शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है. प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है. यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है. इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता है. जो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं. प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कहानियां और कविताएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं.
कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता है. यह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है. इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती है. प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है. इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं.
बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता है. बच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता. इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है. प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं. वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैं. सब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं. नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं. नाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैं. आज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैं. वहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता है. नानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं. इन कथा- कहानियों के...
शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है. प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है. यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है. इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता है. जो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं. प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कहानियां और कविताएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं.
कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता है. यह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है. इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती है. प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है. इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं.
बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता है. बच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता. इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है. प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं. वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैं. सब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं. नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं. नाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैं. आज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैं. वहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता है. नानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं. इन कथा- कहानियों के माध्यम से वे बच्चों में संस्कार पोषित करती हैं, जो उनके चरित्र का निर्माण करते हैं. यही संस्कार जीवन में उनका मार्गदर्शन करते हैं. अपने पैतृक गांव अथवा नगरों में जाने से वे वहां की संस्कृति से जुड़ते हैं. अपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं. इससे उन्हें अपने संबंधों का पता चलता है. उनमें अपने संबंधियों के प्रति स्नेह का भाव पैदा होता है. वे अपने संबंधियों के प्रति अपने दायित्व को भी समझते हैं. बच्चों में संबंध मूल्य और जीवन मूल्य की समझ बनती है. सम्मान और स्नेह का भाव उपजता है.
ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चे अपने माता- पिता के साथ पर्यटन स्थलों पर भी जाते हैं. अधिकतर लोग ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहां तापमान कम रहता है. ये पहाड़ी क्षेत्र होते हैं. इससे वे वहां की संस्कृति एवं रीति- रिवाजों के बारे में जान पाते हैं. इसके अतिरिक्त वे धार्मिक स्थलों एवं ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर भी घूमने जाते हैं. घूमने का अर्थ केवल सैर सपाटा और मनोरंजन करना नहीं है, अपितु पर्यटन से बहुत सी शिक्षाएं मिलती हैं. धार्मिक स्थलों पर जाने से मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा बच्चे अपने गौरवशाली संस्कृति से जुड़ पाते हैं. उन्हें अपने ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में जानने का अवसर मिलता है. उनमें आस्था का संचार होता है. उनका आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है. ऐतिहासिक स्थलों पर जाने से उन्हें अपने इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता है. ये व्यवहारिक ज्ञान है, जो उन्हें आने- जाने से प्राप्त होता है. यह उनके लिए आवश्यक भी है. वे जिन चीजों के बारे में पुस्तकों में पढ़ते उनके बारे में उन्हें सहज जानकारी प्राप्त होती है. इसका उनके मन- मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
शिक्षकों द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए भी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया जाता है. इस दौरान विद्यालय अवश्य बंद रहते हैं, किन्तु ट्यूशन सेंटर खुले रहते हैं. बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं और अपना गृहकार्य भी करते हैं. इसके अतिरिक ग्रीष्म कालीन अवकाश के दौरान बहुत से संस्थान अनेक प्रकार के कम समयावधि वाले कोर्स प्रारंभ करते हैं, उदाहरण के लिए चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, मिट्टी के खिलौने बनाने, सजावटी सामान बनाना आदि. इस समयावधि में बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने एवं नई- नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त होता है. बहुत से बच्चे खेलों की ओर रुझान करते हैं. समय अभाव के कारण वे खेल नहीं पाते थे, किन्तु अवकाश में उन्हें अपनी पसंद के खेल खेलने का अवसर मिल जाता है. क्षेत्र के बच्चे अपनी-अपनी टीमें बना लेते हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे उनमें खेल भावना का विकास होता है. किसी भी खिलाड़ी के खेल का प्रारंभ इसी प्रकार होता है. पहले वे अपने मित्रों के साथ खेलता है. फिर इसी प्रकार वह खेल स्पर्धाओं में खेलने लगता है. इस प्रकार एक दिन वह देश के लिए पदक जीतने वाला खिलाड़ी बन जाता है. वास्तव में यह समय बच्चों के नैसर्गिक गुणों को निखारने का कार्य करता है.
ग्रीष्म कालीन अवकाश व्यतीत होने के पश्चात विद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान पुन: खुल जाते हैं. विद्यार्थियों की दिनचर्या पुनः पूर्व की भांति हो जाती है. वे प्रात:काल में शीघ्र उठ जाते हैं. नित्य कर्म से निपटने के पश्चात विद्यालय जाने के लिए तैयार होते हैं. वे नाश्ता करके घर से निकल जाते हैं. दिनचर्या केवल बच्चों की ही परिवर्तित नहीं होती, अपितु उनके साथ- साथ उनके माता- पिता की दिनचर्या भी परिवर्तित हो जाती है. उनकी माता प्रातः काल में शीघ्र उठकर उनके लिए नाश्ता बनाती है. उनके लिए टिफिन तैयार करती है. उन्हें विद्यालय या स्कूल बस तक छोड़ने जाती है. बहुत सी माताएं बच्चों को विद्यालय लेकर भी जाती हैं और उन्हें वापस भी लाती हैं. बहुत से विद्यालयों के बाहर दोपहर में महिलाएं अपने बच्चों की प्रतीक्षा में खड़ी रहती हैं. बहुत से बच्चों को उनके पिता विद्यालय छोड़ने जाते हैं.
नये शिक्षा सत्र में बच्चे बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं. उनकी कक्षा का एक स्तर बढ़ जाता है. वे स्वयं को पहले से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं. पिछली कक्षा में भी उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था. उसके कारण ही परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर पाए. परिणामस्वरूप अब वह उससे अगली कक्षा में अर्थात उससे ऊंची कक्षा में हैं. जब विद्यालय खुले थे, तब बहुत अधिक गर्मी थी. बच्चे गर्मी से व्याकुल थे, किन्तु उनके चेहरे पर उत्साह के भाव दिखाई दे रहे थे. बहुत से विद्यालयों में रोली एवं तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया है. यह एक अच्छी पहल है. इससे बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न होता है.
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