हाल ही में छुट्टी मनाने को लेकर भारतीय राजनीति ने एक दिलचस्प मोड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये आरोप लगाया है की पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपने परिवार और रिश्तेदारों से साथ INS Viraat को निजी टैक्सी की तरह इस्तेमाल करते थे. जी हां, यहां बात 1987 की हो रही है जब राजीव गांधी एक द्वीप पर छुट्टियां मनाने गए थे. इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है और ऐसा लग रहा है कि ये दिल्ली की वोटिंग तक खूब चलेगा जो 12 मई को होनी है.
खैर, अगर बात छुट्टी की है तो हमारे मौजूदा पीएम बहुत गर्व के साथ कहते हैं कि उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है अपने कार्यकाल में. यहां तक कि भाजपा सरकार द्वारा राहुल गांधी की छुट्टियों पर भी कटाक्ष किया जाता है. ये सिर्फ राजनीति में नहीं है. अपने चारों ओर सिर घुमा कर देखिए, ऑफिस में अगर एक कर्मचारी छुट्टी मांग ले तो बॉस इस तरह से बर्ताव करता है जैसे कंपनी का सारा दारोमदार उसी कर्मचारी पर निर्भर है और उसके कुछ दिन न आने से कंपनी का स्टॉक टाइटैनिक की तरह डूब जाने वाला है.
बॉस तो छोड़िए आपस में काम करने वाले लोग (चलिए लिहाज के तौर पर ऑफिस के दोस्त कह लीजिए) भी किसी को छुट्टी मिलने पर खुश कम होते हैं और ताना ज्यादा मारते हैं. 'अरे वाह ऐश हैं तेरे,' 'फिर छुट्टी मिल गई जाओ-जाओ हमारी किस्मत में छुट्टी कहां.'
भारतीयों के लिए छुट्टी चांद पर जाने जैसी है..
मोदी जी ने तो पूरे भारत को सामने ऐलान कर दिया कि वो छुट्टी नहीं लेते, लेकिन पूरे भारत का ट्रेंड देखकर उन्हें भी थोड़ा अचंभा हो सकता है. एक ट्रैवल एजेंसी Expedia की सालाना रिपोर्ट 2018 में आई थी. इस रिपोर्ट में दुनिया की सबसे ज्यादा most...
हाल ही में छुट्टी मनाने को लेकर भारतीय राजनीति ने एक दिलचस्प मोड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये आरोप लगाया है की पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपने परिवार और रिश्तेदारों से साथ INS Viraat को निजी टैक्सी की तरह इस्तेमाल करते थे. जी हां, यहां बात 1987 की हो रही है जब राजीव गांधी एक द्वीप पर छुट्टियां मनाने गए थे. इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है और ऐसा लग रहा है कि ये दिल्ली की वोटिंग तक खूब चलेगा जो 12 मई को होनी है.
खैर, अगर बात छुट्टी की है तो हमारे मौजूदा पीएम बहुत गर्व के साथ कहते हैं कि उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है अपने कार्यकाल में. यहां तक कि भाजपा सरकार द्वारा राहुल गांधी की छुट्टियों पर भी कटाक्ष किया जाता है. ये सिर्फ राजनीति में नहीं है. अपने चारों ओर सिर घुमा कर देखिए, ऑफिस में अगर एक कर्मचारी छुट्टी मांग ले तो बॉस इस तरह से बर्ताव करता है जैसे कंपनी का सारा दारोमदार उसी कर्मचारी पर निर्भर है और उसके कुछ दिन न आने से कंपनी का स्टॉक टाइटैनिक की तरह डूब जाने वाला है.
बॉस तो छोड़िए आपस में काम करने वाले लोग (चलिए लिहाज के तौर पर ऑफिस के दोस्त कह लीजिए) भी किसी को छुट्टी मिलने पर खुश कम होते हैं और ताना ज्यादा मारते हैं. 'अरे वाह ऐश हैं तेरे,' 'फिर छुट्टी मिल गई जाओ-जाओ हमारी किस्मत में छुट्टी कहां.'
भारतीयों के लिए छुट्टी चांद पर जाने जैसी है..
मोदी जी ने तो पूरे भारत को सामने ऐलान कर दिया कि वो छुट्टी नहीं लेते, लेकिन पूरे भारत का ट्रेंड देखकर उन्हें भी थोड़ा अचंभा हो सकता है. एक ट्रैवल एजेंसी Expedia की सालाना रिपोर्ट 2018 में आई थी. इस रिपोर्ट में दुनिया की सबसे ज्यादा most vacation deprived country यानी सबसे कम छुट्टी मनाने वाले देशों की लिस्ट थी और इसमें पहला स्थान भारत का था. जी हां, भारत दुनिया का सबसे कम छुट्टी मनाने वाला देश है. रिपोर्ट की मानें तो 75% भारतीयों ने माना कि वो छुट्टी पर काम की वजह से नहीं जा सकते हैं.
सिर्फ 3% भारतीयों ने माना कि वो हर महीने कहीं न कहीं घूमने जाते हैं और एक तिहाई जनता ने कहा कि 6 महीने से लेकर साल भर तक के अंतराल में वो किसी छुट्टी पर गए ही नहीं हैं.
सर्वे में हिस्सा लेने वाले आधे लोगों ने माना कि काम से एक ब्रेक लेना उनके लिए बेहतर है और असल में ये क्रिएटिविटी बढ़ाने और स्ट्रेस खत्म करने का तरीका है, लेकिन नतीजा वहीं कि ये लोग जा नहीं पाते.
भारत के बाद साउथ कोरिया और हांगकांग सबसे कम छुट्टी मनाने वाले देश हैं, जहां 72% और 69% लोगों ने माना कि वो छुट्टी नहीं ले पाते. ये सर्वे 19 देशों में 11000 वयस्कों पर किया गया था. एशिया, अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप इसका हिस्सा थे. अब ऐसे में राहुल गांधी अगर छुट्टी मनाने चले भी जाते हैं तो क्या फर्क पड़ता है. कम से कम वो पिता जी की तरह INS विराट लेकर तो नहीं जाते.
भारत का 'छुट्टी कल्चर' बहुत खतरनाक है स्वास्थ्य के लिए-
जहां तक मोदी जी का सवला है तो वो हर चीज़ अच्छी कर रहे हैं. सफाई को लेकर ध्यान दिया जा रहा है, भ्रष्टाचार मिटाने की बातें हो रही हैं, दुनिया के सामने भारत की नई पहचान बनी है, पर कम से कम छुट्टी को लेकर मोदी के विचार को मुख्य धारा में नहीं लाना चाहिए. कोई इंसान 24 में से अगर 20 घंटे काम का दावा कर रहा है तो ये अच्छी बात नहीं है. एक प्रधानमंत्री देश के सामने क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं? देखिए ये कितना खतरनाक साबित हो सकता है.
जिस बात को गर्व के साथ कहा जाता है कि हम तो जनाब एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेते वो असल में विज्ञान के मुताबिक सबसे खराब बात है. कितनी बार ऐसा हुआ है कि ज्यादा काम के कारण सिर दर्द और बदन दर्द जैसी समस्याएं होने लगी हों. कई बार तो मामला इतना गंभीर हो जाता है कि लोगों की जबान भी लड़खड़ाने लगे.
* इससे काम में तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती हैं-
नॉर्वे के बर्जन विश्वविध्यालय के तीन प्रोफेसर Cecilie Schou Andreassen, Holger rsin, और Hege R. Eriksen ने एक स्टडी की थी जिसमें वो ज्यादा काम के स्वास्थ्य पर असर को नाप रहे थे. उनके सर्वे में 235 बैंक कर्मचारी थे. जो नतीजे सामने आए वो बताते हैं कि ज्यादा काम करने से न सिर्फ तनाव बढ़ता है बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दुगनी हो जाती हैं.
* नींद से जुड़ी समस्याएं सामने आती हैं-
रिसर्चर Kazumi Kubota, Akihito Shimazu वर्कोहॉलिज्म और नींद से जुड़ी समस्याओं पर अध्ययन कर रहे थे और उन्होंने 600 नर्स पर सर्वे किया. उनका नतीजा सामने थे. अस्पताल की शिफ्ट करने वाले इन लोगों पर बहुत ज्यादा काम का प्रेशर होता है और उनके काम करने के घंटे भी ज्यादा होते हैं. ऐसे में नींद से जुड़ी समस्याएं जैसे पूरी नींद न ले पाना, सुबह नींद न खुलना, काम के दौरान नींद आना जैसे बहुत सी समस्याएं सामने आ गईं.
* ज्यादा काम मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी पैदा करता है-
एक्सपर्ट Akihito Shimazu के अनुसार अगर कोई ज्यादा काम कर रहा है, आराम नहीं कर रहा तो उसकी पर्सनालिटी में बदलाव आने लगेगा. उसे हर चीज़ परफेक्ट और अपने हिसाब से चाहिए होगी. उसे हर बात पर परफेक्शन दिखेगा और वो टीम वर्क के लिए अच्छा नहीं होगा. न सिर्फ ये बल्कि उसके मन में धीरे-धीरे भावनाएं बदलने लगेंगी और दया से ज्यादा काम और निजी रिश्तों में तकलीफ होने लगेगी. ये बात तो शायद अपने ऑफिस में ही साबित हो जाएगी जहां अक्सर कई वर्कोहॉलिक्स को लगता है कि उनके साथ काम करने वाले 100% नहीं दे रहे, बहाना बना रहे हैं या फिर निजी समस्या को काम के बीच में क्यों ला रहे हैं.
ये आगे चलकर काम पर भी असर डालता है और यकीनन इससे समस्याएं बढ़ती हैं. सिर्फ यही नहीं एक गूगल सर्च आपको बता देगी कि आखिर इस विषय के ऊपर कितनी रिसर्च हुई है और छुट्टी न लेना और ज्यादा काम करना कितना खतरनाक भी साबित हो सकता है.
मोदी जी को दुनिया के बाकी नेताओं की छुट्टियां भी देखनी चाहिए-
नरेंद्र मोदी भले ही अपने छुट्टी पर न जाने का बखान करें, लेकिन दुनिया के अन्य देशों के लीडर छुट्टियों पर भी जाते हैं और देश भी चलाते हैं.
1. थेरेसा मे- ब्रिक्सिट को लेकर घिरी हुईं ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने भी अपने पति के साथ उत्तरी इटली में तीन हफ्ते की छुट्टियां मनाईं.
2. व्लादिमिर पुतिन-
रूस के राष्ट्रपति पुतिन की छुट्टियां तो बहुत चर्चित हैं. साइबेरिया में पुतिन की शर्टलेस तस्वीर जिसमें वो मछली पकड़ रहे हैं वो इंटरनेट पर बहुत वायरल भी हुई थी.
3. एंजेला मार्कल-
जर्मनी में चुनाव होने के एक हफ्ते पहले ही चांसलर एंजेला मार्कल अपने पति के साथ इटली में छुट्टियां मनाने गई थीं. उन्होंने हाइकिंग और लग्जरी रिजॉर्ट का लुत्फ उठाया था.
4. डोनाल्ड ट्रंप-
डोनाल्ड ट्रंप भले ही कितना भी कह लें कि वो छुट्टी नहीं लेते पर न्यू जर्सी के अपने निजी गोल्फ क्लब में ट्रंप 17 दिन की लंबी छुट्टी मना चुके हैं. इसे वो वर्क वेकेशन का नाम भी दे चुके हैं. ये तब की बात है जब उत्तर कोरिया के साथ समस्या बहुत बढ़ गई थी.
5. जस्टिन ट्रूड्यू-
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन का छुट्टियों का प्लान भी जगजाहिर रहता है. भारत में छुट्टी मनाने से लेकर ब्रिटिश कोलंबिया में अपनी कयाक से गिरने तक की कई तस्वीरें इंटरनेट पर मिल जाएंगी.
अगर इसे देखा जाए तो ये कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को भी कम से कम एक छुट्टी पर तो जाना चाहिए. शायद इससे ही भारत के छुट्टी कल्चर में थोड़ा बदलाव आ जाए.
पर हमारे देश में आखिर ऐसे हालात क्यों?
देखिए भारत ऐसे लोगों से भरा हुआ है, जो दोहरी बात करना पसंद करते हैं. छुट्टी के मामले में भी लोगों का रुख वैसा ही है. हर कोई छुट्टी लेना चाहता है, लेकिन अपने अधीन काम कर रहे शख्स को छुट्टी देना नहीं चाहता. श्रम की अधिकता वाले देशों में अकसर श्रम की कद्र कम हो जाती है. लेकिन छुट्टी को लेकर समाज में हमने कई तरह की टिप्पणियों को बचपन से देखा-सुना है. ऑफिस में ओवरटाइम करना यहां शान की बात समझी जाती है ताकि दूसरों को बता सकें कि कितने कर्मठ हैं. भले ही फ्री के एसी और वाई-फाई के लिए बैठे हों. और ज्यादातर वक्त सोशल मीडिया पर बिता रहे हों.
घर से बाहर अगर ज्यादा देर तक रह लो तो ही 'आवारा' का टैग लग जाता है. ऐसे में छुट्टी मनाना और घूमने जाना तो तौबा-तौबा. अब खुद ही सोच लीजिए गांधी परिवार का छुट्टी मनाना और INS विराट का इस्तेमाल करना यकीनन मुद्दा तो बनना ही था. हालात ही ऐसे हैं.
भारत में छुट्टी लेने या घूमने जाने को बहुत अच्छा नहीं माना जाता है. कई लोग तो ये भी कहते पाए गए हैं कि, 'अगर मोदी जी इतना काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं.' मोदी जी सुपर ह्यूमन हो सकते हैं पर जरूरी नहीं कि सब हों. और ये वाकई स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात नहीं है. कुछ रिसर्च ये भी कहती हैं कि इससे तनाव इतना बढ़ जाता है कि लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं. भारत में कितने डिप्रेस्ड लोग हैं ये तो शायद लोग जानते ही होंगे.
अगर पीएम को छोड़ भी दिया जाए तो भी यकीन मानिए भारत में आम लोग भी छुट्टी लेने के आदी नहीं हैं. कारण? छुट्टी का कोई कल्चर ही नहीं है. कंपनियों में काम करने वालों के लिए तो खास तौर पर. कंपनी में नौकरी देते वक्त जो HR छुट्टियों की लिस्ट गिनवाता है वो ये बताना भूल जाता है कि यहां छुट्टी के सपने देखना काल्पनिक है और इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है.
ये भी पढ़ें-
जब छुट्टी पाने के हों हजार बहाने तो कोई क्यों 5000 रु. देकर 'बीमारी' खरीदेगा
चुनाव ड्यूटी करना क्या इतना मुश्किल है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.