दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए एक बार फिर से दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने odd-even योजना के तीसरे चरण की शुरुआत की घोषणा कर दी है. 13 से 17 नवंबर के बीच दिल्ली में ऑड-इवन स्कीम लागू की जाएगी. दिल्ली सरकार का यह फैसला, उसी कवायद का नतीजा है जिसमें, सरकार दिल्ली की जानलेवा हवा को बेहतर करने की कोशिश कर रही है. कहा जा सकता है कि ये प्रयास वैसा ही है जैसा आग लगने के बाद तालाब खोदना.
दिल्ली में बद से बदतर होती हवा कोई नई बात नहीं है. पिछले तीन चार सालों से दिल्ली की जहरीली हवा खबरों में रही है. दिसंबर 2015 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने तल्ख़ टिपण्णी करते हुए दिल्ली में रहने को गैस चैम्बर में रहने सरीखा बताया था. सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी समय- समय पर राज्य सरकार को दिल्ली की दूषित होती हवा पर कदम उठाने को कहा था जबकि राज्य सरकार ने इस मुद्दे को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया.
हां प्रदूषण के नाम पर सरकार ने जरूर दो बार दिल्ली में 15-15 दिनों के लिए ऑड इवन लागू किया. ऑड इवन के बाद दिल्ली के प्रदूषण पर कितना असर पड़ा इसे लेकर जानकारों की भी अलग अलग राय रही है, मगर राज्य सरकार ने अपनी इस पहल को बड़े बड़े विज्ञापनों के जरिये बड़ा इवेंट घोषित कर इसे सफल जरूर करार दिया. अगर यह मान भी लिया जाए कि सरकार के इस कदम से प्रदूषण के स्तर में कमी आई है, तो क्या पूरे साल में 30 दिन ऐसा कर के पूरी दिल्ली को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है? क्या सरकार ने प्रदूषण के अन्य कारणों के निवारण के लिए कुछ कदम उठाये?
इन सवालों के जवाब ना ही है. पिछले साल भी दिल्ली नवंबर के महीने में इसी तरह बेचैन थी. उस समय भी सरकार ने बड़े बड़े दावों से जनता को भरोसा दिलाया था कि सरकार प्रदूषण...
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए एक बार फिर से दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने odd-even योजना के तीसरे चरण की शुरुआत की घोषणा कर दी है. 13 से 17 नवंबर के बीच दिल्ली में ऑड-इवन स्कीम लागू की जाएगी. दिल्ली सरकार का यह फैसला, उसी कवायद का नतीजा है जिसमें, सरकार दिल्ली की जानलेवा हवा को बेहतर करने की कोशिश कर रही है. कहा जा सकता है कि ये प्रयास वैसा ही है जैसा आग लगने के बाद तालाब खोदना.
दिल्ली में बद से बदतर होती हवा कोई नई बात नहीं है. पिछले तीन चार सालों से दिल्ली की जहरीली हवा खबरों में रही है. दिसंबर 2015 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने तल्ख़ टिपण्णी करते हुए दिल्ली में रहने को गैस चैम्बर में रहने सरीखा बताया था. सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी समय- समय पर राज्य सरकार को दिल्ली की दूषित होती हवा पर कदम उठाने को कहा था जबकि राज्य सरकार ने इस मुद्दे को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया.
हां प्रदूषण के नाम पर सरकार ने जरूर दो बार दिल्ली में 15-15 दिनों के लिए ऑड इवन लागू किया. ऑड इवन के बाद दिल्ली के प्रदूषण पर कितना असर पड़ा इसे लेकर जानकारों की भी अलग अलग राय रही है, मगर राज्य सरकार ने अपनी इस पहल को बड़े बड़े विज्ञापनों के जरिये बड़ा इवेंट घोषित कर इसे सफल जरूर करार दिया. अगर यह मान भी लिया जाए कि सरकार के इस कदम से प्रदूषण के स्तर में कमी आई है, तो क्या पूरे साल में 30 दिन ऐसा कर के पूरी दिल्ली को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है? क्या सरकार ने प्रदूषण के अन्य कारणों के निवारण के लिए कुछ कदम उठाये?
इन सवालों के जवाब ना ही है. पिछले साल भी दिल्ली नवंबर के महीने में इसी तरह बेचैन थी. उस समय भी सरकार ने बड़े बड़े दावों से जनता को भरोसा दिलाया था कि सरकार प्रदूषण से जंग के लिए कई तरह के कदम उठाएगी, मगर साल भर बीत जाने के बाद भी क्या कदम उठाये गए हैं यह जनता के सामने है. हालात यह है कि स्थिति और बदत्तर हो गयी. सरकार को प्रदूषण से जंग का सबसे सटीक तरीका ऑड इवन ही लगता है क्योंकि भले ही इससे प्रदूषण में कमी आये या ना आये मगर इससे सरकार को अच्छा खासा मीडिया स्पेस जरूर मिल जाता है.
पिछले साल दिल्ली के प्रदूषण पर आईआईटी कानपुर की एक अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली की हवा में गर्मी के दिनों में PM10की मात्रा औसतन 500 से ऊपर, जबकि PM2.5की मात्रा 300 के आस पास होती है. वहीं सर्दियों में PM10 की मात्रा 600 के आसपास जबकि PM2.5 की मात्रा 375 के आस पास होती है.आपको बता दे कि PM10 100 और PM2.5 का स्तर 60 तक सामान्य माना जाता है. आईआईटी कानपुर ने PM2.5 में बढ़ोतरी के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया है उनमें इंडस्ट्रियल स्टैक का 52 फीसदी हिस्सा जबकि गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा 36 फीसदी है. हालांकि गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण का बड़ा हिस्सा ट्रकों और बसों द्वारा होता है.
अगर आईआईटी कानपुर के इन आंकड़ों कि मानें तो दिल्ली का प्रदूषण किसी आपदा से कम नहीं है, और इसे सामान्य स्थिति में लाने के लिए युद्ध स्तर की तैयारी की आवश्यकता है. हालांकि केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही इस मुद्दे पर महज खानापूर्ति ही करते नजर आते हैं. जब सर्दियों में प्रदूषण जानलेवा स्तर से भी ऊपर निकल जाता है तब सरकार आनन फानन में कुछ एक कदम उठाती दिख जाती है और उसके बाद पूरे साल इस मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है.
अब तो दिल्ली वालों ने भी इस जहरीली हवा को इस कदर अपना लिया है कि प्रदूषण का जानलेवा स्तर भी दिल्ली वालों को सामान्य ही लगता है. अब जो परिस्थितियां हैं उसमें सरकार और आम जनता दोनों ने इस आपदा से निपटने के लिए कोई गंभीर उपाय न किये तो आने वाले वर्षों में दिल्लीवालों के लिए कई तरह की बीमारियां भी सामान्य हो जाएंगी और तब शायद दिल्ली की हवा में सांस लेना संभव भी ना हो सके.
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