सेक्स. अंग्रेजी का तो पता नहीं, लेकिन हिंदी में यह शब्द अछूत समझा जाता है. बिंदास बोलने के बजाय लोग इसे कानाफूसी या सांकेतिक भाषा में बोलना पसंद करते हैं. और अगर यह शादी से परे किसी 'रिश्ते' में बना हो तो फिर पूछिए मत... चर्चा-ए-आम... फलां का फलां के साथ ‘***’ संबंध है! लेकिन बीच से शब्द ऐसे गायब कर दिए जाते हैं, मानो बोल देने पर सांस्कृतिक विश्व युद्ध शुरू हो जाने का खतरा. भला हो गुजरात हाई कोर्ट का, जिसने कहा कि बिना किसी योजना के पर-पुरुष के साथ दो-चार बार बन जाने वाले सेक्शुअल संबंध व्यभिचार नहीं हो सकते.
गुजरात हाईकोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है. सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि इस फैसले में सेक्स शब्द का प्रयोग किया गया है. बल्कि इसलिए भी क्योंकि कोर्ट ने सेक्स की सही मायने में परिभाषा भी बता डाली. कोर्ट का कहना है - सेक्स सिर्फ और सिर्फ एक एक्ट नहीं है. बल्कि यह शरीर की जरूरत भी है. कभी-कभी ऐसे मौके बन पड़ते हैं, जब जवान लोग बिना सोचे-समझे एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं और ऐसे में उनके बीच संबंध बनने को व्यभिचार नहीं कहा जा सकता. हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि पर-पुरुष के साथ पहले से प्लानिंग कर बनाया जाने वाला एकमात्र संबंध भी व्यभिचार माना जाएगा.
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले का मुख्य अंश :
"One or two lapses or an occasional incident may be condoned, provided that they are unwitting. Sometimes, a situation arise whereupon, even without design or thought in mind, a young person may indulge in an intimate act. But an act of sexual intercourse by a spouse with another person, predetermined or preconceptualized, even if it is a singular act, would be adultery."
पति से गुजारा भत्ता की मांग कर रही एक महिला के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने उस महिला को गुजारा भत्ता दिलवाने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि वह अपनी इच्छा से किसी और पुरुष के साथ रह रही थी....
सेक्स. अंग्रेजी का तो पता नहीं, लेकिन हिंदी में यह शब्द अछूत समझा जाता है. बिंदास बोलने के बजाय लोग इसे कानाफूसी या सांकेतिक भाषा में बोलना पसंद करते हैं. और अगर यह शादी से परे किसी 'रिश्ते' में बना हो तो फिर पूछिए मत... चर्चा-ए-आम... फलां का फलां के साथ ‘***’ संबंध है! लेकिन बीच से शब्द ऐसे गायब कर दिए जाते हैं, मानो बोल देने पर सांस्कृतिक विश्व युद्ध शुरू हो जाने का खतरा. भला हो गुजरात हाई कोर्ट का, जिसने कहा कि बिना किसी योजना के पर-पुरुष के साथ दो-चार बार बन जाने वाले सेक्शुअल संबंध व्यभिचार नहीं हो सकते.
गुजरात हाईकोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है. सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि इस फैसले में सेक्स शब्द का प्रयोग किया गया है. बल्कि इसलिए भी क्योंकि कोर्ट ने सेक्स की सही मायने में परिभाषा भी बता डाली. कोर्ट का कहना है - सेक्स सिर्फ और सिर्फ एक एक्ट नहीं है. बल्कि यह शरीर की जरूरत भी है. कभी-कभी ऐसे मौके बन पड़ते हैं, जब जवान लोग बिना सोचे-समझे एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं और ऐसे में उनके बीच संबंध बनने को व्यभिचार नहीं कहा जा सकता. हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि पर-पुरुष के साथ पहले से प्लानिंग कर बनाया जाने वाला एकमात्र संबंध भी व्यभिचार माना जाएगा.
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले का मुख्य अंश :
"One or two lapses or an occasional incident may be condoned, provided that they are unwitting. Sometimes, a situation arise whereupon, even without design or thought in mind, a young person may indulge in an intimate act. But an act of sexual intercourse by a spouse with another person, predetermined or preconceptualized, even if it is a singular act, would be adultery."
पति से गुजारा भत्ता की मांग कर रही एक महिला के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने उस महिला को गुजारा भत्ता दिलवाने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि वह अपनी इच्छा से किसी और पुरुष के साथ रह रही थी. इसे ही आधार मानते हुए कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.
शादी के अलावा सेक्स को शरीर की एक जरूरत के तौर पर देखने की समाज ने कभी जरूरत ही नहीं समझी. या यूं कह लें कि जरूरत समझी भी तो सिर्फ पुरुषवादी नजरिए से. शायद तभी इस समाज में मर्दों की 'इच्छा शांति' के लिए जगह-जगह कोठे खुले पड़े हैं लेकिन महिलाओं के लिए यह पर-पुरुष संबंध जैसे शब्दों तक सीमित रह जाते हैं. जरूरत है सेक्स को खाने और सोने जैसे सामान्य शारीरिक क्रिया समझने की - महिलाओं के लिए भी.
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