इस साल होली से कुछ दिन पहले दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज, जीसस ऐंड मेरी कॉलेज और लेडी श्री राम कॉलेज की कुछ छात्राओं ने आरोप लगाया था कि उनपर वीर्य से भरे गुबारे फेंके गये. उन छात्राओं का आरोप लगाने की देर भर थी, आरोपों की जांच किए बिना उन्हें 100 प्रतिशत सच मान लिया गया. इस मुद्दे को आधार बनाकर दिल्ली पुलिस के खिलाफ़ प्रदर्शन भी किए गए, देशी-विदेशी लेखकों ने होली को ही महिलाओं के उत्पीड़न का एक कारण बना दिया.
पुलिस द्वारा उन छात्राओं के कपड़ों को जांच के लिए भेजा गया था. फ़ोरेंसिक जांच से यह साफ हो गया है कि उन छात्राओं पर फैंके गए गुब्बारों में वीर्य नहीं था. इस तथ्य के सामने आने के बाद किसी भी प्रदर्शनकारी ने माफी नहीं मांगी, न ही महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली कार्यकर्ताओं ने इस तथ्य को सार्वजनिक स्तर पर स्वीकार किया.
भारत में कितनी आसानी से आरोपों को सच मान लिया जाता है. ऐसा भारत में ही क्यों होता है कि अपने देश के त्योहारों पर नाज़ करने की बजाए, हम नए-नए तरीकों से अपने त्योहारों को ज़लील करने में नहीं कतराते है? कुछ लोग तो ऐसे मौकों का इंतज़ार करते हैं जब महिला सुरक्षा, प्रदूषण, जानवरों पर अत्याचार के नाम पर भारत के त्योहारों पर रोक लग सके.
दीपावली से पहले- प्रदूषण मुक्त दीपावली का अभियान; होली से पहले होली को महिला उत्पीड़न का कारण बताना; जल्लिकटटू, कंबाला पर जानवरों पर अत्याचार के...
इस साल होली से कुछ दिन पहले दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज, जीसस ऐंड मेरी कॉलेज और लेडी श्री राम कॉलेज की कुछ छात्राओं ने आरोप लगाया था कि उनपर वीर्य से भरे गुबारे फेंके गये. उन छात्राओं का आरोप लगाने की देर भर थी, आरोपों की जांच किए बिना उन्हें 100 प्रतिशत सच मान लिया गया. इस मुद्दे को आधार बनाकर दिल्ली पुलिस के खिलाफ़ प्रदर्शन भी किए गए, देशी-विदेशी लेखकों ने होली को ही महिलाओं के उत्पीड़न का एक कारण बना दिया.
पुलिस द्वारा उन छात्राओं के कपड़ों को जांच के लिए भेजा गया था. फ़ोरेंसिक जांच से यह साफ हो गया है कि उन छात्राओं पर फैंके गए गुब्बारों में वीर्य नहीं था. इस तथ्य के सामने आने के बाद किसी भी प्रदर्शनकारी ने माफी नहीं मांगी, न ही महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली कार्यकर्ताओं ने इस तथ्य को सार्वजनिक स्तर पर स्वीकार किया.
भारत में कितनी आसानी से आरोपों को सच मान लिया जाता है. ऐसा भारत में ही क्यों होता है कि अपने देश के त्योहारों पर नाज़ करने की बजाए, हम नए-नए तरीकों से अपने त्योहारों को ज़लील करने में नहीं कतराते है? कुछ लोग तो ऐसे मौकों का इंतज़ार करते हैं जब महिला सुरक्षा, प्रदूषण, जानवरों पर अत्याचार के नाम पर भारत के त्योहारों पर रोक लग सके.
दीपावली से पहले- प्रदूषण मुक्त दीपावली का अभियान; होली से पहले होली को महिला उत्पीड़न का कारण बताना; जल्लिकटटू, कंबाला पर जानवरों पर अत्याचार के नाम पर रोक लगाने का प्रयास. जहां विश्व के दूसरे देश अपने त्योहारों और सभ्यता पर मान करते हैं, वहीं भारत में एक 'पढ़ा-लिखा व संपन्न' वर्ग अपने त्योहारों और सभ्यता को हीन भाव से देखता है.
आज के इस दूषित राजनीतिक वातावरण में देश के मीडिया की ज़िम्मेवारी और बढ़ जाती है. जब भी कभी ऐसे आरोप सार्वजनिक स्तर पर उठाए जाए, तब मीडिया को प्रमाणित होने से पहले उन आरोपों को केवल आरोप ही मानना चाहिए. सबसे पहले खबर दिखाने के चक्कर में आरोपों को तथ्य नहीं मान लेना चाहिए. यदि समाज जागरूक रहेगा तो कोई भी आरोप हमें भ्रमित नहीं कर सकते.
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...तो होली पर प्रतिबंध लगाने का समय आ गया है ?
होली पर कभी-कभी बुरा मानना भी जरूरी है..
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.