मां (Mother) अगर कभी अपने लिए कुछ करतीं भी हैं तो गिल्ट में जीने लगतीं हैं. वे अपने लिए कुछ करना तो दूर सोचना नहीं जानतीं. उनकी पहचान भी उनके बच्चों के नाम से हो जाती है. कई लोग तो उनका नाम तक नहीं जानते. वे सिर्फ फलाने की बहू, सलाने की पत्नी तो चिंटू की मम्मी कहलाने लगती हैं. ऐसा लगता है कि उनका कोई शौक ही नहीं है. वे खुद को ऐसे दिखाती हैं कि उन्हें घर से बाहर जाना अच्छा ही नहीं लगता है. जैसे उन्हें कोई शौक ही नहीं है. मगर ऐसा नहीं है यार, वे भी जिंदगी को खुल कर जीना चाहती हैं मगर वे हमेशा घर, परिवार और बच्चों की चिंता करने में लगी रहती हैं.
वे दिन भर घर का काम करती हैं, सबके लिए खाना बनाती हैं मगर जरा सी उनकी आंख लग जाए तो खुद को दोष देने लगती हैं. जैसे थोड़ी सी झपकी लेकर उन्होंने कितना बड़ा पाप कर दिया, बेचारे घरवालों को खाने में थोड़ा लेट हो गया. वे सबसे देरी से सोती हैं और सबसे जल्दी से जग जाती हैं. वे सुबह मॉर्निंग वॉक पर ना जाकर सबसे पहले रसोई में चाय बनाने लग जाती हैं. इसके बाद सबके लिए नाश्ता, टिफिन बनाने के लिए रसोई में भागती रहती हैं. कभी पति के ऑफिस की फाइल नहीं मिलती तो कभी बच्चों के मोजे.
वे चकरी की तरह घर में नाचती भागती रहती हैं ताकि सभी लोग समय से अपने-अपने काम पर जा सके. उन्हें दादी-दादी जी की दवाई की चिंता भी लगी रहती है. अफसोस कि वे इस बात को समझ ही नहीं पातीं कि वे कोई मशीन नहीं इंसान हैं. उन्हें भी जीने का हक है. उनकी भी अपनी जिंदगी है. मगर नहीं, वे मां हैं इसलिए समझ लिया गया है कि उनका जन्म ही दूसरे लोगों के लिए हुआ है और वे हमेशा दूसरों के लिए ही जिएंगी. उनकी जिंदगी पर उनका कोई हक ही नहीं है. परिवार के लिए त्याग की देवी बने...
मां (Mother) अगर कभी अपने लिए कुछ करतीं भी हैं तो गिल्ट में जीने लगतीं हैं. वे अपने लिए कुछ करना तो दूर सोचना नहीं जानतीं. उनकी पहचान भी उनके बच्चों के नाम से हो जाती है. कई लोग तो उनका नाम तक नहीं जानते. वे सिर्फ फलाने की बहू, सलाने की पत्नी तो चिंटू की मम्मी कहलाने लगती हैं. ऐसा लगता है कि उनका कोई शौक ही नहीं है. वे खुद को ऐसे दिखाती हैं कि उन्हें घर से बाहर जाना अच्छा ही नहीं लगता है. जैसे उन्हें कोई शौक ही नहीं है. मगर ऐसा नहीं है यार, वे भी जिंदगी को खुल कर जीना चाहती हैं मगर वे हमेशा घर, परिवार और बच्चों की चिंता करने में लगी रहती हैं.
वे दिन भर घर का काम करती हैं, सबके लिए खाना बनाती हैं मगर जरा सी उनकी आंख लग जाए तो खुद को दोष देने लगती हैं. जैसे थोड़ी सी झपकी लेकर उन्होंने कितना बड़ा पाप कर दिया, बेचारे घरवालों को खाने में थोड़ा लेट हो गया. वे सबसे देरी से सोती हैं और सबसे जल्दी से जग जाती हैं. वे सुबह मॉर्निंग वॉक पर ना जाकर सबसे पहले रसोई में चाय बनाने लग जाती हैं. इसके बाद सबके लिए नाश्ता, टिफिन बनाने के लिए रसोई में भागती रहती हैं. कभी पति के ऑफिस की फाइल नहीं मिलती तो कभी बच्चों के मोजे.
वे चकरी की तरह घर में नाचती भागती रहती हैं ताकि सभी लोग समय से अपने-अपने काम पर जा सके. उन्हें दादी-दादी जी की दवाई की चिंता भी लगी रहती है. अफसोस कि वे इस बात को समझ ही नहीं पातीं कि वे कोई मशीन नहीं इंसान हैं. उन्हें भी जीने का हक है. उनकी भी अपनी जिंदगी है. मगर नहीं, वे मां हैं इसलिए समझ लिया गया है कि उनका जन्म ही दूसरे लोगों के लिए हुआ है और वे हमेशा दूसरों के लिए ही जिएंगी. उनकी जिंदगी पर उनका कोई हक ही नहीं है. परिवार के लिए त्याग की देवी बने रहना उनका कर्तव्य है.
अरे कोई उनसे भी तो पूछो कि वे क्या चाहती हैं, ऐसा तो नहीं है कि उनके कोई सपने नहीं हो सकते? सपने तो छोड़िए उनकी कोई जिंदगी नहीं हो सकती? वे हमेशा अपने लिए मांगने में संकोच करती हैं. मगर मांओं को समझना होगा कि अपने लिए जीना कोई गुनाह है. आज हम ऐसी ही कुछ बातों पर चर्चा कर रहे हैं जिन्हें करने के बाद किसी मां को सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है.
अपने लिए समय निकालना
अगर एक दिन आपने घर और अपनों को इग्नोर करके अपने लिए टाइम निकाल लिया तो इसमें गिल्ट में जीने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह आपका अधिकार है. साइंस डायरेक्ट पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत की करीब आधी महिलाएं कभी-कभी दिन में एक बार भी बाहर नहीं निकल पाती हैं. सिर्फ 47 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि वे दिन में एक बार घऱ से बाहर निकल पाती हैं. इसका मतलब यह है कि लगभग 53 प्रतिशत महिलाएं दिन में एक बार भी घऱ से बाहर नहीं जाती हैं. ये तो हकीकत है हमारे समाज की.
कभी-कभी घर की सफाई ना करना
मांओं को समझना होगा कि अगर वे कभी-कभी घर साफ नहीं करेंगी तो भी चलेगा. वैसे भी यह उनके अकेले की जिम्मेदारी नहीं है. घर साफ रहे इसके लिए सभी सदस्यों को ध्यान देना होगा. ऐसे में अगर घर एकाध दिन गंदा ही रह जाए तो कोई बात नहीं. आप कोई मशीन तो है नहीं जो 24 घंटों चलती रहेंगी.
थका हुआ महसूस करने पर काम ना करना
मांओं की आदत है कि थका हुआ होने के बावजूद घर के कामों में लगी रहती हैं. भले ही उनका शरीर साथ ना दे रहा हो, फिर भी कमर में दर्द लिए वे चलती रहती हैं. कई बार तो वे बीमार होती हैं फिर भी दवाई खा कर काम करती रहती हैं. ऐसा लगता है कि आराम करके उन्हें पाप लग जाएगा.
बच्चों के लिए हर समय उपलब्ध ना होने पर
वैसे तो एक मां की जिंदगी बच्चे के आस-पास ही घूमती है. वे बच्चे को ही अपनी पूरी दुनिया मान लेती हैं. वे हर पल बच्चे के लिए उपलब्ध होने की कोशिश करती हैं. मगर जब कभी वे बच्चे के पास नहीं हो पाती हैं तो मन ही मन खुद को कोसने लगती हैं. वे खुद को दोषी मानने लगती हैं और अपनी गलती निकालने लगती हैं.
किसी को ना कहने पर गिल्ट में ना जाना
मांओं की आदत होती है कि वे किसी को ना नहीं कह पाती हैं. वे एक काम करती रहेंगी मगर कोई दूसरा काम भी पकड़ा दे तो वे ना नहीं बोल पाएंगी. ऐसे में वे परेशान रहती हैं. उनके काम का बोझ बढ़ता जाता है. तो मां अगर आप किसी को ना कहते हो तो आपको पछताने की जरूरत नहीं है.
मां आपको ध्यान रखना होगा कि आप कोई देवी नहीं, बल्कि एक इंसान हो. जिसे दर्द होता है, जो रोती है, जो कमजोर महसूस करती है, जिसका आराम करने का मन करता है, जिसे अपनी फेवरेट डिश खाना पसंद है, जिसे बाहर जाना पसंद है, जिसे लोगों से मिलना पसंद है. इसलिए अब इन बातों की वजह से किसी को सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.