एक अकेले पुलिसवाले को देखकर दस अपराधी रास्ता बदल देते हैं. क्यों? क्या एक सिपाही का बाहुबल दस अपराधियों से ज्यादा होता है या अकेले वो सिंहम की तरह 10 अपराधियों को धूल चटा सकता है? बिल्कुल नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि एक पुलिसकर्मी सिर्फ शासन का सिपाही ही नहीं बल्कि राज्य का प्रतिनिधि भी होता है. राज्य का दायित्त्व है कि अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहने वाले पुलिसकर्मियों का साथ दे, ताकि सभी पुलिसकर्मियों का आत्मविश्वास इतना मजबूत रहे कि बड़े से बड़ा अपराधी भी उनके सामने कमजोर दिखे.
राज्य का दायित्त्व है कि वह अपने ईमानदार और बहादुर पुलिसकर्मियों के पीछे एक अभिभावक की तरह खड़ा रहे. मेरा अनुमान है कि 2004 में वाराणसी STF इंचार्ज के पद पर तैनात DSP शैलेन्द्र सिंह ने इन्हीं आदर्शवादी 'चाहियेमूलक' बातों पर विश्वास करते हुए मुख्तार अंसारी पर पोटा (Prevention Of Terrorism Act) लगाया था.
मामला मुख्तार अंसारी द्वारा सेना के एक भगोड़े से LMG खरीद का था, जिसे शैलेन्द्र सिंह ने अपनी जान पर खेलकर बरामद किया था. इसके बाद तत्कालीन सरकार ने शैलेन्द्र सिंह पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा. त्यागपत्र देने के बाद अपमानजनक तरीके से उनके विरुद्ध बनारस कैंट थाने में FIR दर्ज की गई और उन्हें जेल भेजा गया.
कितना दुखद है कि जिस वीरता के लिए उन्हें मेडल मिलना चाहिए था, उसके लिए उन्हें प्रताड़ित किया गया.ज्यादातर लोग इस प्रकरण को जानते ही होंगे, पर मुझे अभी कुछ दिन पहले ही इसकी जानकारी हुई.वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार ने LMG प्रकरण के बाद शैलेन्द्र सिंह पर दर्ज मुकदमा वापस ले लिया है.
उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली से अपनी तमाम असहमतियों के बावजूद मैं उत्तर प्रदेश...
एक अकेले पुलिसवाले को देखकर दस अपराधी रास्ता बदल देते हैं. क्यों? क्या एक सिपाही का बाहुबल दस अपराधियों से ज्यादा होता है या अकेले वो सिंहम की तरह 10 अपराधियों को धूल चटा सकता है? बिल्कुल नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि एक पुलिसकर्मी सिर्फ शासन का सिपाही ही नहीं बल्कि राज्य का प्रतिनिधि भी होता है. राज्य का दायित्त्व है कि अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहने वाले पुलिसकर्मियों का साथ दे, ताकि सभी पुलिसकर्मियों का आत्मविश्वास इतना मजबूत रहे कि बड़े से बड़ा अपराधी भी उनके सामने कमजोर दिखे.
राज्य का दायित्त्व है कि वह अपने ईमानदार और बहादुर पुलिसकर्मियों के पीछे एक अभिभावक की तरह खड़ा रहे. मेरा अनुमान है कि 2004 में वाराणसी STF इंचार्ज के पद पर तैनात DSP शैलेन्द्र सिंह ने इन्हीं आदर्शवादी 'चाहियेमूलक' बातों पर विश्वास करते हुए मुख्तार अंसारी पर पोटा (Prevention Of Terrorism Act) लगाया था.
मामला मुख्तार अंसारी द्वारा सेना के एक भगोड़े से LMG खरीद का था, जिसे शैलेन्द्र सिंह ने अपनी जान पर खेलकर बरामद किया था. इसके बाद तत्कालीन सरकार ने शैलेन्द्र सिंह पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा. त्यागपत्र देने के बाद अपमानजनक तरीके से उनके विरुद्ध बनारस कैंट थाने में FIR दर्ज की गई और उन्हें जेल भेजा गया.
कितना दुखद है कि जिस वीरता के लिए उन्हें मेडल मिलना चाहिए था, उसके लिए उन्हें प्रताड़ित किया गया.ज्यादातर लोग इस प्रकरण को जानते ही होंगे, पर मुझे अभी कुछ दिन पहले ही इसकी जानकारी हुई.वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार ने LMG प्रकरण के बाद शैलेन्द्र सिंह पर दर्ज मुकदमा वापस ले लिया है.
उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली से अपनी तमाम असहमतियों के बावजूद मैं उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम की प्रशंसा करती हूं. प्रदेश सरकार का ये कदम स्वागतयोग्य है. धिक्कार है उन राजनीतिज्ञों और नेताओं पर, जिनके सत्ता में रहते हुए शैलेन्द्र सिंह जैसे बहादुर, कर्मठ और ईमानदार पुलिस अधिकारी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार और अन्याय हुआ.
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