दिल्ली-मथुरा (Delhi-Mathura) रोड पर एक आवाज़ गूंज रही है- हरियाणा पुलिस (Haryana Police) मुर्दाबाद, यूपी पुलिस ज़िंदाबाद! यह सिर्फ़ नारेबाज़ी नहीं है, फूटता हुआ आक्रोश है स्थूल हो चुकी कानूनी संरचना पर. अविश्वास है न्याय और विधि जैसे सैद्धांतिक मूल्यों के प्रति. चीत्कार है मरणासन्न समाज की बजबजाती सोच के विरुद्ध. यह हार है समाज, सरकार, सत्ता और संविधान की. आप नैतिक-अनैतिक में मापतोल करते हुए तमाम सैद्धांतिक बातें कर सकते हैं जो सुनने में अच्छी लगती हों लेकिन जब एक लड़की को भोग्या जैसी संज्ञा में संकुचित कर दिया जाता है तो उसके स्वजनों में इतनी हिम्मत नहीं बचती कि मूल्यों की बातों पर धैर्यपूर्वक अमल कर सकें. लड़की का परिवार होना स्वयं में बहुत धैर्यवान कृत्य है. बल्लभगढ़ की निकिता कॉलेज (Nikita Tomar Murder) से बाहर निकली थी कि तौफ़ीक अपने मित्र के साथ उसे कार में जबरन ले जाने लगा. सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट दिख रहा है कि वह बच्ची विरोध कर रही थी, उसकी सहेली भी विरोध करती रही. फिर तौफ़ीक का साथी रेहान भी ज़बरदस्ती करने आता है और फिर विफल होने पर निकिता को सरेआम गोली मार दी जाती है, बस यही क़ीमत है एक लड़की की ज़िंदगी की. 'नो मींस नो'' अब भी फ़िल्मी है, ज़मीन पर जो है उसे ज़बरदस्ती कहते हैं.
तौफ़ीक वही लड़का है जिसने 2018 में भी निकिता के साथ यूं ही ज़बरदस्ती की थी जिसपर परिवार वालों ने उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करायी लेकिन आदिकाल से इज्ज़त का पर्याय रही स्त्री को सम्मान की बलि तो चढ़ना ही था, सो परिवार ने इज्ज़त के नाम पर शिकायत वापस ले ली. मेरे द्वारा आरोपी का नाम लेना चुभ रहा हो तो स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी भी जाति-धर्म के अपराधी को उसकी जाति या धर्म...
दिल्ली-मथुरा (Delhi-Mathura) रोड पर एक आवाज़ गूंज रही है- हरियाणा पुलिस (Haryana Police) मुर्दाबाद, यूपी पुलिस ज़िंदाबाद! यह सिर्फ़ नारेबाज़ी नहीं है, फूटता हुआ आक्रोश है स्थूल हो चुकी कानूनी संरचना पर. अविश्वास है न्याय और विधि जैसे सैद्धांतिक मूल्यों के प्रति. चीत्कार है मरणासन्न समाज की बजबजाती सोच के विरुद्ध. यह हार है समाज, सरकार, सत्ता और संविधान की. आप नैतिक-अनैतिक में मापतोल करते हुए तमाम सैद्धांतिक बातें कर सकते हैं जो सुनने में अच्छी लगती हों लेकिन जब एक लड़की को भोग्या जैसी संज्ञा में संकुचित कर दिया जाता है तो उसके स्वजनों में इतनी हिम्मत नहीं बचती कि मूल्यों की बातों पर धैर्यपूर्वक अमल कर सकें. लड़की का परिवार होना स्वयं में बहुत धैर्यवान कृत्य है. बल्लभगढ़ की निकिता कॉलेज (Nikita Tomar Murder) से बाहर निकली थी कि तौफ़ीक अपने मित्र के साथ उसे कार में जबरन ले जाने लगा. सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट दिख रहा है कि वह बच्ची विरोध कर रही थी, उसकी सहेली भी विरोध करती रही. फिर तौफ़ीक का साथी रेहान भी ज़बरदस्ती करने आता है और फिर विफल होने पर निकिता को सरेआम गोली मार दी जाती है, बस यही क़ीमत है एक लड़की की ज़िंदगी की. 'नो मींस नो'' अब भी फ़िल्मी है, ज़मीन पर जो है उसे ज़बरदस्ती कहते हैं.
तौफ़ीक वही लड़का है जिसने 2018 में भी निकिता के साथ यूं ही ज़बरदस्ती की थी जिसपर परिवार वालों ने उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करायी लेकिन आदिकाल से इज्ज़त का पर्याय रही स्त्री को सम्मान की बलि तो चढ़ना ही था, सो परिवार ने इज्ज़त के नाम पर शिकायत वापस ले ली. मेरे द्वारा आरोपी का नाम लेना चुभ रहा हो तो स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी भी जाति-धर्म के अपराधी को उसकी जाति या धर्म विशेष की छूट हरगिज़ नहीं दूंगी.
आप मुझपर अपने प्रमाणपत्र फेंकते रहने के लिये स्वतंत्र हैं. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई होने से किसी का अपराध कमतर नहीं हो जाता, इन सबसे इतर वह व्यक्ति अपराधी होता है. उसे अपने वर्गीकरण का प्रिविलेज कम से कम मैं तो नहीं दूंगी. उस लड़की को मरना पड़ा क्योंकि उसे कार में नहीं बैठना था. उस लड़की को मरना पड़ा क्योंकि उसने विरोध किया. उसे मरना पड़ा क्योंकि आपका समाज कंसेंट-डिसेंट नहीं समझता और फुटकर के भाव में अपराधी पैदा करता है.
आप ज़हमत नहीं उठाते यह समझने की कि हाड़-मांस के अलावा एक स्त्री में उसका मन भी होता है, होती हैं ढेरों हरसतें, तमन्नाएं, मंज़िलें जिन्हें वह हासिल करना चाहती है. लेकिन आपने उस स्त्री को हासिल की जाने वाली के रूप में सुसज्जित किया हुआ है. तो विरोध करती रहेंगी लड़कियां और यूं ही मरती रहेंगी.
विरोध करेंगी क्योंकि यह उनका हक़ है जो आपके चाहने से भी नहीं छिनता और मरती रहेंगी क्योंकि आप उनका विरोध सुनकर जी नहीं सकेंगे.फिर भी मुबारक आपको कि अंततः विजयी हो रहे हैं आप और प्राणहीन हो रही हैं वो सभी. कभी ग़ौर कीजिएगा कि अपनी शारीरिक क्षमताओं का जितना हो सके उतना दुरुपयोग करने में कितनी गुंजाइश रखी आपने. कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?
कभी-कभी मौन और मरण में सिर्फ़ ऑक्सीज़न के ख़र्च जितना फ़र्क़ होता है. हमें यह फ़र्क़ नहीं चाहिए. हमें चाहिए पूरी ज़िंदगी, हमारे हिस्से की और वो सबकुछ जो हमारा हासिल होना चाहिए. यह समझने में और कितना वक़्त लगेगा आज ही बता दें.
निकिता मर गयी, परिजन चाहते हैं कि यूपी पुलिस की तरह फिर से गाड़ी पलट जाए. लड़कियों के अनुरूप कुछ होना होता तो आ गया होता सैलाब. बहुत कुछ पलट चुका होता - गाड़ी, सत्ता, समाज और शतरंज-सरीखी वो तमाम बाज़ियां जो हमें मोहरा बनाती हैं. सभ्यताएं आती-जाती रहेंगी लेकिन आप याद रखें कि जब वक़्त आपका था, वर्चस्व आपका था तो आपने कुछ भी बहुत अच्छा नहीं किया जिसे यूं ही हो जाना चाहिए था.
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