एक ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया के सामने शांति का मुद्दा किसी चुनौती की तरह है. जब शांति स्थापित करने को लेकर विश्व के कई मुल्कों द्वारा बड़े बड़े व्याख्यान दिए जा रहे हों. सूझ बूझ और इंसानियत की बातें की जा रही हों. कबूतर उड़ाए जा रहे हों. हमारे लिए जरूरी हो जाता है कि हम नादिया मुराद को जानें और समझें कि उन्होंने ऐसा क्या किया जो इतिहास में दर्ज हो गया. ध्यान रहे कि इस साल शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए यजीदी समुदाय से संबंध रखने वाली नादिया मुराद को चुना गया है. ओस्लो में पांच सदस्यों की पुरस्कार समिति ने इनके नाम पर हामी भरी. नादिया को शांति का नोबेल इसलिए मिला है क्योंकि युद्ध और आर्म्स कॉन्फ्लिक्ट के दौरान हथियार के रूप में यौन हिंसा के प्रयोग को खत्म करने में नादिया ने एक बड़ी भूमिका निभाई है.
क्या हुआ था नादिया के साथ ?
साल 2014 के दौरान इराक में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के उदय के वक़्त एक अजीब सी स्थिति थी. कहना गलत नहीं है कि इस्लामिक स्टेट के उदय के साथ इराक के यजीदी समुदाय के लोगों के अच्छे दिन उनसे कहीं बहुत दूर चले गए थे और बुरे वक़्त ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया था. 2014 में नदिया, इराक स्थित सिंजर के जिस गांव में रह कर जीवन यापन कर रही थीं उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है. यजीदियों का केंद्र और सीरिया से नजदीक होने के कारण आईएस के लिए सिंजर पहुंचना आसान था.
उसी साल अगस्त में आईएस के आतंकियों ने सिंजर पर हमला किया. काले झंड़े लगे जिहादियों के ट्रक नादिया के गांव में भी आ गए. नादिया के अनुसार, इन बर्बर आतंकियों ने सभी स्थानीय पुरुषों की हत्या कर दी. उसके बाद जहां एक तरफ आतंकियों ने बच्चों को युद्ध सिखाने के लिए...
एक ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया के सामने शांति का मुद्दा किसी चुनौती की तरह है. जब शांति स्थापित करने को लेकर विश्व के कई मुल्कों द्वारा बड़े बड़े व्याख्यान दिए जा रहे हों. सूझ बूझ और इंसानियत की बातें की जा रही हों. कबूतर उड़ाए जा रहे हों. हमारे लिए जरूरी हो जाता है कि हम नादिया मुराद को जानें और समझें कि उन्होंने ऐसा क्या किया जो इतिहास में दर्ज हो गया. ध्यान रहे कि इस साल शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए यजीदी समुदाय से संबंध रखने वाली नादिया मुराद को चुना गया है. ओस्लो में पांच सदस्यों की पुरस्कार समिति ने इनके नाम पर हामी भरी. नादिया को शांति का नोबेल इसलिए मिला है क्योंकि युद्ध और आर्म्स कॉन्फ्लिक्ट के दौरान हथियार के रूप में यौन हिंसा के प्रयोग को खत्म करने में नादिया ने एक बड़ी भूमिका निभाई है.
क्या हुआ था नादिया के साथ ?
साल 2014 के दौरान इराक में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के उदय के वक़्त एक अजीब सी स्थिति थी. कहना गलत नहीं है कि इस्लामिक स्टेट के उदय के साथ इराक के यजीदी समुदाय के लोगों के अच्छे दिन उनसे कहीं बहुत दूर चले गए थे और बुरे वक़्त ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया था. 2014 में नदिया, इराक स्थित सिंजर के जिस गांव में रह कर जीवन यापन कर रही थीं उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है. यजीदियों का केंद्र और सीरिया से नजदीक होने के कारण आईएस के लिए सिंजर पहुंचना आसान था.
उसी साल अगस्त में आईएस के आतंकियों ने सिंजर पर हमला किया. काले झंड़े लगे जिहादियों के ट्रक नादिया के गांव में भी आ गए. नादिया के अनुसार, इन बर्बर आतंकियों ने सभी स्थानीय पुरुषों की हत्या कर दी. उसके बाद जहां एक तरफ आतंकियों ने बच्चों को युद्ध सिखाने के लिए अपने कब्जे में लिया तो वहीं उन्होंने हज़ारों महिलाओं को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया ताकि वो उन्हें सेक्स स्लेव बना सकें. नादिया भी इन महिलाओं में थी. आईएस के आतंकियों ने उसका भी जमकर यौन शोषण किया और तरह तरह की यातनाएं दीं.
बंदियों को ले गए मोसुल
अपने साथ हुए जुल्म पर प्रकाश डालते हुए नादिया बताती हैं कि आईएस के आतंकियों द्वारा गिरफ्तार लोगों को मोसुल ले जाया गया. मोसुल, आईएस के स्वघोषित खलीफा की 'राजधानी' थी. जहां आतंकियों ने इंसानियत को तार तार करते हुए गिरफ्तार औरतों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. यजीदी महिलाओं को धर्म बदल कर इस्लाम धर्म अपनाने का भी दबाव बदस्तूर बनाया जाता था.
सजते थे गुलाम बाजार
किस तरह आतंकियों द्वारा महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, जिहादी, महिलाओं और बच्चियों को बेचने के लिए गुलाम बाज़ार लगाते थे जहां मनमाने तरीके से खरीद फरोख्त होती थी.
नदिया का जिहादी के साथ हुआ था निकाह
मुराद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आपबीती सुनाई. मुराद ने कहा कि हजारों यजीदी महिलाओं की तरह उसका भी एक आतंकी के साथ जबरदस्ती निकाह कराया गया.
मुसलमान परिवार ने की भागने में मदद
नदिया के अनुसार, जिहादी कैंप में उसका जीवन नरक सरीखा था. इस कारण वो हमेशा ही भागने की फिराक में रहती थी. इसके लिए उसने मोसुल के ही एक मुसलमान परिवार की मदद ली और उन्हीं के कारण उसे आजादी मिली. आतंकियों के चंगुल से आजाद होने के बाद नदिया ने सूझबूझ का परिचय दिया और गलत पहचान पत्रों की मदद ली जिनसे वो इराकी कुर्दिस्तान पहुंची और वहां रह रहे अन्य यजीदियों के साथ जीवन यापन किया.
हमारा सम्मान छीनने आए थे अपना ही गंवा बैठे
मुराद और मुराद जैसी हजारों औरतें कितना कुछ भोग रही हैं. यदि इस बात को समझना हो तो हमें मुराद की उस बात को समझना होगा जहां उन्होंने स्वीकार किया था कि आईएस के लड़ाके हमारा (यजीदी महिलाओं का) सम्मान छीनना चाहते थे लेकिन अब हमारी नजरों में उनका रत्ती भर भी सम्मान नहीं है वो अपना सम्मान खो चुके हैं. न वो इस्लाम के अनुयायी हैं और न ही मुसलमान हैं.
वर्तमान में जर्मनी में रह रहीं नादिया के विषय में हम बस इतना कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि, नदिया ने न सिर्फ मीडिया के अलावा दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इराक में हुए महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों को उजागर किया. बल्कि साल 2016 में अमेरिकी कांग्रेस में भाषण देते हुए उनका अमेरिका से आईएस को खत्म करने की अपील करना ये बताता है कि सीरिया और इराक में आतंकवाद की समस्या कितनी और किस हद तक गहरी है और इसके चलते लोग कितना कुछ झेल रहे हैं.
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