जब मॉल में ही नमाज (Namaz) पढ़ना है तो फिर मस्जिद की जरूरत ही क्या है? फिर क्यों मंदिर-मस्जिद के नाम पर आपस में लड़ाई करते हैं. लखनऊ का लुलु मॉल (LuLu mall) दो हजार करोड़ लगाकर इसलिए तो बना था कि लोग वहां जाकर नमाज पढ़ सकें. अपने धर्म का मजाक लोग खुद ही बनाने पर तुले हैं. आस्था अब बदला लेने का हथियार बन गया है. ऐसे लोगों को ज्ञानवापी पर लड़ाई खत्म कर देनी चाहिए.
अरे कोई तो जगह आम लोगों के लिए छोड़ दें. अगर धार्मिक गतिविधि का ऐसा ही माहौल रहा तो लोग लुलु मॉल में जाना ही बंद कर देंगे. कम से कम मॉल तो कट्टरपंथियों से सुरक्षित हो. ऐसी जगह पर लोग अपने बच्चों को क्यों लेकर जाना चाहेंगे जहां वे सुरक्षित महसूस ना कर सकें.
कहीं तो शांति रहने दें. कोई आपको भड़का रहा है और आप भड़क रहे हैं. बांटो और राज्य करो वाली नीति को आप भूल गए क्या? गुस्से में और बदले की भावना से की गई दुआ कभी कबूल नहीं होती है. मन में श्रद्धा है नहीं और चले हैं फरिश्ता बनने...
वैसे भी कुछ लोगों को हर चीज में हिंदू-मुस्लिम एंगल ही दिखने लगा है. चाहें पाकिस्तान के कराची की सैमसंग मोबाइल के क्यू ऑर कोड वाली घटना हो या यूपी के संभल में अखबार पर देवी मां की छपी तस्वीर...लोगों की भावनाएं जरा-जरा सी बात पर आहत हो जा रही हैं. देश का माहौल ऐसा चल रहा है. एक तरफ ज्ञानवापी, नुपुर शर्मा विवाद, सर तन से जुदा का नारा, मां काली का अपमान और अब लुलु मॉल. फिर भी कुछ लोग मानने को तैयार नहीं है, पता नहीं वे क्या करना चाहते हैं? कट्टरपंथ का नजीता मासूम लोग भुगत रहे हैं. एक आग शांत हुई नहीं कि दूसरी चिनगारी भड़का देनी है.
खैर, मॉल का डिजाइन तो वैसे ही गल्फ से प्रेरित लग रहा है, लेकिन कम से कम...
जब मॉल में ही नमाज (Namaz) पढ़ना है तो फिर मस्जिद की जरूरत ही क्या है? फिर क्यों मंदिर-मस्जिद के नाम पर आपस में लड़ाई करते हैं. लखनऊ का लुलु मॉल (LuLu mall) दो हजार करोड़ लगाकर इसलिए तो बना था कि लोग वहां जाकर नमाज पढ़ सकें. अपने धर्म का मजाक लोग खुद ही बनाने पर तुले हैं. आस्था अब बदला लेने का हथियार बन गया है. ऐसे लोगों को ज्ञानवापी पर लड़ाई खत्म कर देनी चाहिए.
अरे कोई तो जगह आम लोगों के लिए छोड़ दें. अगर धार्मिक गतिविधि का ऐसा ही माहौल रहा तो लोग लुलु मॉल में जाना ही बंद कर देंगे. कम से कम मॉल तो कट्टरपंथियों से सुरक्षित हो. ऐसी जगह पर लोग अपने बच्चों को क्यों लेकर जाना चाहेंगे जहां वे सुरक्षित महसूस ना कर सकें.
कहीं तो शांति रहने दें. कोई आपको भड़का रहा है और आप भड़क रहे हैं. बांटो और राज्य करो वाली नीति को आप भूल गए क्या? गुस्से में और बदले की भावना से की गई दुआ कभी कबूल नहीं होती है. मन में श्रद्धा है नहीं और चले हैं फरिश्ता बनने...
वैसे भी कुछ लोगों को हर चीज में हिंदू-मुस्लिम एंगल ही दिखने लगा है. चाहें पाकिस्तान के कराची की सैमसंग मोबाइल के क्यू ऑर कोड वाली घटना हो या यूपी के संभल में अखबार पर देवी मां की छपी तस्वीर...लोगों की भावनाएं जरा-जरा सी बात पर आहत हो जा रही हैं. देश का माहौल ऐसा चल रहा है. एक तरफ ज्ञानवापी, नुपुर शर्मा विवाद, सर तन से जुदा का नारा, मां काली का अपमान और अब लुलु मॉल. फिर भी कुछ लोग मानने को तैयार नहीं है, पता नहीं वे क्या करना चाहते हैं? कट्टरपंथ का नजीता मासूम लोग भुगत रहे हैं. एक आग शांत हुई नहीं कि दूसरी चिनगारी भड़का देनी है.
खैर, मॉल का डिजाइन तो वैसे ही गल्फ से प्रेरित लग रहा है, लेकिन कम से कम उसे एक सामान्य मॉल की तरह ट्रीट किया जाना चाहिए, ना कि लुलु मस्जिद की तरह. अब मॉल में नमाज करते लोगों को अखिल भारत हिंदू महासभा ने अपने विरोध में सुंदर कांड का पाठ करने का ऐलान किया था.
हालांकि लुलु मॉल के जीएम समीर कर्मचारियों की लिस्ट लेकर हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शिशिर चतुर्वेदी के घर पहुंचे. दोनों की बातचीत के बाद सुंदर कांड के पाठ को टाल दिया गया, लेकिन अगर एक हफ्ते में नमाजियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो यह फैसला पलट भी सकता है. अब जब एक पक्ष बार-बार उकसा रहा है तो दूसरा पक्ष कब तक चुप्पी साधेगा. वह अपनी बात किसी तरह अधिकारियों के सामने लाएगा ही...सरकार शुरुआत से ही सार्वजनिक स्थानों पर नमाज ना पढ़ने की हिदायत दे रही है. लेकिन मानना किसी को नहीं है.
आपको लुलु मॉल जाना है जाइए, अपने दोस्तों और परिवार के साथ वहां जाकर सेल्फी लीजिए. फूड कोड में खाने का आनंद लीजिए. फिल्म देखिए, शॉपिंग कीजिए, बच्चों को घूमाइए लेकिन कृपया करके कट्टरपंथ मत फैलाइए..मॉल लोगों के लिए बनाया गया है ना कि लड़ाई-झगड़े के लिए...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.