों को गर्म-गर्म खाना परोस देगी लेकिन खुद दिन में 12 बजे के बाद खाएगी वो भी बचा-खुचा ठंडा खाना. अपने खाने के लिए तो वह कुछ बना ही नहीं सकती है. पता नहीं सुबह समय से नाश्ता करने में उसे क्या परेशानी है? वह घर के काम करने के बाद सीधे लंच करती है. सिर्फ सुबह खाली पेट चाय पी लिया और हो गया. पति के ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद साफ सफाई, नहाने धोने और पूजा-पाठ में ही उसका सारा समय निकल जाता है. ऐसे में मां को अपनी यह आदत तो छोड़ी होगी...
2- बासी खाने की आदत
क्या आपने कभी नोटिस किया है कि अगर खाना बच गया है तो मां अपने बच्चों को ताजा खाना खिलाती हैं और खुद बचा हुआ बासी खाना खाती हैं. उसे लगता है कि मेरे बच्चे अच्छे से खाएं, उनके शरीर को लगेगा तो काम आएगा. मां, प्लीज इस आदत को छोड़ दो. इससे आपकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. आप धीरे-धीरे बीमार पड़ जाती हो और आपको पता भी नहीं चलता. हम खाना फेंकने को नहीं कह रहे. खाना सबके हिसाब से कम बनाएं, अगर फिर भी अगर बच जाता है तो सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा खा लें. आपको समझना होगा कि इस उम्र में भरपूर विटामिन की आपको कितनी जरूरत होती है.
3- अकेले पूरे घर की जिम्मेदारी लेना
मां, अगर आप घर के कामों में किसी की मदद ले लेंगी तो क्या आपकी इज्जत कम हो जाएगी? तो क्या जरूरत है खुद को सुपर वुमन बनाने की. किचन से लेकर मार्केटिंग, बच्चों की परवरिश से लेकर सास-ससुर का ख्याल रखने तक. मां आपको घर का सारा काम खुद ही क्यों करना है? थोड़ा भार परिवार के लोगों को कंधों पर भी डाल देंगी तो कोई हानि नहीं हो जाएगी. ऊपर से कोई फंक्शन पड़ जाए तब तो पूछो ही मत. घर की जिम्मेदारी जितनी आपकी है उतनी ही परिवार के दूसरे लोगों की है. इसलिए उनसे मदद करने के लिए बोलें. हर इंसान की क्षमता होती है, ज्यादा बोझ कोई नहीं उठा नहीं पाता. जरूरत से ज्यादा बोझ उठाने से दिमाग और शरीर दोनों जवाब दे देता है.
4- घर को ही अपनी दुनिया बना लेना
घर की भले सारी जिम्मेदारियां मांएं संभालती हैं, लेकिन मोबाइल रिचार्ज के लिए आज भी वह पति या बच्चे पर डिपेंड होती है. क्योंकि वह घर की दुनियां में ही खोई रहती है. लैपटॉप या स्मार्टफोन चलाना आज भी कई महिलाओं को नहीं आता. कोई फॉर्म भरना हो तो भी उन्हें किसी की मदद लेनी पड़ती है. कुछ काम ऐसे होते हैं जो आपको आने चाहिए जैसे ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, बैंक से जुड़े काम आने ही चाहिए. इसके अलावा बाहर जाकर कुछ नया सीखने की कोशिश करनी चाहिए.
5- अपनी हॉबी के लिए समय ना निकालना
कई बार मांएं अपने शौक से हमें चौंका देती हैं...असल में वे जिम्मेदारियों में इतना घुस जाती हैं कि अपनी हॉबी पूरी करने के लिए उनके पास समय ही नहीं रहता इस तरह वे कब अपना शौक छोड़ देती हैं उन्हें पता भी नहीं चलता है. मगर मां आपको अपने लिए समय निकालना होगा. कोई मां अच्छा गाती है, कोई भजन लिखती है, कोई ढोलक बजाती है, किसी को पेड़-पौधे लगाने का शौक है, किसी को कभी घूमना पसंद था, किसी को डांस आता है, कोई नए-नए डिजाइन के कपड़े सिल सकती है तो किसी को नए चीजें एक्सप्लोर करने का शौक है...मगर समय के सितम ने उनसे उनका नाम और रुचि दोनों छीन लिए.
6- देर तक जागना और सुबह जल्दी जग जाना
मां पता नहीं क्यों, आराम नहीं करना चाहती है. ऐसा लगता है वह सोते वक्त भी आधी नींद ही लेती है. वह सबको खाना खिलाने के बाद घर के बचे हुए सारे काम करने की आदत होती है. लगभग सभी घरों में सबसे पहले महिलाएं ही जगती हैं और सबसे आखिरी में सोती हैं. महिलाएं खाने में लापरवाही तो करती ही हैं साथ ही नींद में भी कमी करती हैं. रात में 12 बजे के बाद सोना और सुबह जल्दी जागना, कुछ मिलाकर 4 से 5 घंटे ही सो पाती हैं. इसतरह उनकी नींद कभी पूरी नहीं होती है. इसका सीधा असर मां की सेहत पर पड़ता है.
7- अपनी सेहत का ध्यान न रखना
सेहत खराब होने पर मां आसानी से डॉक्टर के पास जल्दी नहीं जाती बल्कि घरेलू उपचार करने लगती हैं. तबियत खराब होने पर वे जल्दी किसी को बताती नहीं है. ज्याद से ज्यादा घर में रखी एक गोली खा लेंगी और लग जाएंगी काम करने. अपना रूटीन चेकअप वे इसलिए नहीं करातीं, क्योंकि उनको लगता है कि डॉक्टर कोई ना कोई बीमारी बता देगा. ऊपर से वे अपने बच्चों का पैसा खर्च नहीं करवाना चाहतीं. इतना ही नहीं वे तो बीमारी में भी काम करती रहती हैं.
8- बच्चे की गलती के लिए खुद को दोषी समझना
बच्चा कहीं गिर जाए और उसे चोट लग जाए तो भी वे इसे अपनी गलती समझती हैं कि यह मेरे कारण हुआ. बच्चा कहीं से गाली देना सीख जाए तो भी वे खुद को कोसती हैं. बच्चा बीमार पड़ जाए या परीक्षा में उसके कम नंबर आए तो भी वे इस बात के लिए खुद को गुनहगार मानती हैं. वे अपराध बोध और गिल्ट में जीती रहती हैं, गलती से अगर वे बच्चे को एक थप्पड़ मार दें तो खुद ही रोने लगती हैं.
9- अपने ऊपर पैसे खर्च न करना
मां का सारा फोकस बच्चों पर रहता है इसलिए वे अपने ऊपर पैसे खर्च नहीं करती हैं. वे अपने लिए जरूरत की भी चीजें नहीं खरीदती हैं. वे बाजार जाएंगी घरवालों के लिए सब सामान खरीदकर लाएंगी मगर अपने लिए कुछ नहीं लेंगी. वे घर खर्च में से पैसे काटकर जोड़ती रहेंगी मगर अपने लिए कुछ करने से पहले सौ बार सोचेंगी.
10- तीज त्योहार में काम करते रहना
चाहें संडे हो, मंडे या फिर कोई हॉलीडे...हमने मां को रसोई में ही देखा है. होली पर सब लोग जब रंग-गुलाल लगाते हैं, जब ईद पर लोग गले मिलते हैं तो मां अक्सर रसोई में पकवान बनाती हुई पाई जाती है. वह त्योहार के दिन भी हर वक्त काम करते रहती है. वह त्योहार को सेलिब्रेट नहीं कर पाती है.
दुनिया की हर मां अगर ये कुछ आदतें बदल लें तो इनका भला हो जाए. इसके लिए इन्हें खुद ही आगे आना होगा, वरना जो चल रहा है वो तो चलता ही जाएगा, वैसे भी किसी को क्या फर्क पड़ता है? मां घर की छाया होती है जब तक वह है घर हंसता है, घर में खुशी रहती है वरना यह सभी जानते हैं कि मां के बिना दुनिया वीरान है...तो मां के लिए थोड़ी सी पहल घरवालों को भी करनी चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.