एक तस्वीर दिखती है कि एक मुस्लिम महिला (Muslim woman) हिजाब पहने हुए मंदिर में देवी मां की पूजा करती है. लोग इस फोटो को वायरल करते हैं क्योंकि उन्हें यह हैरान करने वाला लगता है. क्यों यही होता है ना? अगर कोई मुस्लिम महिला या पुरुष आरती कर लें या पूजा कर लें तो एक तबका खुशी जताकर तारीफ करता है तो दूसरा तबका धर्म की सीख देकर ट्रोल करने लगता है.
दरअसल, तस्वीर में दिख रही इस महिला का नाम फमीदा है. जो मंदिर में पूजा करने के बाद चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इनके पति इब्राहिम शरीफ ने 50 साल पहले शिवमोगा में भगवती अम्मा मंदिर बनवाया और पूजा का आयोजन किया था. दो साल पहले ही उनकी मौत हो गई. अब फमीदा ने शिवमोगा में पति द्वारा बनावाए मंदिर में पूजा कर आयोजन की शुरुआत की है. वो इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं.
मंदिर बनवाने के बाद इब्राहिम ने शिवमोगा के सामग नगर के हिंदू नागरिकों को सौंपा दिया था. वे नमाज और पूजा दोनों करते थे. वैसे भी यह कहां लिखा है कि जिसने मंदिर का निर्माण करवाया हो पूजा भी वही करे या फिर मंदिर बनवाने वाले को ही विशेष पूजा करने का अधिकार है?
नहीं हम यहां यह बात बिल्कुल नहीं करना चाहते हैं कि कैसे किसी दूसरी समुदाय की महिला देवी मां का पूजा कर रही है. ऐसी खबरें तो आपको कभी-कभी दिख ही जाती हैं. बनारस मुस्लिम महिलाएं श्री राम की आरती करती दिख जाती हैं. कई मुस्लिम महिलाएं करवाचौथ का व्रत भी रखती हैं. कई महिलाएं आस्था के नाम पर नवरात्र में कन्या पूजन भी करती हैं. यह अपनी-अपनी आस्था और विश्वास है.
कई हिंदू लोग भी रोजा रखते हैं, ईद के दिन सेवई बनाते हैं...इन सब में हिंदू-मुस्लिम के बीच रक्षाबंधन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा सबसे पुरानी है....
एक तस्वीर दिखती है कि एक मुस्लिम महिला (Muslim woman) हिजाब पहने हुए मंदिर में देवी मां की पूजा करती है. लोग इस फोटो को वायरल करते हैं क्योंकि उन्हें यह हैरान करने वाला लगता है. क्यों यही होता है ना? अगर कोई मुस्लिम महिला या पुरुष आरती कर लें या पूजा कर लें तो एक तबका खुशी जताकर तारीफ करता है तो दूसरा तबका धर्म की सीख देकर ट्रोल करने लगता है.
दरअसल, तस्वीर में दिख रही इस महिला का नाम फमीदा है. जो मंदिर में पूजा करने के बाद चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इनके पति इब्राहिम शरीफ ने 50 साल पहले शिवमोगा में भगवती अम्मा मंदिर बनवाया और पूजा का आयोजन किया था. दो साल पहले ही उनकी मौत हो गई. अब फमीदा ने शिवमोगा में पति द्वारा बनावाए मंदिर में पूजा कर आयोजन की शुरुआत की है. वो इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं.
मंदिर बनवाने के बाद इब्राहिम ने शिवमोगा के सामग नगर के हिंदू नागरिकों को सौंपा दिया था. वे नमाज और पूजा दोनों करते थे. वैसे भी यह कहां लिखा है कि जिसने मंदिर का निर्माण करवाया हो पूजा भी वही करे या फिर मंदिर बनवाने वाले को ही विशेष पूजा करने का अधिकार है?
नहीं हम यहां यह बात बिल्कुल नहीं करना चाहते हैं कि कैसे किसी दूसरी समुदाय की महिला देवी मां का पूजा कर रही है. ऐसी खबरें तो आपको कभी-कभी दिख ही जाती हैं. बनारस मुस्लिम महिलाएं श्री राम की आरती करती दिख जाती हैं. कई मुस्लिम महिलाएं करवाचौथ का व्रत भी रखती हैं. कई महिलाएं आस्था के नाम पर नवरात्र में कन्या पूजन भी करती हैं. यह अपनी-अपनी आस्था और विश्वास है.
कई हिंदू लोग भी रोजा रखते हैं, ईद के दिन सेवई बनाते हैं...इन सब में हिंदू-मुस्लिम के बीच रक्षाबंधन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा सबसे पुरानी है. बात यह है ही नहीं कि कौन किसकी पूजा करता है. बात यह है कि यह कहां लिखा है कि जिसने मंदिर बनवाया उसे ही पूजा करनी है?
यह कहां लिखा है कि पति के मृत्यु का बाद पत्नी घर की परंपरा की जिम्मेदारी नहीं ले सकती है? वह महिला है सिर्फ इसलिए घर की परंपरा को आगे नहीं बढ़ा सकती? क्या हमारे समाज में एक महिला की इज्जत तभी तक है जब तक उसका पति जीवित है? पति-पत्नी तो एक-दूसरे के हर सुख-दुख के साथी होते हैं ना? आप शबरी मला मंदिर का ही उदाहरण ले लीजिए.
ऐसे में अगर एक महिला मंदिर में पूजा कर रही है तो यह कोई छोटी बात तो नहीं है क्योंकि वह इस रुढ़िवादी परंपरा को चुनौती दे रही है जहां सिर्फ पुरुषों को अधिकार दिया जाता है. वह तो अपने पति के गुजर जाने के बाद मंदिर में पूजा कर रही है, अपनी जिम्मेदारी निभा रही है.
फमीदा का कहना है कि मेरे पति के सपने में मां भगवती आईं थीं. इसके बाद उन्होंने एक साधू से इस बारे में पूछा और बाद में एक मंदिर का निर्माण करवाकर उस सपने को पूरा किया.
भले ही मेरे पति आज इस दुनियां में नहीं है लेकिन मेरे परिवार के लोग हिंदू त्योहारों में विशेष पूजा अर्चना करते हैं. मैं इसी परंपरा को आगे बढ़ा रही हूं. इस मंदिर की देख-रेख सामग नगर के हिंदू नागरिक ही करते हैं, फमीदा यह पूजा अपनी श्रद्धा के लिए कर रही हैं ना कि मंदिर पर अधिकार जताने के लिए. आपकी नजर में फमीदा सही कर रही हैं या गलत?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.