मां (Mother) होने के नाते आप अपनी बेटी (Daughter) की चिंता करती हैं. यह बात समझ आती है मगर कई बार आप बेटी का भला करने के चक्कर में उसे गलत पाठ पढ़ाने लगती हैं. जमाना बदल रहा है इसलिए आपको अपनी सोच भी बदलनी होगी. आपकी बच्ची बाहर जाती है, दोस्तों से मिलती है, कॉलेज जाती है...उसकी भी अपनी एक सोच है, अपना एक नजरिया है. ऐसे अगर आप उससे वही घिसी पिटी पुरानी बातें कहेंगी तो वह आपसे दूर होती जाएगी.
सिर्फ कहने के लिए आपको उसकी सहेली नहीं बनना है, बल्कि सच में एक दोस्त की तरह उसकी बातों को समझना होगा. तभी वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ पाएगी औऱ आप भी तो यही चाहती हैं कि वह कामयाब बने और आपका नाम रोशन करे. आइये जानते हैं कि ऐसी कौन सी बातें हैं जो मांओं को बेेटियों से कहनी छोड़ देनी चाहिए...
धीरे बोलना
अक्सर देखा जाता है कि माएं हर छोटी-छोटी बात पर बेटियों को टोकते रहती हैं. जैसे ही वह कुछ बोलती है या हंसती है तो मां पीछे से टोक देती हैं कि जरा धीरे बोलो, तुम्हारी आवाज पड़ोसी के घर तक जा रही है.
चुपचाप जुर्म सहना
अगर किसी ने कुछ बोल दिया तो अक्सर माएं बेटियों को सलाह देती हैं कि कोई बात नहीं बर्दाश्त कर ले, छोटी सी तो बात है. तुम्हारे बोलने से हंगामा हो जाएगा फिर हमारी ही बदनामी होगी.
शादी ही सबकुछ है
माएं बेटियों को बार-बार शादी की याद दिलाते रहती हैं, जैसे शादी ही जीवन का आधार है. वे चाहती हैं कि बेटी कुछ कर ले मगर उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बेटी का घर बस जाना होता है.
तुम्हें दूसरे के घर जाना है
मांएं हर बात पर बेटियों को टोकते रहती हैं कि तुझे दूसरे के घर जाना है....
मां (Mother) होने के नाते आप अपनी बेटी (Daughter) की चिंता करती हैं. यह बात समझ आती है मगर कई बार आप बेटी का भला करने के चक्कर में उसे गलत पाठ पढ़ाने लगती हैं. जमाना बदल रहा है इसलिए आपको अपनी सोच भी बदलनी होगी. आपकी बच्ची बाहर जाती है, दोस्तों से मिलती है, कॉलेज जाती है...उसकी भी अपनी एक सोच है, अपना एक नजरिया है. ऐसे अगर आप उससे वही घिसी पिटी पुरानी बातें कहेंगी तो वह आपसे दूर होती जाएगी.
सिर्फ कहने के लिए आपको उसकी सहेली नहीं बनना है, बल्कि सच में एक दोस्त की तरह उसकी बातों को समझना होगा. तभी वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ पाएगी औऱ आप भी तो यही चाहती हैं कि वह कामयाब बने और आपका नाम रोशन करे. आइये जानते हैं कि ऐसी कौन सी बातें हैं जो मांओं को बेेटियों से कहनी छोड़ देनी चाहिए...
धीरे बोलना
अक्सर देखा जाता है कि माएं हर छोटी-छोटी बात पर बेटियों को टोकते रहती हैं. जैसे ही वह कुछ बोलती है या हंसती है तो मां पीछे से टोक देती हैं कि जरा धीरे बोलो, तुम्हारी आवाज पड़ोसी के घर तक जा रही है.
चुपचाप जुर्म सहना
अगर किसी ने कुछ बोल दिया तो अक्सर माएं बेटियों को सलाह देती हैं कि कोई बात नहीं बर्दाश्त कर ले, छोटी सी तो बात है. तुम्हारे बोलने से हंगामा हो जाएगा फिर हमारी ही बदनामी होगी.
शादी ही सबकुछ है
माएं बेटियों को बार-बार शादी की याद दिलाते रहती हैं, जैसे शादी ही जीवन का आधार है. वे चाहती हैं कि बेटी कुछ कर ले मगर उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बेटी का घर बस जाना होता है.
तुम्हें दूसरे के घर जाना है
मांएं हर बात पर बेटियों को टोकते रहती हैं कि तुझे दूसरे के घर जाना है. तू पराया धन है. घर के काम सीख ले वरना लोग कहेंगे कि मां ने कुछ सिखाया नहीं है. ससुराल में डिग्री काम नहीं आने वाली.
बेटे से तुलना
मांएं वैसे तो हर बच्चे से बराबार प्यार करती हैं मगर बेटियों को बेटे के नाम पर टोचन देती रहती हैं. जैसे भइया के ज्यादा नंबर आए हैं तो अपने भाई से कुछ सीख ले. जा भाई को पानी ला कर पीला दे, जा भाई के लिए चाय बना दे. बेटा-बेटी में जरा सा अंतर बेटी के मन में घर कर जाता है.
रिलेशनशिप गंदी चीज है
माएं कहने को तो बेटी की सहेली की तरह हैं. मगर आज भी यह पचा नहीं पाती हैं कि उनकी बेटी का कोई मेल फ्रेंड भी हो सकता है. बॉयफ्रेंड होना तो बड़ी दूर की बात है. वे पहले से ही बेटी को इसके खिलाफ डरा कर रखती हैं, नतीजा बेटी बात छिपाने लगती है.
सेक्स एजुकेशन से दूर रहना
मांएं बेटियों से सारे जमाने की बातें कर लेंगी, मगर सेक्स एजुकेशन के बारे में कुछ नहीं कहेंगी. वे तो पैड और पीरियड्स शब्द भी धीरे से बोलती हैं. ऐसे में बेटियों को कई सारी समस्याओं के समाधान के बारे में पता ही नहीं चल पाता है.
संस्कारी कपड़े
मांएं चाहती हैं कि बेटियां समाज के हिसाब से कपड़े पहने. मतलब जमाना कहां से कहां आ गया मगर फिर भी वे बेटियों पर कपड़ों के नाम जमाने की सोच थोपती हैं, जहां लोग कपड़ों के हिसाब से जज करते हैं. ऐसे में बेटियों में कॉन्फिडेंस की कमी आ जाती है.
समाज की चिंता करना
मांएं बात-बात पर समाज की चिंता करती हैं. कई बार इस चक्कर में वे बेटियों के लिए गलत फैसला ले लेती हैं. जैसे बेटी पढ़ाई के लिए घर से बाहर गई तो बिगड़ जाएगी. इसलिए उसे बड़े शहर मत भेजो. वे बेटी पर हमेशा विनम्र होने का दबाव बनाती हैं. ऐसे में बेटियां भी हर बात में यही सोचती हैं कि, लोग क्या कहेंगे?
प्राइवेसी न देना
बेटी है तो उसकी कोई प्राइवेसी नहीं हो सकती है. उसे प्राइवेसी की क्या जरूरत है. प्राइवेसी चाहिए मतलब कुछ गड़बड़ है. मांओं की गलती ये है कि वे अपनी बेटी से अधिक समाज की बातों पर भरोसा करती हैं.
उन्हें नहीं पता कि इन सारी बातों का उनकी बेटी के दिलो दिमाग पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. उन्हें लगता है कि वे जो कर रही हैं सही कर रही हैं औऱ इसी में उनकी बेटी की भलाई है, मगर इन सारी बातों का बेटी की जिंदगी पर बुरा असर पड़ता है. जमाना बहुत खराब है औऱ इसी हिसाब से ही बेटी की परवरिश भी होनी चाहिए. आप अपने आंचल में बेटी को कब तक छिपा कर रखेंगी, इसलिए उसकी परवरिश ऐसे कीजिए कि वह अपनी लड़ाई खुद लड़ पाए. वह निडर बन सके. वह जमाने से हार ना माने और जिंदगी अपनी शर्तों पर सही फैसले के साथ जी सके.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.