देश में सड़क दुर्घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. यह महामारी का रूप लेती जा रही है. हर वर्ष लाखों की जान लेने वाली भस्मासुर है ये सड़क और रेल यात्रा. भारत में साल 2015 में 4 लाख 96 हजार सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिसमें 1.77 लाख लोगों की मौत हुई. जबकि 4.86 लाख घायल हुए. ये आंकड़ें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्धारा हाल में जारी किए गए हैं. देश में सड़क दुर्घटना के मामले में पिछले साल के मुकाबले 3.1 प्रतिशत की बढ़त हुई.
सबसे ज्यादा सड़क और रेल हादसे में लोगों की जान उत्तर प्रदेश में गई हैं. उत्तर प्रदेश में 23,219 लोगों की दुर्घटना में मौत हुई. दूसरा नंबर महाराष्ट्र का है जहां 18,404 लोगों की जान गईं.
कभी भी दुर्घटना को मुद्दा बनाकर उसपर कोई फैसला नहीं लिया जाता |
अगर सड़क दुर्घटना की जगह किसी महामारी या आपदा में ये जानें जातीं तो इसपर राजनीति होती. पर इस तरह सड़क पर हम चलते घूमते मर रहे हैं इसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है. कोई कठोर फैसले लेने वाला नहीं है अगर किसी ने कोई फैसला ले भी लिया तो विपक्षी दल उसे पास नहीं होने देते और GDP को नुकसान होगा जैसे फालतू बहाने बताते हैं.
ये भी पढ़ें- दुर्घटनाएं तो होंगी, लेकिन मौत तो रोकी जा सकती है ना सरकार!
आज कल निजी वाहन रखने की होड़ लग गई है लोग पूरे परिवार के साथ यात्रा करते हैं और कभी-कभी पूरा परिवार ही दुर्घटना का शिकार हो जाता है. सड़कों पर बेतहाशा गाड़ियां बढ़ती जा रही हैं. यातायात नियमों का धड़ल्ले से उलघन...
देश में सड़क दुर्घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. यह महामारी का रूप लेती जा रही है. हर वर्ष लाखों की जान लेने वाली भस्मासुर है ये सड़क और रेल यात्रा. भारत में साल 2015 में 4 लाख 96 हजार सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिसमें 1.77 लाख लोगों की मौत हुई. जबकि 4.86 लाख घायल हुए. ये आंकड़ें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्धारा हाल में जारी किए गए हैं. देश में सड़क दुर्घटना के मामले में पिछले साल के मुकाबले 3.1 प्रतिशत की बढ़त हुई.
सबसे ज्यादा सड़क और रेल हादसे में लोगों की जान उत्तर प्रदेश में गई हैं. उत्तर प्रदेश में 23,219 लोगों की दुर्घटना में मौत हुई. दूसरा नंबर महाराष्ट्र का है जहां 18,404 लोगों की जान गईं.
कभी भी दुर्घटना को मुद्दा बनाकर उसपर कोई फैसला नहीं लिया जाता |
अगर सड़क दुर्घटना की जगह किसी महामारी या आपदा में ये जानें जातीं तो इसपर राजनीति होती. पर इस तरह सड़क पर हम चलते घूमते मर रहे हैं इसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है. कोई कठोर फैसले लेने वाला नहीं है अगर किसी ने कोई फैसला ले भी लिया तो विपक्षी दल उसे पास नहीं होने देते और GDP को नुकसान होगा जैसे फालतू बहाने बताते हैं.
ये भी पढ़ें- दुर्घटनाएं तो होंगी, लेकिन मौत तो रोकी जा सकती है ना सरकार!
आज कल निजी वाहन रखने की होड़ लग गई है लोग पूरे परिवार के साथ यात्रा करते हैं और कभी-कभी पूरा परिवार ही दुर्घटना का शिकार हो जाता है. सड़कों पर बेतहाशा गाड़ियां बढ़ती जा रही हैं. यातायात नियमों का धड़ल्ले से उलघन किया जाता है और प्रशासन मूकबधिर बन कर तमाशा देखता रहता है.
भारत में सबको आदत सी हो गई है, सबको लगता है सब कुछ चलता है. देश हमारा बस राम भरोसे चल रहा है. कहने को नियम कानून का जाल बहुत बड़ा है पर उसमे दोषी बस फंसता नहीं है.
सड़क और रेल दुर्घटनाएं कभी चुनावी मुद्दा बनती ही नहीं हैं. हम तो सिर्फ जात-पात पर अपना वोट दे कर निकल लेते हैं और फिर किसी सड़क चौराहे पर दुर्घटना में जान गवां देते हैं. हम इसके अधिकारी है क्यों की हमारी सोच ही हमे मार रही है. जिस देश में लोग लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ आज़ादी चाहते हैं इनको पाबंदी रास नहीं आती भले ये अपनी आज़ादी से घायल होकर मर जाएं. कोई शराब पिकर गाड़ी चला रहा है तो इनको रोको मत इनको ये कदम आज़ादी में दख्ल लगेगा. बिना रोक टोक सिस्टम ने देश को जर्जर कर दिया है, हम भौतिक रूप से आगे भले बढ़ते दिख रहे हों पर हम प्रशासनिक रूप से खोखले हो चुके हैं.
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आज देश के किसी हिस्से में लॉ एंड आर्डर को संभालना टेढ़ी खीर है. जनता बेलगाम हो चुकी है भीड़ की शक्ल में पुलिस से हाथापाई मार पीट आम हो गई है. न्यायालय व्यवस्था में जंग तो वर्षों पुरानी है, अब लोगों को ना इससे डर लगता है और ना ही कोई उम्मीद है. ऐसे अविश्वास और अराजकता के माहौल में राजनैतिक पार्टियां सिर्फ सत्ता तक ही सोच पा रही हैं देश का क्या होगा इसकी किसी को नहीं पड़ी है.
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