कुछेक वर्ष पहले की बात है. रेल यात्रा के दौरान पेंड्रा रोड से आगे बढ़ते ही हमारे डिब्बे में दो लड़कियां चढ़ीं. उम्र रही होगी 16-17 के आसपास. घबराई हुई थीं. मैं बाथरूम से वापस लौटी तो वे मेरी सीट के सामने ही खड़ी थीं. एक बार को दिमाग ठनका. उस रोड पर ट्रेन्स में चोरी की बातें भी सुनते रहते हैं. मैंने थोड़ा सख़्ती से पूछा कौन सी सीट है आपकी. मेरा पूछना था कि उनमें से एक रो दी. बोली, 'हमें बेचने ले जा रहे थे. हम भागकर आए हैं'. उसका ऐसा कहना था कि मेरे हाथ-पांव में सिहरन उठी. लगा किसी फ़िल्म का सीन चल रहा हो. ना जाने कितनी हिम्मत के बाद ये ऐसा कर पाई होंगी. ना जाने कब तक बची रहेंगी.पिछले कुछ वर्षों से ट्रेन्स में समय-समय पर बंदूकधारी पुलिस गश्त लगाते हैं. झारसुगुड़ा आने से कुछ ही पहले जब गश्त वाले आए तो उन्हें सारी बात बताकर सुरक्षित हाथों सौंपा और मैं उतरी. उनसे बातें करने पर कुछ भयावह बातें भी जानने में आईं.
ओडिशा-छत्तीसगढ़-झारखंड के जिस बॉर्डर पर मैं रहती हूं यहां प्रशासन की नाक के नीचे से बच्चे और गाएं तस्करी के लिए ले जाई जाती हैं. बॉर्डर के इलाकों में ऐसे काम इसलिए भी अंजाम दिए जाते हैं क्योंकि एक बॉर्डर क्रॉस होते ही पुलिसिया कार्यवाही और छानबीन से बचने में ये तस्कर कामयाब होते हैं. यह पूरा इलाका जो करीब 500+ किलोमीटर का है घने जंगल वाला है.
रात के समय सड़क यात्रा में भालू, अजगर, कछुए आदि आसानी से देखे जा सकते हैं. इसी इलाके से आदिवासी बच्चों को चुराने, शहरों में नौकरी दिलाने के नाम पर बेचने का काम अंजाम दिया जाता है. यह इतनी चतुराई और चुप्पी के साथ होता रहा है, दशकों से कि आम इंसान को भनक भी ना लगे. आपको पता तब चलता है जब आप इनके पकड़े जाने...
कुछेक वर्ष पहले की बात है. रेल यात्रा के दौरान पेंड्रा रोड से आगे बढ़ते ही हमारे डिब्बे में दो लड़कियां चढ़ीं. उम्र रही होगी 16-17 के आसपास. घबराई हुई थीं. मैं बाथरूम से वापस लौटी तो वे मेरी सीट के सामने ही खड़ी थीं. एक बार को दिमाग ठनका. उस रोड पर ट्रेन्स में चोरी की बातें भी सुनते रहते हैं. मैंने थोड़ा सख़्ती से पूछा कौन सी सीट है आपकी. मेरा पूछना था कि उनमें से एक रो दी. बोली, 'हमें बेचने ले जा रहे थे. हम भागकर आए हैं'. उसका ऐसा कहना था कि मेरे हाथ-पांव में सिहरन उठी. लगा किसी फ़िल्म का सीन चल रहा हो. ना जाने कितनी हिम्मत के बाद ये ऐसा कर पाई होंगी. ना जाने कब तक बची रहेंगी.पिछले कुछ वर्षों से ट्रेन्स में समय-समय पर बंदूकधारी पुलिस गश्त लगाते हैं. झारसुगुड़ा आने से कुछ ही पहले जब गश्त वाले आए तो उन्हें सारी बात बताकर सुरक्षित हाथों सौंपा और मैं उतरी. उनसे बातें करने पर कुछ भयावह बातें भी जानने में आईं.
ओडिशा-छत्तीसगढ़-झारखंड के जिस बॉर्डर पर मैं रहती हूं यहां प्रशासन की नाक के नीचे से बच्चे और गाएं तस्करी के लिए ले जाई जाती हैं. बॉर्डर के इलाकों में ऐसे काम इसलिए भी अंजाम दिए जाते हैं क्योंकि एक बॉर्डर क्रॉस होते ही पुलिसिया कार्यवाही और छानबीन से बचने में ये तस्कर कामयाब होते हैं. यह पूरा इलाका जो करीब 500+ किलोमीटर का है घने जंगल वाला है.
रात के समय सड़क यात्रा में भालू, अजगर, कछुए आदि आसानी से देखे जा सकते हैं. इसी इलाके से आदिवासी बच्चों को चुराने, शहरों में नौकरी दिलाने के नाम पर बेचने का काम अंजाम दिया जाता है. यह इतनी चतुराई और चुप्पी के साथ होता रहा है, दशकों से कि आम इंसान को भनक भी ना लगे. आपको पता तब चलता है जब आप इनके पकड़े जाने की ख़बरें अख़बार में पढ़ें.
आज भी ऐसी ही एक सुखद ख़बर पढ़ी. 18 जनवरी से 25 जनवरी के बीच ओडिशा क्राइम ब्रांच ने एक मिशन को अंजाम दिया जिसमें 894 बच्चों को बचाया गया. इनमें से 800 लड़कियां और 94 लड़के हैं. यह मिशन अभी और चलाया जाएगा. उम्मीद है कई और बच्चों का जीवन सुरक्षित रह पाएगा. बस दुआ इतनी है कि बचाए जाने के बाद जिन शेल्टर होम्स में इन्हें रखा जाएगा वहां भी ये सुरक्षित रहें.
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