कुत्तों के काटने के मामले में नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और दिल्ली के नागरिक निकाय चेत गए हैं. नए नियम बनाए तो गए लोगों की सुविधा के लिए लेकिन इसमें ऐसा बहुत कुछ है जिसने कुत्ते रखने वाले लोगों के दिमाग को चकरा दिया है. नए नियमों में अब जहां कुत्तों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा तो वहीं अगर कुत्ता किसी को काटेगा तो इलाज का पूरा खर्च भी कुत्ते के मालिक को ही देना होगा. इसी तरह नया नियम जहां एंटी रेबीज समेत कुत्तों के अन्य वैक्सीनेशन पर बल देता है. तो उन विदेशी नस्लों के कुत्तों को पूर्णतः प्रतिबंधित करने की बात करता है जिन्हें तमाम अलग अलग घटनाओं के बाद बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों के लिए खतरा करार दे दिया गया है.
भले ही नागरिक निकाय लोगों की सुरक्षा की दृष्टि से अपने ताजा नियमों को अहम बता रहे हों. लेकिन चूंकि नए नियम तमाम किस्म की गफलत लिए हुए हैं, कुछ सवाल हैं जो नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और दिल्ली के नागरिक निकायों के ताजा नियमों को देखकर हमारे सामने आ रहे हैं.
आइये इन सवालों पर गौर करें और इस बात को समझें कि क्यों सिविक बॉडीज को भी इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए.
रजिस्ट्रेशन हुआ या नहीं जांच का पैमाना क्या होगा ?
नए नियमों के मद्देनजर जहां नॉएडा के लोगों को NAPR ऐप पर 500 रुपए का पेमेंट करने के बाद अपने पेट्स का रजिस्टेशन कराना होगा तो वहीं दिल्ली में रह रहे लोगों के लिए ये अनिवार्य रहेगा कि वो दिल्ली नगरपालिका अधिनियम, 1956, की धारा 399, के तहत 500 रुपये का शुल्क देकर अपने कुत्तों का रजिस्टेशन नगर निकाय के पोर्टल पर कराएं.
इसी तरह गाजियाबाद के लोगों को भी 500 रुपए के हिसाब से अपने...
कुत्तों के काटने के मामले में नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और दिल्ली के नागरिक निकाय चेत गए हैं. नए नियम बनाए तो गए लोगों की सुविधा के लिए लेकिन इसमें ऐसा बहुत कुछ है जिसने कुत्ते रखने वाले लोगों के दिमाग को चकरा दिया है. नए नियमों में अब जहां कुत्तों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा तो वहीं अगर कुत्ता किसी को काटेगा तो इलाज का पूरा खर्च भी कुत्ते के मालिक को ही देना होगा. इसी तरह नया नियम जहां एंटी रेबीज समेत कुत्तों के अन्य वैक्सीनेशन पर बल देता है. तो उन विदेशी नस्लों के कुत्तों को पूर्णतः प्रतिबंधित करने की बात करता है जिन्हें तमाम अलग अलग घटनाओं के बाद बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों के लिए खतरा करार दे दिया गया है.
भले ही नागरिक निकाय लोगों की सुरक्षा की दृष्टि से अपने ताजा नियमों को अहम बता रहे हों. लेकिन चूंकि नए नियम तमाम किस्म की गफलत लिए हुए हैं, कुछ सवाल हैं जो नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और दिल्ली के नागरिक निकायों के ताजा नियमों को देखकर हमारे सामने आ रहे हैं.
आइये इन सवालों पर गौर करें और इस बात को समझें कि क्यों सिविक बॉडीज को भी इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए.
रजिस्ट्रेशन हुआ या नहीं जांच का पैमाना क्या होगा ?
नए नियमों के मद्देनजर जहां नॉएडा के लोगों को NAPR ऐप पर 500 रुपए का पेमेंट करने के बाद अपने पेट्स का रजिस्टेशन कराना होगा तो वहीं दिल्ली में रह रहे लोगों के लिए ये अनिवार्य रहेगा कि वो दिल्ली नगरपालिका अधिनियम, 1956, की धारा 399, के तहत 500 रुपये का शुल्क देकर अपने कुत्तों का रजिस्टेशन नगर निकाय के पोर्टल पर कराएं.
इसी तरह गाजियाबाद के लोगों को भी 500 रुपए के हिसाब से अपने कुत्तों का पंजीकरण पोर्टल या ऐप पर कराना होगा. कहा जा रहा है कि यदि लोगों ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया तो उनपर भारी जुर्माना लग सकता है और उनके कुत्ते को नगर निगम जब्त कर सकते हैं. सवाल ये है कि चाहे वो यूपी का नॉएडा और गाजियाबाद हो या फिर गुरुग्राम और दिल्ली क्योंकि तमाम घरों में कुत्ते हैं कैसे पता चलेगा कि कुत्तों का रजिस्टेशन हुआ या नहीं.
क्या कोई पेट पुलिस होगी?
अब चाहे वो रजिस्ट्रेशन न होने पर जुर्माना वसूलना हो या फिर ये देखना कि पेट्स विशेषकर कुत्तों का एंटी रेबीज समेत तमाम तरह का वैक्सीनेशन हुआ या नहीं. खुले में गन्दगी करने से लेकर काटे जानी वाली घटनाओं तक कई लोग ऐसे चाहिए जो तमाम चीजों की निगरानी कर सकें. ऐसे में एक बड़ा सवाल जो हमारे सामने है वो ये कि क्या इन सभी चीजों की जांच पड़ताल के लिए पेट पुलिस टाइप की कोई संस्था होगी?
बैन ब्रीड्स के कुत्तों का अब क्या होगा?
ध्यान रहे, काटे जाने और हमले के मामले सामने आने के बाद जहां गाजियाबाद में 3 खूंखार डॉग ब्रीड्स रॉटविलर, पिटबुल और डोगो अर्जेन्टीनोस को बैन कर दिया गया है तो वहीं गुरुगम में अमेरिकन पिट बुल टेरियर, डोगो अर्जेन्टीनोस, रॉटविलर, नियपोलिटन मैस्टिफ, बोअरबोएल, प्रेसा कैनरिओ, वुल्फ डॉग, बैनडॉग, अमेरिकन बुलडॉग, फिला ब्रासिलेरो और केन कोर्सो जैसी डॉग ब्रीड को बैन किया है अब सवाल ये है कि वो तमाम लोग जिन्होंने दिल्ली, गुरुग्राम, नॉएडा और गाजियाबाद में ऊपर बताई गयी ब्रीड्स के कुत्ते पाले अब उन कुत्तों का क्या होगा? क्या लोगों से लेकर अब इन्हें पालने की जिम्मेदारी स्वयं नगर निगम लेंगे?
बैन ब्रीड्स नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली और गुरुग्राम के लिए अलग क्यों?
नए नियमों के अंतर्गत जो सबसे दिलचस्प सवाल हमारे सामने आता है वो ये कि हम जहां एक तरफ नॉएडा और गाजियाबाद में सिविक बॉडीज द्वारा तीन विदेशी ब्रीड्स को बैन होते देखते हैं तो वहीं जब हम गुरुग्राम का रुख करते हैं तो वहां ये संख्या हमें 11 ब्रीड्स के रूप में दिखाई देती है. सवाल ये है कि जब एक शहर कुत्तों की एक तरह की विदेशी ब्रीड को खतरनाक मान रहा है तो कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित दूसरे शहर में वो ब्रीड लीगल कैसे हो गयी? विषय बहुत सीधा है जो कुत्ता गुरुग्राम के लिए खतरनाक है वो कुत्ता नॉएडा के लिए भी होगा. ऐसे में ब्रीड को लेकर निकायों की अलग राय क्यों है?
अवैध रूप से ब्रीडिंग करने वालों पर सख्ती क्यों नहीं?
जैसा कि हमें ज्ञात है अगर विदेशी नस्ल के कुत्ते हमें बाजार में मुहैया कराए जा रहे हैं तो इसका एक बड़ा कारण अवैध ब्रीडिंग केंद्र हैं. बड़ा सवाल ये है कि आखिर इन अवैध रूप से ब्रीडिंग करने वालों पर सख्ती कब होगी? दूसरा सवाल जो हमारे सामने है वो ये कि क्या अब तक निकायों ने ऐसे ब्रीडिंग सेंटर्स पर नकेल कसी? हमें इस बात को समझना होगा कि यदि अलग अलग निकायों ने नियम अवैध रूप से ब्रीडिंग करने वालों पर सख्ती को ध्यान में रखकर बनाए हैं तो आंकड़े ये भी हमारे सामने आने चाहिए जिनमें एक्शन का जिक्र हो.
कुत्ता एग्रेसिव है या नहीं कैसे पता चलेगा ?
अब जबकि नए नियम हमारे सामने हैं और कहा ये जा रहा है कि ये कुत्तों का व्यव्हार समझाने में भी कारगर होंगे तो सवाल ये है कि आखिर ये कैसे पता चलेगा कि कोई कुत्ता एग्रेसिव है या नहीं? इसकी जांच का मीटर क्या होगा? हम फिर इस बात को दोहरान चाहेंगे कि चूंकि अलग अलग शहरों के मद्देनजर नए नियमों में हमें काफी गफलत दिखाई दे रही है इसलिए तमाम पेट लवर्स इस बात को लेकर भी चिंतित है कि नए नियम इतने जटिल हैं कि इनके आने के बाद लोग अपने कुत्तें को छोड़ देने को मजबूर हो जाएंगे. सोचिये यदि स्थिति ऐसी हुई तो क्या होगा?
क्या रजिस्ट्रेशन के लिए पेट स्टोर्स का चयन किया जाएगा?
जैसा कि हम बता चुके हैं चाहे वो नॉएडा और गाजियाबाद हो या फिर गुरुग्राम और दिल्ली पालतू कुत्तों के रजिस्ट्रेशन या तो ऐप और पोर्टल पर होंगे या फिर लाइन में लगतार नगर निगम के दफ्तर में. ऐसे में एक बड़ा सवाल जो हमारे सामने है वो ये कि आखिर रजिस्ट्रेशन से लेकर वैक्सीनेशन तक का काम पेट स्टोर्स में क्यों नहीं हो रहा? यदि ये काम वहां होता है तो यक़ीनन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. ध्यान रहे यदि तमाम चीजों के लिए पेट स्टोर्स का इस्तेमाल होता है तो काम जहां सुचारु ढंग से होगा तो वहीं इससे लोगों का काफी समय भी बचेगा.
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