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अंततः 7 साल बाद निर्भया को न्याय मिला... क्या वाकई ऐसा हुआ ?

    • स्वाति सिंह परिहार
    • Updated: 21 मार्च, 2020 01:48 PM
  • 21 मार्च, 2020 01:48 PM
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निर्भया केस (Nirbhaya Case) में सात साल की लंबी लड़ाई के बाद चार आरोपियों को आज फांसी (Nirbhaya Convicts Hanged) की सज़ा हुई है. क्या है इस सज़ा के मायने? क्या वाकई इससे देश में महिलाओं के साथ हो रहे हादसों पर कोई असर पड़ेगा? क्या बलात्कारियों के लिए यह एक सबक साबित होगा? तमाम सवाल है अब बस महिलाओं की सामाजिक दशा बदल जाए.

सात साल पहले देश की राजधानी दिल्ली (Delhi Gangrape) में एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया. रोज़ अखबारों और न्यूज़ चैनलों में आने वाली बलात्कार (Rape Cases) की घटनाओं को इस घटना ने पीछे छोड़ दिया और देशभर को मजबूर कर दिया इस घटना के आरोपियों के ख़िलाफ़ खड़ा होने पर. जी हां, यहां बात हो रही है 16 दिसंबर 2012 को 23 साल की निर्भया (Nirbhaya Gangrape) के साथ दिल्ली के मुनिरिका में बर्बरतापूर्ण बलात्कार व हत्या की, जिसमें 11 दिन के संघर्ष के बाद भी पीड़िता की जान नहीं बचाई जा सकी. घटना के बाद पूरे देश में रोष फैल गया और हर तरफ़ से निर्भया के लिए इंसाफ की मांग उठने लगी. मामला फास्ट ट्रायल कोर्ट में पहुंचा जहां 5 आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई. इसके बाद हाईकोर्ट (Delhi Highcourt) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 7 साल लंबी लड़ाई के बाद आज 20 मार्च 2020 को 4 आरोपियों को फांसी दी गयी. बता दें कि एक आरोपी रामसिंह ने तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में पहले ही खुदकुशी कर ली थी.

निर्भया के दोषियों को फांसी हो गयी है मगर क्या वाक़ई देश में महिलाओं की स्थिति बदल जाएगी

बहरहाल आज सुबह आरोपियों को फांसी होने के बाद से जहां लोग एक ओर निर्भया को न्याय मिलने पर खुशी जता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह प्रश्न भी उठ रहा है कि क्या निर्भया को वाकई न्याय मिला है या क्या इस सज़ा के बाद देश में बलात्कार की घटनाओं पर कोई अंकुश लग पायेगा? अगर हम पिछले दिनों भारत में हुई बलात्कार की घटनाओं के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि डराने वाला भी है. हर उम्र वर्ग की महिलाओं यहां तक कि बच्चीयों के साथ भी हैवानियत की हर सीमा लांघी जा चुकी है.

इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों के लिए कड़ी से कड़ी...

सात साल पहले देश की राजधानी दिल्ली (Delhi Gangrape) में एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया. रोज़ अखबारों और न्यूज़ चैनलों में आने वाली बलात्कार (Rape Cases) की घटनाओं को इस घटना ने पीछे छोड़ दिया और देशभर को मजबूर कर दिया इस घटना के आरोपियों के ख़िलाफ़ खड़ा होने पर. जी हां, यहां बात हो रही है 16 दिसंबर 2012 को 23 साल की निर्भया (Nirbhaya Gangrape) के साथ दिल्ली के मुनिरिका में बर्बरतापूर्ण बलात्कार व हत्या की, जिसमें 11 दिन के संघर्ष के बाद भी पीड़िता की जान नहीं बचाई जा सकी. घटना के बाद पूरे देश में रोष फैल गया और हर तरफ़ से निर्भया के लिए इंसाफ की मांग उठने लगी. मामला फास्ट ट्रायल कोर्ट में पहुंचा जहां 5 आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई. इसके बाद हाईकोर्ट (Delhi Highcourt) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 7 साल लंबी लड़ाई के बाद आज 20 मार्च 2020 को 4 आरोपियों को फांसी दी गयी. बता दें कि एक आरोपी रामसिंह ने तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में पहले ही खुदकुशी कर ली थी.

निर्भया के दोषियों को फांसी हो गयी है मगर क्या वाक़ई देश में महिलाओं की स्थिति बदल जाएगी

बहरहाल आज सुबह आरोपियों को फांसी होने के बाद से जहां लोग एक ओर निर्भया को न्याय मिलने पर खुशी जता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह प्रश्न भी उठ रहा है कि क्या निर्भया को वाकई न्याय मिला है या क्या इस सज़ा के बाद देश में बलात्कार की घटनाओं पर कोई अंकुश लग पायेगा? अगर हम पिछले दिनों भारत में हुई बलात्कार की घटनाओं के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि डराने वाला भी है. हर उम्र वर्ग की महिलाओं यहां तक कि बच्चीयों के साथ भी हैवानियत की हर सीमा लांघी जा चुकी है.

इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा की मांग हर ओर से उठती है, लेकिन न्याय व्यवस्था की जटिलता और लंबित केसों को देखकर लोगों का विश्वास न्याय पालिका से डगमगा जाता है जिसका ताजा उदाहरण हैदराबाद में हुई घटना है, जिसके सभी तथाकथित आरोपियों को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया और आमजन में इसकी खुशी भी देखी गयी.

आरोपियों को सज़ा मिलनी चाहिए और कड़ी से कड़ी मिलनी चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन सजा का असर आपराधिक प्रवत्ति वाले लोगों पर कितना और कैसा पड़ रहा है यह भी मालूम करना बेहद ज़रूरी है. यदि हम पिछले कुछ सालों की बलात्कार की घटनाओं पर नज़र डालें तो हम पाएंगे कि अपराधियों ने बलात्कार के बाद पीड़िता को न सिर्फ जान से मारने की कोशिश की बल्कि उसे जलाकर, दफनाकर हर सबूत मिटाने की भी हर बार कोशिश की है.

यदि फांसी की सज़ा के डर से अपराधियों के दिमाग में ऐसा कोई पैटर्न बन रहा है तो क्या यह भयावह नहीं है? ऐसा करने के पीछे कहीं लंबी कानूनी लड़ाई तो वजह नहीं है? यदि है तो यह हमारे समाज के लिए, महिलाओं के लिए कितना घातक है इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता. निर्भया के साथ हुई बलात्कार की घटना के विरोध के परिणामस्वरूप, दिसंबर 2012 में, यौन अपराधियों की त्वरित जांच और अभियोजन प्रदान करने के लिए व कानूनों में संशोधन करने के सर्वोत्तम तरीकों के लिए सार्वजनिक सुझाव लेकर एक न्यायिक समिति का गठन किया गया था. लगभग 80,000 सुझावों पर विचार करने के बाद, समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें यह माना गया कि सरकार और पुलिस की ओर से विफलताएं महिलाओं के खिलाफ अपराधों का मूल कारण हैं.

निर्भया की इस न्याय की लड़ाई में अपराधी पक्ष ने हर संभव प्रयास किया खुद के लिए माफी का, हर रास्ता खोजा खुद को बचाने का, लेकिन सलाम है उस माँ के जज़्बे को जिसने हार नहीं मानी और लगातार अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ती रही और अंततः ये लड़ाई जीती भी. इस केस में अंतिम निर्णय आने में 7 साल लग गए, जिसमें पूरे देश ने आवाज़ उठाई और न्याय की मांग की.

ज़रा सोचिए भारत के किसी सुदूर गाँव की लड़की के बारे में जिसे बलात्कार होने पर भी घर के बड़ों द्वारा चुप रहने की सलाह दी जाती है, वो कैसे किसी न्याय की कल्पना कर सकती है? उसे तो शायद यह भी पता नहीं होता होगा कि अपराध वास्तव में है क्या और वास्तविक अपराधी कौन है?बलात्कार हमारे समाज का सर्वाधिक घृणित कृत्य है जो पूरे देश को, पूरे समाज को दीमक की तरह खा रहा है.

बलात्कार रूपी इस राक्षस से अभी हमारी लड़ाई बहुत लंबी है और हमें हर स्तर पर इस लड़ाई को लड़ना होगा तभी, हम कल्पना कर सकते हैं एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज की. फिलहाल हमनें जो एक कदम इस ओर बढ़ाया है उसके लिए हमें खुश होना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि इंसाफ की देवी देश की सभी पीड़ित देवियों को इंसाफ दे पाएगी और भविष्य में भी ऐसे ऐतिहासिक लड़ाइयां जीती जाएंगी.

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